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हौसले की मिसाल: दिव्यांग बुन्देल कुमार की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक कहानी

हौसले की मिसाल: दिव्यांग बुन्देल कुमार की संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक कहानी

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अंबिकापुर | सफलता का कोई निश्चित मापदंड नहीं होता, यह उन लोगों की दृढ़ इच्छाशक्ति और संघर्ष की कहानी होती है, जो विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपने सपनों को साकार करने के लिए आगे बढ़ते हैं। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है अंबिकापुर के केदारपुर में रहने वाले दिव्यांग बुन्देल कुमार की, जिन्होंने अपने संघर्ष और आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। जन्म से दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने जीवन की चुनौतियों को हराकर साइकिल रिपेयरिंग की दुकान शुरू की और न केवल अपनी आजीविका चलाई बल्कि अपने माता-पिता की देखभाल भी कर रहे हैं।

संघर्ष से आत्मनिर्भरता तक का सफर

बुन्देल कुमार मूल रूप से जशपुर जिले के सन्ना क्षेत्र के रहने वाले हैं। उनके माता-पिता किसान हैं और खेती-किसानी से ही परिवार का गुजारा चलता था। सीमित संसाधनों और शारीरिक अक्षमता के बावजूद, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और आत्मनिर्भर बनने की ठानी। रोजगार की तलाश में वे अंबिकापुर आए और यहां एक छोटी-सी साइकिल रिपेयरिंग दुकान खोली।

शुरुआती दिनों में उनके लिए यह सफर आसान नहीं था। साइकिल रिपेयरिंग की तकनीकी जानकारी तो थी लेकिन ग्राहकों को जोड़ना और काम को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और ईमानदारी से धीरे-धीरे पहचान बनाई। उनकी दुकान में ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी और उनकी आमदनी भी बेहतर हुई।

शासन की योजनाओं से आसान हुआ सफर

दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सरकार की योजनाएं किसी संजीवनी से कम नहीं होतीं। पहले बुन्देल कुमार को दुकान तक पहुंचने और जरूरी सामान लाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। लेकिन छत्तीसगढ़ शासन के समाज कल्याण विभाग द्वारा प्रदान की गई ट्राइसाइकिल से उनका सफर काफी आसान हो गया। अब वे अपनी दुकान के लिए जरूरी सामान आसानी से ला सकते हैं और अपने ग्राहकों को बेहतर सेवा दे सकते हैं।

हाल ही में उनकी ट्राइसाइकिल की बैटरी खराब हो गई थी, लेकिन उन्होंने विभाग को इसकी सूचना दी और प्रशासन ने तुरंत उनकी बैटरी बदल दी। यह प्रशासन की तत्परता और दिव्यांग हितैषी नीतियों का प्रमाण है, जिससे उनकी जीवनशैली में बड़ा बदलाव आया है।

स्वावलंबन की मिसाल

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बुन्देल कुमार न केवल अपने जीवन में आत्मनिर्भर बने हैं बल्कि अपने माता-पिता को भी आर्थिक रूप से सहायता कर रहे हैं। वे अपनी दुकान से होने वाली कमाई का एक हिस्सा गांव में अपने माता-पिता को भेजते हैं, जिससे उनके परिवार का जीवनयापन सुचारू रूप से चलता है।

उनका कहना है, “जब तक हम खुद पर विश्वास नहीं करेंगे, तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते। मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती होती थी, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी। सरकार की योजनाओं ने मेरी राह को थोड़ा आसान किया, लेकिन असली लड़ाई मुझे खुद ही लड़नी थी।”

प्रशासन की पहल और योजनाओं का प्रभाव

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। समाज कल्याण विभाग द्वारा दी जाने वाली ट्राइसाइकिल, पेंशन, स्वरोजगार योजनाएं और अन्य सहायता से दिव्यांग व्यक्तियों को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। बुन्देल कुमार भी इस योजना के लाभार्थियों में से एक हैं और वे प्रशासन द्वारा मिली सहायता के लिए आभार प्रकट करते हैं।

उनका कहना है कि सरकार की सहायता ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया है और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिली है। वे चाहते हैं कि और भी दिव्यांग व्यक्ति इन योजनाओं का लाभ उठाकर आत्मनिर्भर बनें और समाज में एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करें।

समाज के लिए प्रेरणा

बुन्देल कुमार जैसे व्यक्तित्व समाज के लिए एक प्रेरणा हैं। वे साबित करते हैं कि यदि इच्छाशक्ति प्रबल हो तो कोई भी बाधा सफलता की राह में रोड़ा नहीं बन सकती। उनकी कहानी उन हजारों दिव्यांग व्यक्तियों के लिए आशा की किरण है, जो कठिनाइयों से घबराकर अपने सपनों को अधूरा छोड़ देते हैं।

उनकी मेहनत, लगन और आत्मनिर्भरता दर्शाती है कि समाज की सकारात्मक सोच और सरकारी योजनाओं की मदद से दिव्यांगजन भी एक सफल जीवन जी सकते हैं। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि संघर्ष के बिना सफलता अधूरी होती है और अगर हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती।

बुन्देल कुमार की यह कहानी केवल उनकी नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की कहानी है, जो विपरीत परिस्थितियों के बावजूद संघर्ष कर रहे हैं। यह सरकार, समाज और आम जनता के लिए भी एक संदेश है कि दिव्यांग व्यक्तियों को केवल सहानुभूति की नहीं, बल्कि अवसरों और सहायता की आवश्यकता है।

इस कहानी से यह स्पष्ट होता है कि यदि हौसले मजबूत हों और सही संसाधन उपलब्ध हों, तो दिव्यांग व्यक्ति भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं और अपने सपनों को साकार कर सकते हैं।

Ashish Sinha

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