चित्रगुप्त पूजा शुभ मुहूर्त 2024: हिन्दूधर्म में मनुष्यों के अच्छे-बुरे कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा यानी प्रधान लेखपाल भगवान चित्रगुप्त का इतिहास!
चित्रगुप्त पूजा शुभ मुहूर्त 2024: हिन्दूधर्म में मनुष्यों के अच्छे-बुरे कर्मों और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा यानी प्रधान लेखपाल भगवान चित्रगुप्त का इतिहास!
सनातन धर्म में चित्रगुप्त पूजा हर साल कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि के दिन यानी दिवाली के दूसरे दिन यम द्वितीया और भाई दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस तिथि को उनकी उत्पत्ति हुई थी। पंचांग के अनुसार, इस साल चित्रगुप्त पूजा 3 नवंबर 2024 को की जाएगी। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 2 नवंबर, 2024 की रात में 8 बजकर 21 मिनट पर हो रही है और इस तिथि की समाप्ति 3 नवंबर की रात में 10 बजकर 5 मिनट पर होगी। पंडितों के अनुसार, इस दौरान भगवान चित्रगुप्त की पूजा का शुभ मुहूर्त रविवार 3 नवंबर, 2024 को सुबह 07।57 AM से दोपहर 12।04 PM तक बन रहा है।
धर्मराज भगवान चित्रगुप्त सनातनी हिन्दुओं के महाशक्तिशाली देवता हैं इनके शक्तियों का वर्णन शिव पुराण भविष्य पुराण और गरुण पुराण विष्णु पुराण में है कायस्थ राजवंश उन्हीं की देन है वे देवताओं में सर्वश्रेष्ठ राजाधिराज सकार एवं निराकार साक्षात परम् ब्रहम् हैं महा महाकाल हैं उनके हाँथ में कलम दवात शंख चक्र गदा तलवार आदि शस्त्र हैं वे ही अनंत सर्वशक्तिमान परमात्मा हैं। स्वयं पवन पुत्र श्री भटनागर हनुमान जी भी उन्हीं के वंशज हैं। बजरंग बाण में इसका वर्णन उपलब्ध है।
येनेदं स्वेच्छया सर्वं मायया मोहितं जगत्।
स जयत्यजितः श्रीमान् कायस्थः परमेश्वरः!!
गरुड़ पुराण के अनुसार उन्हे सृष्टि का कार्य भार सौंप दिया गया और यमराज को भी यमपुरी में कार्य सौंप दिया गया और उनके न्यायाधीश और राजा का कार्य धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज को सौंप दिया भगवान चित्रगुप्त महाराज के वंशजों को कायस्थ कहा जाता हैं कायस्थ अपने कुल देव की तरह समय समय पर कलम शास्त्र और शस्त्र की सदैव पूजा एवं उपयोग भी करते हैं कायस्थ राजवंश में कई महान शासक,योद्धा,मंत्री,वैज्ञानिक,कवि,लेखक,स्वंतंत्रता सेनानी और साधुसंत, प्रधानमंत्री, आर्मीचीफ, खिलाड़ी,आईएएस अधिकारी,आईपीएस अधिकारी, शिक्षक, वकील, जज साहब, जैसे दुनिया के सबसे ताकतवर नौसेना के जनक चक्रवर्ती सम्राट राजेंद्र प्रताप चोल और चक्रवर्ती सम्राट राज प्रताप चोल एवं कार्कोंट राजवंश के महान शासक चक्रवर्ती सम्राट राजा ललितादित्य मुक्तपीड जिन्हें भारत का सिकन्दर कहा जाता है और मुगल काल में भी अपने देश की संपति को बचाए रखने के लिए मंत्री टोडरमल भी कायस्थ राजवंश से थे महान दार्शनिक आध्यात्मिक क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद जी और स्वतंत्र देश के पहले प्रधानमंत्री आजाद हिन्द फौज के महान् नायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस,लाल बहादुर श्रीवास्तव( शास्त्री ) भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी, और कार्कोंट राजवंश के राजवंशी राणा विक्रमादित्य एवं इस प्रकार के असंख्य एवं अनगिनत महापुरुष देवपुरुष कायस्थ राजवंश की शान को शोभायमान करते हैं !
गरुड़ पुराण में यमलोक में चित्रगुप्त के शाही सिंहासन, उनके दरबार को संभालने और पुरुषों के कर्मों के अनुसार न्याय देने के साथ-साथ उनके रिकॉर्ड बनाए रखने का वर्णन है।
धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ. इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा. भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है.
भगवान चित्रगुप्त के वंशजों को कायस्थ कहा जाता है. इनके वंशजों के बारे में कुछ खास बातेंः
भगवान चित्रगुप्त की दो पत्नियां थीं:
शुभावती, जो ब्राह्मण सुशर्मा की बेटी थीं
नंदिनी, जो चत्रिया श्रद्धादेव मनु की बेटी क्षत्रिय कन्या थी,
चित्रगुप्त के 12 पुत्र थे, जिनके नाम ये रहे:
चारु, सुचारु, चित्र, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण, अतीन्द्रिय, भानु, विभानु, विश्वभानु, वीर्य्यावान.
दंतकथाओं के मुताबिक, चित्रगुप्त का जन्म ब्रह्मा ने चार वर्णों की स्थापना के बाद किया था. उन्होंने यम को आदेश दिया था कि वह धरती, स्वर्ग, और भूमि पर पैदा होने वाले सभी जीवों के अच्छे और बुरे कर्मों का रिकॉर्ड रखे
अतीन्द्रिय चित्रगुप्त के बारह पुत्रों में से सबसे ज़्यादा धर्मनिष्ठ और सन्यासी प्रवृत्ति वाले थे. इन्हें ‘धर्मात्मा’ और ‘पंडित’ नाम से भी जाना जाता है.
इन बारह पुत्रों के दंश के अनुसार कायस्थ कुल में १२ शाखाएं हैं जो – श्रीवास्तव, सूर्यध्वज, वाल्मीकि, अष्ठाना, माथुर, गौड़, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण, कुलश्रेष्ठ नामों से चलती हैं। अहिल्या, कामधेनु, धर्मशास्त्र एवं पुराणों के अनुसार इन बारह पुत्रों का विवरण इस प्रकार से है।।
कायस्थ समुदाय के लोग अपने कुल देव की तरह समय-समय पर कलम-शास्त्र और शस्त्र की पूजा करते हैं.
कायस्थ समुदाय कई राज्यों में फैला हुआ है, जैसे कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली वगैरह
भगवान चित्रगुप्त के बारे में कुछ खास बातेंः
भगवान चित्रगुप्त, यमराज के मुंशी हैं. वे मनुष्यों के पाप-पुण्य का हिसाब रखते हैं और उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेते हैं.
भगवान चित्रगुप्त को न्याय का देवता माना जाता है.
भगवान चित्रगुप्त को ब्रह्मा जी की संतान माना जाता है.
भगवान चित्रगुप्त को भारत और नेपाल की हिंदू कायस्थ जाति का जनक देवता माना जाता है.
भगवान चित्रगुप्त को अक्षरों का दाता कहा जाता है.
भगवान चित्रगुप्त की पूजा कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यानी यम द्वितीया को की जाती है.
भगवान चित्रगुप्त की पूजा में कलम का पूजन भी किया जाता है.
भगवान चित्रगुप्त के चार धाम हैं – उज्जैन, कांचीपुरम, अयोध्या, और पटना.
भगवान चित्रगुप्त के कई मंदिर हैं, जिनमें से कुछ खास मंदिर खजुराहो, प्रयागराज, हैदराबाद, वाराणसी, भोपाल, रीवा, भरमौर, नई दिल्ली, मैहर, गुना, गया, बक्सर, कानपुर, जबलपुर, ग्वालियर, शिवपुरी, जगन्नाथपुरी, और गोरखपुर में हैं.
चित्रगुप्त पूजा वाले दिन व्यापारी समुदायों और कायस्थ समाज में कलम-दवात, खाता-बही, नोटबुक और कागज की पूजा की जाती है। कारोबारियों के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है, इस दिन नई किताबों पर ‘श्री’ लिखकर काम की शुरुआत की जाती है। संपूर्ण आय-व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित किया जाता है। इसे ‘कलम-दवात पूजा’ कहते हैं। मान्यता है इससे व्यापार में तरक्की होती है। कलम-दवात पूजा के दिन भगवान चित्रगुप्त का स्मरण करने से कार्य में उन्नति, आकर्षक वाणी और बुद्धि में वृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।
डिस्क्लेमर : यहां दी गई जानकारी ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। प्रदेश खबर इसकी पुष्टि नहीं करता है।