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सुरता… छत्तीसगढ़ी लेखन ल अध्यात्म संग जोड़े बर जोर देवइया स्वामी आत्मानंद..।

सुशील वर्मा "भोले" संजय नगर रायपुर

सुरता…
छत्तीसगढ़ी लेखन ल अध्यात्म संग जोड़े बर जोर देवइया स्वामी आत्मानंद..
स्वामी आत्मानंद जी के जनमभूमि ग्राम बरबंदा अउ मोर पैतृक गाँव नगरगांव एक-दूसर के परोसी हे. हमर दूनों गाँव के खार ह आपस म जुड़े हे. फेर मोला स्वामी जी संग पहिली बेर संग म बइठ के गोठियाए के सौभाग्य सन् 1988 के दिसंबर महीना म तब मिले रिहिसे, जब हमन छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य प्रचार समिति के प्रादेशिक जलसा रायपुर के रामदयाल तिवारी स्कूल म करे रेहेन.
ए समिति के संयोजक छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी रहिन. अध्यक्ष भाषाविद डा. व्यास नारायण दुबे जी अउ मैं सचिव रहेंव. तब मैं अपन नांव सुशील वर्मा लिखत रेहेंव. बाद म आध्यात्मिक दीक्षा ले के बाद गुरु आदेश ले जातिसूचक शब्द के जगा अपन इष्टदेव के नांव ल जोड़ेंव. हमन ए समिति के बइठका म तय करे रेहेन के ए जलसा के मुख्य अतिथि स्वामी आत्मानंद जी ल बनाबोन कहिके.
इही जोखा के सेती हम तीनों रायपुर के विवेकानंद आश्रम गे रेहेन स्वामी जी ले कार्यक्रम म आए के अनुमति ले खातिर. उही दिन मैं स्वामी जी संग पहिली बेर बइठ के गोठियाएंव. संग म बइठ के गोठियाएन त आत्मा ह तृप्त होए असन लागिस. कार्यक्रम के होवत ले दू-तीन पइत भेंट होइस. स्वामी जी हमर मन संग आरुग छत्तीसगढ़ी म गोठियावंय गजब नीक लागय. वइसे तो स्वामी जी के प्रवचन सुने के अवसर कतकों जगा मिलत रहय. कभू विवेकानंद आश्रम के वाचनालय म अखबार पढ़े खातिर जावन त दरस मिल जावय. एकाद-दू पइत आकाशवाणी म घलो दरस हो जावय, जब वोमन चिंतन कार्यक्रम के रिकार्डिंग खातिर पहुंचे राहंय अउ महूं कोनो कार्यक्रम के सिलसिला म तब. फेर संग म बइठ के गोठियाए के अवसर उही जलसा के आयोजन बखत मिले रिहिसे.
जलसा म मुख्य अतिथि के रूप म कहे उंकर एक बात के मोला आज तक सुरता हे- उन कहे रिहिन के “छत्तीसगढ़ी लेखन ल जन-जन म लोकप्रिय बनाना हे, त एला अध्यात्म संग जोड़व. उन उदाहरण देवत कहिन के तुलसीदास जी, सूरदास जी, कबीरदास जी अउ मीराबाई जइसन मन के रचना आज घलो सबले जादा पढ़े अउ सुने जाथे, एकर असल कारण आय, एकर मन के अध्यात्म संग जुड़े होना. जबकि साहित्यिक दृष्टि ले देखहू, त एकर मन ले श्रेष्ठ रचना अउ दूसर मन के लेखन म आप मन ला देखे बर मिल सकथे, फेर जेन लोकप्रियता ए मनला मिलिस, वो ह दूसर मनला मुश्किल हे.”
स्वामी आत्मानंद जी के जनम 6 अक्टूबर 1929 के गाँव बरबंदा, थाना- धरसींवा जिला- रायपुर म होए रिहिसे. बचपन के उंकर नांव तुलेन्द्र रिहिसे. उंकर सियान धनीराम वर्मा जी उही तीर के बड़का गाँव मांढर म तब गुरुजी रिहिन हें. कुछ बेरा के पाछू धनीराम जी के चयन उच्च शिक्षा के प्रशिक्षण खातिर वर्धा म होगे रिहिसे. एकरे सेती वोमन पूरा परिवार सहित वर्धा चले गे रिहिन हें. इहाँ ए जानना महत्वपूर्ण हे के स्वामी आत्मानंद जी के छोटे भाई अउ हमर छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अउ राजगीत के रचनाकार डा. नरेंद्र देव वर्मा जी के जनम धनीराम जी के वर्धा म राहत ही वर्धा म होए रिहिसे.
वर्धा म ही स्वामी आत्मानंद जी (बालक तुलेन्द्र) सेवाग्राम आश्रम म महात्मा गाँधी जी के संपर्क म आइन. तुलेन्द्र बचपन ले ही बहुत प्रतिभा संपन्न रिहिन. उन बड़ मयारुक ढंग ले भजन गावंय. एकरे सेती उन गांधी जी के बड़ मयारुक होगे रिहिन. वर्धा आश्रम ले कुछ दिन बाद धनीराम जी अपन परिवार संग फेर वापस रायपुर आगे रिहिन अउ इहाँ के शक्ति बाजार म श्रीराम स्टोर खोल के जीवनयापन करे लागिन.
इहाँ तुलेन्द्र ह सेंटपाल स्कूल ले प्रथम श्रेणी म हाईस्कूल के परीक्षा पास करीस अउ उच्च शिक्षा खातिर नागपुर के साइंस कालेज चले गेइन. उहाँ छात्रावास म उनला रेहे खातिर जगा नइ मिलिस, त उन उहाँ के रामकृष्ण आश्रम म रेहे लागिन. इहें ले तुलेन्द्र के मन म स्वामी विवेकानंद के आदर्श ह संचरे लागिस. तुलेन्द्र नागपुर ले गणित म एम. एससी. के परीक्षा पास करीस. अउ संगवारी मन के सलाह म आईएएस के परीक्षा म शामिल होगें, जेमा उन दस झन पास होए लोगन म शामिल रिहिन. फेर मानव सेवा अउ विवेक दर्शन के जेन जोत उंकर मन म जलगे रिहिसे, तेकर सेती नौकरी के मोह म नइ परिन. आईएएस के मौखिक परीक्षा म शामिल नइ होइन.
देश ल आजादी मिले के बाद उन रामकृष्ण मिशन म जुड़ गिन. 1957 म रामकृष्ण मिशन के महाध्यक्ष स्वामी शंकरानंद जी ह तुलेन्द्र के प्रतिभा ले प्रभावित होके उनला ब्रम्हचर्य के दीक्षा देइन, अउ उंकर संन्यास जीवन के नांव धरिन स्वामी तेज चैतन्य. तेज चैतन्य ह अपन नांव के अनुरूप मिशन ल आलोकित करीस. सरलग विकास अउ साधना सिद्धि खातिर उन एक बछर तक हिमालय के स्वर्गाश्रम म रहिन. उहाँ कठिन साधना ल पूरा करे के पाछू फेर रायपुर आइन. इहाँ स्वामी भास्करेश्वरानंद जी के संग म रहिके संस्कार के शिक्षा लेइन, इहें फेर उनला स्वामी आत्मानंद के नवा नांव मिलिस.
आत्मानंद जी स्वामी विवेकानन्द जी के रायपुर म बीताए दिन के सुरता ल अविस्मरणीय बनाए खातिर रायपुर म विवेकानंद आश्रम बनाए के बड़का कारज चालू करिन. फेर एकर खातिर वोमन मिशन ले विधिवत अनुमति नइ लिए रिहिन हें, तेकर सेती बेलूर मठ ले उनला एकर स्वीकृति नइ मिलिस. तभो उन आश्रम के कारज ल पूरा करिन. फेर बाद म उनला बेलूर मठ ले संबद्धता घलो मिलगे. वोमन शासन द्वारा अनुरोध करे म इहाँ बस्तर के घोर जंगल के बीच नारायणपुर म घलो उच्च स्तरीय शिक्षा के केन्द्र स्थापित करिन.
वोमन अपन पूरा जिनगी ल नर रूपी नारायण के सेवा अउ शिक्षा म बीता देइन. 27 अगस्त 1989 के उन जब भोपाल ले रायपुर सड़क के रस्ता ले आवत रिहिन हें, तब राजनांदगाँव के तीर सड़क दुर्घटना म अपन आखिरी सांस लेइन.
स्वामी जी के परमधाम जाए के समाचार रायपुर के सबो पेपर मन म पहला पेज के खबर बने रिहिसे. हमन पहिली बेर इहाँ देखेन के सबो पेपर वाले मन ए समाचार ल रिवर्स माने पूरा के पूरा करिया रंग म छापे रिहिन हें. अइसन समाचार रायपुर के इतिहास म दुबारा तब देखे बर मिलिस जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्या होए रिहिसे.
स्वामी जी ल समाधि दे खातिर जब इहाँ के महादेव घाट ले जाए गिस तभो जेन जनसैलाब देखे गिस वो आज तक रायपुर के इतिहास म देखे ले नइ मिले हे, जेन ह स्वामी जी के जनमानस के बीच के लोकप्रियता ल बताथे. वो बखत विवेकानंद आश्रम ले लेके महादेव घाट तक सिरिफ लोगन के मुड़िच मुड़ी दिखय, एको जगा पांव राखे के जगा तक नइ दिखत राहय.
बहुत आगू दिन बीते के बाद मोर मन म स्वामी जी के ऊपर कुछ भजन लिखे के विचार होइस, त आठ-दस ठन रचना लिख के मैं स्वामी जी के सबले छोटे भाई अउ विवेकानंद विद्यापीठ के सचिव डा. ओमप्रकाश वर्मा जी ल देखाएंव. उंकर अनुमति मिले के पाछू रामकुंड रायपुर के प्रसिद्ध भजन गायक सुरेश ठाकुर ‘पंडा’ के माध्यम ले वोला संगीत अउ स्वरबद्ध कर के कैसेट के रूप दे रेहेन. उही म एक रचना ए मेर स्वामी जी न नमन करत प्रस्तुत हे….
आत्मा म आनंद भरइया स्वामी आत्मानंद
तोर संग मिल के लागिस जइसे मिलगे परमानंद…
जय हो स्वामी आत्मानंद…

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Shiwaye
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nora
Shiwaye
hotal trinatram
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मन मोर मइलाए रहिस हिरदे रहिस करिया
चिक्कन-चांदन उज्जर करे धोके तैं ह बढ़िया
मोह-माया अउ कपट के छोड़ाए तैं दुरगंध… जय हो..

राग-रंग म बूड़े राहन नइ जानन कुछू सेवा
तरी-उप्पर नाचत राहय पंड़की अउ परेवा
मिरगिन कस उछलन-कूदन ठाढ़ेच अड़दंग.. जय हो…

नाचा-गम्मत खेल-तमासा जिनगी इही लागय
दया-धरम के पाठ-पढ़ौना एतीच-तेती भागय
तोर सुर म सुर मिलाए कस अब जुड़ागे सबो अंग.. जय हो…

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Haresh pradhan

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