दुर्गा दुर्गति दूर कर, पूरण कर हर आस, भर दो जननी जगत् के, जन-जन में उल्लास……
दुर्गा दुर्गति दूर कर, पूरण कर हर आस, भर दो जननी जगत् के, जन-जन में उल्लास……
नवरात्रि पर तुलसी साहित्य समिति की भक्तिमय काव्यगोष्ठी
ब्यूरो चीफ/सरगुजा// नवरात्रि के उपलक्ष्य में तुलसी साहित्य समिति के द्वारा केशरवानी भवन में शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में सरस भक्तिपूर्ण काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गीता मर्मज्ञ, विद्वान पं. रामनारायण शर्मा, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एसपी जायसवाल, शिक्षाविद् ब्रह्माशंकर सिंह, अंजनी कुमार सिन्हा, आशा पाण्डेय और आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर थे।
काव्यगोष्ठी का शुभारंभ भगवती मां दुर्गा व सरस्वती की पूजा-अर्चना से हुआ। कवयित्री पूनम दुबे ने मां के आराधना स्वरूप मार्मिक भक्ति गीत की प्रस्तुति देकर सबको भावविभोर कर दिया। पं. रामनारायण शर्मा ने कहा कि मां दुर्गा के रूप अनंत हैं। एक ही शक्ति विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होकर लोकमंगल करती है। देवी को मुख्यतः सरस्वती, लक्ष्मी और काली नाम दिया गया है। देवशक्तियों का परित्राण और दानवी शक्तियों का दमन- संहार आदि मां जगदम्बा के मुख्य कार्य हैं। दस महाविद्या के नाम से भी इनकी आराधना की जाती है। ज्ञान, बल, क्रियाशीलता में वृद्धि देवी की आराधना से प्राप्त होती है। शिक्षाविद् ब्रह्माशंकर सिंह का कहना था कि मां महामाया पुत्र, धन-सम्पत्ति आदि सभी सुविधाएं प्रदान करती हैं परन्तु बंधन से मुक्ति नहीं मिलती है। फलस्वरूप मनुष्य परमेश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता। तमोगुण, रजोगुण व सतोगुण अर्थात् माया का आवरण जीव को निरंतर घेरे हुए है। तत्वज्ञानी बनने व बंधन मुक्ति हेतु मनुष्य को भगवान कृष्ण की शरण लेनी पड़ेगी और गीता शास्त्र का सम्यक ज्ञान प्राप्त करना होगा।
वरिष्ठ साहित्यकार श्यामबिहारी पाण्डेय ने कहा कि देवी की उपासना से साधक को परम शांति व सुख की प्राप्ति होती है। उसकी भौतिक कामनाएं शेष नहीं रह जातीं। परिवार में सुख-शांति का वास होता है। शायर-ए-शहर यादव विकास ने मां के ध्यान-पूजन से चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति का उल्लेख किया। आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर ने कहा कि देवी की उपासना सकाम भाव से करने पर समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है परन्तु निष्काम भाव से करने पर देवी सिद्धिदात्री बनकर परमात्मा का देवी स्वरूप में सानिध्य करा देती है। ऐसी देवी की उपासना से नारी जाति के प्रति श्रद्धा का भाव जागृत होता है। माता के भाव से जगत्-माता प्रसन्न होती है। पूर्व विकासखंड शिक्षा अधिकारी एसपी जायसवाल ने कहा कि शरदकाल की नवरात्रि और वासंतिक नवरात्रि में दुर्गा जी की आराधना से साधक भक्ति और मोक्ष दोनों को साधता है। देवी-आराधना के प्रचार से देश में 52 शक्तिपीठों की स्थापना हुई जिनमें असम की कामाख्या देवी, झारखंड की छिन्नमस्ता देवी, उत्तरप्रदेश में काशी का दुर्गा मंदिर, विंध्याचल की देवी, कोलकाता की कालीघाट की कालीमाई, मैहर की शारदा माता, काश्मीर की क्षीरभवानी, जम्मू की वैष्णव देवी मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं। छत्तीसगढ़ में रतनपुर व अम्बिकापुर की महामाया, डोंगरगढ़ की बमलेश्वरी देवी, कुदरगढ़ की बागेश्वरी आदि कहां तक देवियों का वर्णन एवं महिमा गाएं। पूरे जगत् का संचालन और रक्षण मां भवानी करती हैं।
काव्यांजलि प्रारंभ करते हुए कवयित्री माधुरी जायसवाल ने अपनी कविता में मां भगवती के नौ रूपों की सुंदर चर्चा की- नवरात्रि में नवदुर्गा नौ-नौ रूप दिखाती है, सुख-शांति और आनंद से जीवन सफल कर जाती है। कवयित्री आशा पाण्डेय ने मां के श्रीचरणों में सहज विनती की- शेर पे सवार होके मइया आना मेरे द्वार। करती आशा विनती, मइया लुटाना अपना प्यार। दीन-दुखी सबका करना बेड़ापार। गीतकार गीता द्विवेदी ने महामाया को ममता की खान बताया- जग में महान है मां, ममता की खान है मां। अखियों में उसकी तो करुणा अपार है। वरिष्ठ गीतकार व संगीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने कष्ट-निवारण के लिए जगदम्बे से प्रार्थना से की- मैं क्या हूं? मैं कुछ भी नहीं हूं, जीव मैं दास तुम्हारा। मधु-कैटभ के कोप से माता ब्रह्मा को भी तुमने उबारा। विपदाओं ने जब घेरा तो देवों ने भी तुम्हें पुकारा। श्रवण करो मेरा भी क्रंदन, तन-मन-धन चरणों में अर्पण। कवि प्रकाश कश्यप ने अपने दोहे में माता की सत्कार की बात कही- माता से बढ़कर नहीं, जग में दूजा यार। बड़े प्रेम से कीजिए, अभिनंदन-सत्कार। फिल्मकार व कवि आनंद सिंह यादव ने सही फ़रमाया कि- सिंह पर सवार होकर आई है मेरी मां। मन के सारे मुराद पूरी करने आई है मेरी मां। सारे जग में कोई नहीं मां से बड़ी कृपालु। सारे दुख व कष्ट को हरने आई है मेरी मां। कवयित्री सीमा तिवारी ने भोजपुरी में अम्बिका के श्रृंगार का जीवंत चित्रण किया- चांद जस बिंदिया, सुरुज जस टिका। अइसन सजइहे रूप लागे जनी फीका। नई दुलहिन जस करिह तइयार हे हमरो शीतली मइया। रामलाल विश्वकर्मा ने मानसिक कष्टों की निवृति हेतु गुहार लगाई- फिर से आई याद तुम्हारी, द्वार तुम्हारे आया हूं। अपने मन की पीड़ा हरने पास तुम्हारे आया हूं।
गोष्ठी में प्रतिष्ठित कवयित्री पूनम दुबे ने मां के पूजन पर ख़ास ज़ोर दिया- पूजन-अर्चन सब करें, देती मां उपहार। मीठे-मीठे भोग हैं, चढ़े पुष्प के हार। अजय श्रीवास्तव की कविता- घड़ी-घड़ी तोर बिनती करथे ए माटी के चोला ने भक्तिरस का संचार किया। इन कवियों के अलावा कार्यक्रम में शायर-ए-शहर यादव विकास, आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर, श्यामबिहारी पाण्डेय और अम्बरीष कश्यप ने भी मां महामाया की वंदना करते हुए अपनी उत्कृष्ट काव्य-रचनाओं की प्रस्तुतियां दीं। अंत में, संस्था के अध्यक्ष कवि मुकुंदलाल साहू ने अपनी भक्तिमय दोहों से कार्यक्रम का यादगार समापन किया- दुर्गा दुर्गति दूर कर, पूरण कर हर आस। भर दो जननी जगत् के, जन-जन में उल्लास। तेरे चरणों में धरें, हम अपने सब दोष। कल्याणी कल्याण कर, करो न हम पर रोष। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन सीमा तिवारी और आभार संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष माधुरी जायसवाल ने जताया। इस अवसर पर लीला यादव, मनीलाल गुप्ता सहित अनेक काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।