बंगाल चुनाव परिणाम आने के बाद से लगातार इस बात पर बहस हो रही है कि बंगाल में बीजेपी जीती है या हार गई.. सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक समीक्षक अपने अपने विश्लेषण लिख रहे हैं.. यदि चुनाव पूर्व बंगाल में बीजेपी नेताओं व कार्यकर्ताओं की मेहनत देखी जाऐ तो चुनाव परिणाम नि:संदेह उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते परंतु यदि 2016 विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें जिसमें बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थी तो भाजपा को मिली 77 सीटें बंगाल की धरती पर उनकी विचारधारा की जड़ों को और मजबूत करती दिखती हैं.. इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिले 35 प्रतिशत वोट शेयर पिछले लोकसभा चुनाव में मिले वोट शेयर से 10 प्रतिशत कम हैं पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मुद्दे और माहौल अलग अलग होते हैं..
भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार गृहमंत्री अमित शाह व भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने भले ही बीजेपी के लिए 200 पार का लक्ष्य दिया हो पर 3 सीट से सीधे 200 सीटों के पार पहुंचना आसान नहीं ये समीक्षक भी जानते हैं.. बडा लक्ष्य तय कर सूक्ष्मता से काम करना बीजेपी की पुरानी रणनीति रही है ऐसे में ये कहना कि भाजपा बंगाल में चुनाव हार गई है सही नहीं होगा.. भाजपा की सीटें उनके लक्ष्य से कम जरूर दिख रही हैं पर जमीन पर बारीकी से नजर डालें तो इस चुनाव में भाजपा ने खोया नहीं बल्कि पाया है.. कांग्रेस व वाम दलों का पूरी तरह सफाया होकर बीजेपी का मुख्य विपक्षी दल के रूप में बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना अपने आप में किसी उपलब्धि से कम नहीं.. टीएमसी व खुद मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के द्वारा चुनावी कैंपेन में बीजेपी को लगातार बाहरी बताना तथा बंगाल को बीजेपी से खतरा बताकर जोरशोर से उनके खिलाफ प्रचार करने के बावजूद बीजेपी की 77 सीटें आना तथा चुनाव में अधिकतर सीटों पर दूसरे नम्बर की पार्टी बनकर टीएमसी को चुनौती देना बंगाल में बीजेपी के बढते जनाधार को दर्शाता है..इस चुनाव ने एक बात को साफ कर दिया कि बंगाल में टीएमसी का विकल्प अगर कोई है तो वो केवल भाजपा है.. टीएमसी की अप्रत्याशित प्रचंड जीत और कांग्रेस व कम्यूनिस्ट पार्टी का सफाया दोनों का आपस में कहीं न कहीं संबंध है जो कांग्रेस व वाम दल के वोटरों का टीएमसी की ओर शिफ्ट होने का इशारा करते हैं.. यदि ऐसा स्थाई रूप से हुआ तो आने वाले वक्त में भाजपा ही एकमात्र पार्टी होगी जो बंगाल में टीएमसी को न केवल कडा मुकाबला प्रस्तुत करेगी बल्कि टीएमसी सरकार की ऐंटीइंकम्बेंसी में जनता के सामने विकल्प भी होगी.. बंगाल चुनाव परिणाम को बीजेपी की हार के तौर पर देखने वाली अन्य विपक्षी पार्टियां टीएमसी को बधाई देकर अभी भले खुश हो लें पर देश की सबसे पुरानी दोनों पार्टियां कांग्रेस व वाम दलों के लिए बंगाल में अपनी जमीन वापस पाना मुश्किल होगा.. बहरहाल..बंगाल में टीएमसी की जीत का जश्न बीजेपी कार्यकर्ताओं की जान लेकर मनाया जा रहा है देखना है सत्ता वापसी के मद में चूर टीएमसी व मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की ‘खेला होबे’ का खूनी खेला कब तक चलता है..
#आलेख..
संतोष दास ‘सरल’
जिला संवाद प्रमुख
भाजपा सरगुजा.
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