
संघर्ष से सफलता तक: लखपति दीदी बनीं ये बहनें, आत्मनिर्भरता की मिसाल
संघर्ष से सफलता तक: लखपति दीदी बनीं ये बहनें, आत्मनिर्भरता की मिसाल
अंबिकापुर। आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की शक्ति जब किसी के हौसले के साथ मिलती है, तो असंभव को भी संभव बना देती है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हम आपको ऐसी दो बहनों की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने न केवल अपनी जिंदगी को संघर्षों से बाहर निकाला, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन गईं। इनकी यह यात्रा एक मिसाल है कि किस तरह आत्मनिर्भरता की राह पर चलकर महिलाएं अपने और अपने परिवार के लिए एक नया भविष्य गढ़ सकती हैं।
संघर्ष की राह और नया अवसर
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के लखनपुर विकासखंड के ग्राम पंचायत कटिंदा की रहने वाली दो बहनें—फजरुनिशा और ताहरुनिशा—आज पूरे क्षेत्र में ‘लखपति दीदी’ के नाम से जानी जाती हैं। यह पहचान उन्हें आसानी से नहीं मिली, बल्कि इसके पीछे सालों की मेहनत, संघर्ष और साहस की कहानी छिपी है। इनके पिता सिलाई का काम करते थे, लेकिन गांव में आय के सीमित साधन होने के कारण घर चलाना मुश्किल था।
इन कठिनाइयों के बीच भी उन्होंने हार नहीं मानी और स्वयं सहायता समूहों से जुड़कर आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाया। यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन दोनों बहनों ने हर कठिनाई का डटकर सामना किया और अपने प्रयासों से सफलता की नई कहानी लिखी।
बिहान योजना: बदलाव की शुरुआत
वर्ष 2016 में फजरुनिशा और ताहरुनिशा ने अन्य महिलाओं के साथ मिलकर ‘जीवन दीप स्व सहायता समूह’ का गठन किया और बिहान योजना से जुड़ीं। यह योजना उनके जीवन में एक नई रोशनी लेकर आई। समूह के माध्यम से उन्होंने पहली बार लोन लिया और फोटो कॉपी एवं स्टेशनरी का व्यवसाय शुरू किया। यह उनका पहला व्यावसायिक कदम था, जिसने उनकी आत्मनिर्भरता की राह को प्रशस्त किया।
इस व्यवसाय से उन्हें जो आमदनी हुई, उसने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया और वे अन्य आर्थिक गतिविधियों की ओर कदम बढ़ाने लगीं। उन्होंने समूह के माध्यम से दोबारा लोन लिया और खेत में बोरिंग करवाकर ईंट बनाने का काम शुरू किया। यह उनका दूसरा बड़ा व्यवसाय था, जिसने उन्हें और अधिक आर्थिक मजबूती दी।
स्वास्थ्य संकट और नया संघर्ष
वर्ष 2022 में जब कोरोना महामारी ने पूरे देश को अपनी चपेट में लिया, तब ताहरुनिशा को कोविड संक्रमण हो गया। इसी दौरान फजरुनिशा की तबीयत भी खराब रहने लगी। जब उन्होंने जांच कराई, तो पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हो गया है और वह तीसरे स्टेज में पहुंच चुका है। यह खबर किसी वज्रपात से कम नहीं थी।
इस कठिन समय में उनके पास हिम्मत और आत्मविश्वास के अलावा कुछ नहीं था। परिवार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इलाज के लिए धन का इंतजाम करना था। लेकिन इसी दौरान बिहान योजना उनके लिए संजीवनी बन गई। उन्होंने समूह के माध्यम से 80 हजार रुपए का लोन लिया और इलाज के लिए बड़े शहर गईं। इलाज के दौरान जब पैसे खत्म होने लगे, तब आयुष्मान कार्ड ने उनकी मदद की और इलाज संभव हुआ। इस कठिन समय ने उन्हें और मजबूत बना दिया।
आर्थिक मजबूती की ओर कदम
स्वास्थ्य संकट से उबरने के बाद दोनों बहनों ने पुनः अपने व्यवसाय को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने एक लाख रुपए का लोन लिया और किराना दुकान शुरू की। यह उनके लिए एक स्थायी आय का स्रोत बन गया। इसके अलावा, उन्होंने कबूतर पालन का व्यवसाय भी शुरू किया, जिससे उन्हें हर महीने 10 से 15 हजार रुपए की शुद्ध आय होने लगी।
अब उनका परिवार आर्थिक रूप से सक्षम हो चुका था। वे न केवल खुद आत्मनिर्भर बनीं, बल्कि अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करने लगीं। उनकी कहानी सुनकर कई अन्य महिलाओं ने भी स्वयं सहायता समूह से जुड़कर अपने जीवन में बदलाव लाने की दिशा में कदम बढ़ाए।
महिला सशक्तिकरण का नया उदाहरण
आज फजरुनिशा और ताहरुनिशा पूरे जिले में महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन गई हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि अगर हौसला मजबूत हो और सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो कोई भी महिला आत्मनिर्भर बन सकती है। वे अब अन्य महिलाओं को भी समूहों से जुड़ने और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
सरकार की बिहान योजना ने उन्हें न केवल आर्थिक रूप से मजबूत किया, बल्कि उनके जीवन में एक नई रोशनी भी लाई। उनका मानना है कि महिलाएं अगर संगठित होकर कार्य करें, तो वे किसी भी कठिनाई को पार कर सकती हैं और अपने परिवार के लिए एक बेहतर भविष्य बना सकती हैं।
लखपति दीदी बनने का सपना और आगे की राह
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल के बजट में 8 लाख महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनाने का लक्ष्य रखा है। फजरुनिशा और ताहरुनिशा चाहती हैं कि जिस तरह उन्हें बिहान योजना से लाभ मिला, उसी तरह अन्य महिलाओं को भी इसका फायदा मिले और वे आत्मनिर्भर बनें। उनकी यह यात्रा यह संदेश देती है कि अगर इच्छाशक्ति प्रबल हो, तो कोई भी महिला सफलता की नई ऊंचाइयों को छू सकती है।
इनकी कहानी सिर्फ आर्थिक सशक्तिकरण की नहीं, बल्कि साहस और संघर्ष की भी है। यह उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने जीवन में बदलाव लाने का सपना देखती हैं।