
क्या निगम की कार्रवाई निष्पक्ष है या किसी विशेष वर्ग को टारगेट किया जा रहा है?
क्या निगम की कार्रवाई निष्पक्ष है या किसी विशेष वर्ग को टारगेट किया जा रहा है
इंजीनियर और आर्किटेक्ट की बराबरी पर CCEA ने उठाए सवाल, नीति की पारदर्शिता पर गंभीर चिंता
बिलासपुर। नगर निगम की ओर से हाल ही में किए गए अवैध निर्माण पर शिकंजा कसने की कार्रवाई की जहां सराहना हो रही है, वहीं अब इस पर गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
कंसल्टिंग सिविल इंजीनियर्स एसोसिएशन (CCEA) ने नगर निगम आयुक्त एवं महापौर से मुलाकात कर प्रशासनिक प्रक्रिया की निष्पक्षता, पारदर्शिता और तकनीकी समझ को लेकर 5 अहम सवाल पूछे हैं, जिनके उत्तर सार्वजनिक हित में अपेक्षित हैं।
CCEA के वो 5 सीधे सवाल जो अब जवाब मांगते हैं:
- क्या इंजीनियर और आर्किटेक्ट की तकनीकी भूमिका और योग्यता समान नहीं है?
जब दोनों के पास मान्य डिग्री और पर्यवेक्षण का अधिकार है, तो ‘केवल आर्किटेक्ट’ को सक्षम बताना क्या तकनीकी भेदभाव नहीं? - क्या निगम चुनिंदा इंजीनियरों को ही टारगेट कर रहा है?
यदि स्वीकृति पत्र पर दस्तखत अभियंता ने किया है, तो उसे जिम्मेदार ठहराना ठीक है। लेकिन क्या सब पर समान नियम लागू हो रहे हैं? - जब नगर निगम में दर्जनों तकनीकी विशेषज्ञ पंजीकृत हैं तो फिर यह असमंजस क्यों?
CCEA का कहना है कि निगम स्वयं अपने रिकॉर्ड में इंजीनियरों को तकनीकी सलाहकार के रूप में मान्यता देता है, फिर भी चयनात्मक कार्रवाई क्यों? - क्या मिताली नगर निगम जैसे क्षेत्रों में अवैध निर्माण पर मौन स्वीकृति नीति नहीं दर्शाती?
एक ही राज्य में दो मापदंड क्यों — एक तरफ सख्ती और दूसरी तरफ चुप्पी? - क्या इस पूरे विवाद की जड़ तकनीकी मतभेद है या प्रशासनिक पूर्वाग्रह?
जब तकनीकी योग्यता पर कोर्ट तक मामला गया और दोनों को बराबरी मिली, तो अब विवाद क्यों?
मामले का तकनीकी पक्ष:
वर्ष 2011 में ही छत्तीसगढ़ शासन के आदेश के खिलाफ CCEA ने याचिका दायर की थी, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि इंजीनियर और आर्किटेक्ट दोनों को भवन निर्माण में समान तकनीकी सलाहकार की भूमिका मिलनी चाहिए। न्यायालय ने उस समय संशोधन के निर्देश भी दिए थे।
CCEA का तर्क है कि भवन निर्माण में उत्तरदायित्व उस व्यक्ति का होता है जिसने शपथ पत्र देकर स्वीकृति दी हो, फिर चाहे वह इंजीनियर हो या आर्किटेक्ट।
प्रशासनिक उलझन या नीतिगत भ्रम?
बिलासपुर नगर निगम में पंजीकृत पर्यवेक्षकों, अभियंताओं और आर्किटेक्ट की लंबी सूची है। इसके बावजूद एक ही श्रेणी के पेशेवरों को बार-बार अयोग्य बताना क्या जानबूझकर भ्रम फैलाना नहीं?
CCEA की मांग:
संगठन ने प्रशासन से मांग की है कि स्पष्ट आदेश जारी कर यह तय किया जाए कि इंजीनियर और आर्किटेक्ट दोनों को बराबरी की मान्यता मिले, ताकि क्षेत्रीय प्रशासन में कोई भ्रम या गुटबाजी न फैले।
यह विवाद अब केवल अनुमति रद्द होने या भवन अवैध घोषित होने का नहीं है,
बल्कि यह प्रशासनिक सोच, नीति की समानता और तकनीकी गरिमा का सवाल बन गया है।
यदि प्रशासन इसपर स्पष्टता नहीं लाता, तो आने वाले समय में यह तकनीकी मामला कानूनी और राजनीतिक लड़ाई में तब्दील हो सकता है।