
कुशीनगर कृषि विभाग का दफ्तर बना खंडहर: जर्जर छत के नीचे काम कर रहे कर्मचारी, किसान आक्रोशित
यूपी सरकार के किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के बीच कुशीनगर (सुकरौली, हाटा) में 1992 में बना कृषि प्रसार अधिकारी का कार्यालय खंडहर बन गया है। 3 कर्मचारी जर्जर भवन में काम करने को मजबूर हैं। किसान कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही से सवाल पूछ रहे हैं।
किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के बीच कुशीनगर कृषि विभाग का दफ्तर बना खंडहर, जर्जर छत के नीचे काम करने को मजबूर कर्मचारी
कुशीनगर, उत्तर प्रदेश: एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की प्रगति और आय दोगुनी करने के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं दूसरी ओर कुशीनगर में कृषि विभाग का एक जर्जर भवन इन सरकारी घोषणाओं की सच्चाई बयां कर रहा है। कभी किसानों के लिए “मील का पत्थर” रहा यह कार्यालय अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।
जर्जर ढांचे में काम करने को मजबूर कर्मचारी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, उपसम्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी, हाटा (सुकरौली) का यह कार्यालय भवन वर्ष 1992 में तत्कालीन कृषि एवं उद्यान मंत्री गंगाभक्त सिंह द्वारा शुरू किया गया था। इस भवन में कभी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला चलती थी और किसानों को आधुनिक खेती के तरीकों का प्रशिक्षण दिया जाता था।
लेकिन अब यह भवन बदहाली की चरम सीमा पर है। दीवारें जर्जर हैं, छत टपकती है, और किसानों की मिट्टी जांचने वाली लैब पूरी तरह बंद हो चुकी है।
- कर्मचारियों की स्थिति: भवन में वर्तमान में केवल तीन कर्मचारी (एक बाबू और दो अन्य) कार्यरत हैं, जो गिरते-टूटते ढांचे के नीचे काम करने को मजबूर हैं।
- फील्ड स्टाफ: 15 कर्मचारी फील्ड में कार्यरत हैं, लेकिन दफ्तर के कर्मचारियों की जान हर पल जोखिम में है।
किसानों का आरोप: मंत्री के गृह जिले में भी यही हाल
स्थानीय किसानों में इस स्थिति को लेकर भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि यह स्थिति और भी शर्मनाक है क्योंकि प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही स्वयं देवरिया जिले के निवासी हैं, जो कुशीनगर से सटा हुआ है।
किसानों का सीधा आरोप है कि सरकार केवल मंचों और भाषणों में ही किसानों की चिंता जताती है, जबकि जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। कृषि विभाग का यह खंडहर हो चुका भवन सरकार के दावों की पोल खोल रहा है।
क्या सरकार लेगी सुध?
सवाल यह उठता है कि क्या सरकार इस उपसम्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी कार्यालय की मरम्मत और जीर्णोद्धार की दिशा में कोई ठोस कदम उठाएगी? या फिर यह ऐतिहासिक भवन, जिसके बनने पर किसानों को खुशी मिली थी, अपनी बेबसी पर आंसू बहाता रहेगा और कर्मचारियों को जान जोखिम में डालकर काम करना पड़ेगा। किसानों ने जल्द से जल्द भवन की मरम्मत की मांग की है।