
इंजीनियर और आर्किटेक्ट की सक्षमता एकसमान साथ ही क्या निगम निष्पक्ष कार्यवाही करेगी?
विगत कुछ दिनों में अवैध निर्माण को लेकर निगम द्वारा की गई कार्यवाही प्रशंसनीय है, और कंसल्टिंग सिविल इंजीनियर्स एसोसिएशन(CCEA) सदैव इसके समर्थन में है।
गौरतलब है की इन सारे घटनाक्रमों में अनेकों बार आर्किटेक्ट शब्द का उपयोग किया गया, जिसका विरोध आर्किटेक्ट संघ द्वारा किया गया जो कि उचित भी है, क्योंकि संबंधित सलाहकार को अक्सर आर्किटेक्ट कह कर संबोधित किया जाता है, लेकिन तकनीकी तौर पर आर्किटेक्ट और अभियंता दो अलग प्रकार की शैक्षणिक योग्यता धारण करते है, और जीवन द्वारा (आर्किटेक्ट और अभियंता) दोनों ही को लगभग एक समान ही सक्षमता प्रदान की जाती है। इस हेतु बिलासपुर कंसल्टिंग इंजीनियर संयुक्त एसोसिएशन द्वारा वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ शासन की विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर के तत्कालीन आदेश में संशोधन भी करवाया गया था।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम को मीडिया पर इस तरह प्रस्तुत किया गया जैसे कि अभियंता भवन निर्माण आवेदन हेतु पात्र ही नहीं है, वस्तुतः अभियंता एवं आर्किटेक्ट दोनों ही इस हेतु सक्षमता रखते है।
अब बात आती है भवन निर्माण के दौरान होने वाले पर्यवेक्षण की, नियमतः पर्यवेक्षण हेतु (अभियंता/ आर्किटेक्ट/ पर्यवेक्षक) ही स्थल पर स्वीकृतिनुसार निर्माण हेतु जिम्मेदार होता है, उस हेतु जिस भी अभियंता/ आर्किटेक्ट/ पर्यवेक्षक ने शपथ पत्र दिया होता है, वही जिम्मेदार होता है।
वर्तमान प्रकरण में विकास सिंह उस हेतु जिम्मेदार है , और उसे भवन अनुज्ञा हेतु तकनीकी सलाहकार के रूप में कार्य करने की पात्रता नहीं है केवल आर्किटेक्ट ही इसके लिए एकमात्र विकल्प है, जो कि भ्रम है एवं सर्वथा अनुचित
अभियंता और आर्किटेक्ट दोनों हैं सक्षमः हाईकोर्ट में भी हुआ है स्पष्टीकरण
एसोसिएशन ने यह भी स्पष्ट किया कि तकनीकी रूप से आर्किटेक्ट और सिविल इंजीनियर दोनों अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताएं रखते हैं, लेकिन नगर निगम की गाइडलाइन दोनों को समान रूप से तकनीकी सलाहकार के रूप में मान्यता देती है। वर्ष 2011 में इसी मुद्दे पर बिलासपुर कंसल्टिंग इंजीनियर्स संघ ने छत्तीसगढ़ शासन के आदेश के विरुद्ध माननीय उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, और आदेश में संशोधन भी करवाया गया था। इसलिए यह कहना कि केवल आर्किटेक्ट ही भवन अनुज्ञा हेतु पात्र हैं, पूरी तरह अनुचित है।
पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी शपथपत्र पर निर्भर
CCEA ने यह भी दोहराया कि भवन निर्माण के दौरान पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी उस तकनीकी सलाहकार की होती है जिसने निगम को शपथपत्र दिया होता है – चाहे वह अभियंता हो, आर्किटेक्ट हो या अधिकृत पर्यवेक्षक। अतः किसी भी अवैध निर्माण के लिए संबंधित शपथकर्ता को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, न कि समस्त वर्ग को।
दोहरे मानदंडों पर सवाल, रिसाली निकाय के निर्णय पर जताई चिंता
एसोसिएशन ने प्रदेश के अन्य निकायों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाया। उन्होंने बताया कि जहां एक ओर बिलासपुर नगर निगम अवैध निर्माण पर सख्ती दिखा रहा है, वहीं दूसरी ओर रिसाली नगर निगम, भिलाई द्वारा अवैध निर्माण को सशुल्क वैध करने का प्रस्ताव दिया जा रहा है। इससे अवैध निर्माण को अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन मिलेगा और नागरिकों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी। सीसीईए ने पूछा कि क्या प्रशासन अलग-अलग निकायों में अलग नीति अपनाकर दोहरा संदेश देना चाहता है?
अभियंताओं के व्यवसाय पर मंडरा रहा संकट
एसोसिएशन ने चिंता जताई कि यदि तकनीकी भ्रम को समय रहते दूर नहीं किया गया, तो नगर निगम में पंजीकृत सैकड़ों अभियंताओं और पर्यवेक्षकों के व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। अतः प्रशासन से आग्रह किया गया है कि वह अभियंता और आर्किटेक्ट की सक्षमता को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे, ताकि समाज में कोई असमंजस की स्थिति न बने।
क्या निगम लाइसेंस निलम्बन के बाद उचित कार्यवाही करेगी….?
भूमि विकास अधिनियम का हवाला देकर पंजीकृत अनुज्ञाधारी की अनुज्ञा निलंबित की गई है, अधिनियम के अनुसार पर्यवेक्षक निलंबन के पश्चात संबंधित निर्माण की अनुमति स्वमेव निरस्त हो जाती है, एवं इसके बाद होने वाला निर्माण अवैध माना जाता है। उम्मीद है निगम द्वारा हाल ही में स्वमेव निरस्त होने वाली अनुमति वाले निर्माण प्रकरणों में अवैध निर्माण न हो , इसके लिए उचित कार्यवाही की जाएगी..?
सीसीईए प्रतिनिधिमंडल ने सौंपा ज्ञापन
इस अवसर पर परामर्श सिविल इंजीनियर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों – दीपक अग्रवाल, दीपक उपाध्याय, आलोक त्रिवेदी, शुभम् शर्मा, वी. एस. शास्त्री, प्रवीण नायडू, सुजीत गुप्ता, हेतराम श्रीवास, जोगेश सेन, गिरीश पाठक एवं अन्य सदस्यगण – ने नगर निगम प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हुए अपनी बात रखी।