
Ambikapur : परशुराम जयंती पर तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्यगोष्ठी……………
परशुराम भगवान हैं, दिव्य गुणों की खान, जग उनका वंदन करे, सदा करे सम्मान
परशुराम जयंती पर तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्यगोष्ठी……………
पी0एस0यादव/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// परशुराम जयंती पर तुलसी साहित्य समिति की ओर से केशरवानी भवन में शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गीता मर्मज्ञ, पं. रामनारायण शर्मा, विशिष्ट अतिथि पूर्व एडीआईएस ब्रह्माशंकर सिंह, कवयित्री आशा पाण्डेय, पूनम दुबे, आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर व फ़िल्मकार आनंद सिंह यादव थे। कार्यक्रम का आग़ाज़ कोकिलकंठी गीतकार पूनम दुबे ने मां शारदा की मंत्रमयी आराधना से की। पं. रामनारायण शर्मा ने कहा कि महर्षि परशुरामजी पिता के आज्ञापालक, माता के रक्षक, भ्रातृप्रेम के निर्वाहक व नारी-शक्ति का सम्मान करनेवाले एक महान युगपुरुष थे। वे वेद शास्त्रों के प्रतिष्ठित विद्वान होने के साथ ही शस्त्र विद्या के भी मर्मज्ञ थे। उनके महान शिष्यों भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण व दानवीर कर्ण से आज हम सभी परिचित हैं। उनके जीवन का उद्देश्य दुष्टों व दुराचारियों का संहार व सज्जनों, ब्राह्मणों आदि का सत्कार करना था।
फ़िल्मकार आनंद सिंह यादव ने कहा कि परशुराम जी महादानी थे। जीती हुई धरती का सुपात्रों को दान करना उनकी दानशीलता का परिचायक है। उन्होंने शांति-स्थापना के लिए शास्त्रानुसार धर्म की मर्यादा का सम्पालन व संरक्षण किया। विद्वान ब्रह्माशंकर सिंह का कहना था कि परशुराम ने समतामूलक समाज की स्थापना हेतु आजीवन प्रयास किया। उन्होंने उन्हीं क्षत्रिय राजाओं का वध किया, जो निरीह जनता पर भारी अत्याचार करते थे। वे भगवान शंकर, महर्षि विश्वामित्र व ऋचीक ऋषि के शिष्य रहे। उनकी मान्यता थी कि ब्राह्मणों को शास्त्र के साथ शस्त्र-विद्या में भी पारंगत होना चाहिए तभी वे अपने धर्म का सही निर्वाह कर पाएंगे। आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर ने अपनी सुप्रसिद्ध भक्ति रचना- भूषण भदंत भान विभु, परशुराम प्रणाम प्रभु- का पाठ करते हुए भार्गव परशुराम के दिव्य व्यक्तित्व व कृतित्व से सबको परिचित कराया और कहा कि परशुरामजी का विमल चरित्र आज समाज के सभी लोगों के लिए अत्यंत प्रेरणादायी है। वे अपने माता-पिता और गुरुजनों का सदैव सम्मान करते थे तथा पृथ्वी के सभी जीवों के प्रति उनके मन में अपार करुणा का भाव लहराता था। वे प्रकृति को सदा जीवंत, पुष्पित व पल्लवित देखना चाहते थे।
काव्यगोष्ठी में कविवर श्यामबिहारी पाण्डेय ने अपने ओजस्वी काव्य में स्वयं को परशुरामजी का वंशज बताते हुए भारतीय इतिहास के गौरवशाली पन्नों को एक बार फिर से खोलने व उनका चिंतन-मनन करते हुए प्रेरणा लेने का आव्हान किया- मैं परशुराम का वंशज हूं। इतिहास मेरा गर्वीला है। अब भी मेरा है लहू लाल, मत समझो काला-पीला है। भगवान परशुराम के जन्मोत्सव का सजीव चित्रण कवयित्री माधुरी जायसवाल ने बखूबी किया- वैशाख शुक्ल तृतीया सफल हुई कामना। दिव्य श्रेष्ठ धनुर्धर श्री परशुराम का जन्म हुआ। सुन किलकारी मातु रेणुका मन-ही-मन हर्षाई। मंगल गीतों की घर-आंगन में बज उठी शहनाई। कवयित्री आशा पाण्डेय ने परशुराम के क्रोधी स्वभाव का भी चित्रण किया- क्रोधी चित के थे बड़े, देते जल्दी श्राप। नाश पापियों का करें, हरें सकल संताप। चर्चित अभिनेत्री व कवयित्री अर्चना पाठक ने अपने दोहों से परशुरामजी के श्रीचरणों में अपना प्रणाम-निवेदन किया- अक्षय तृतीया, जन्मदिन परशुराम है नाम। छठे विष्णु-अवतार हैं, शत्-शत् उन्हें प्रणाम। निर्मल कुमार गुप्ता ने कहा- वे तेजस्वी थे बड़े, साहसी व वीर थे। वे रेणुका-पुत्र परशुराम थे। अभिनव चतुर्वेदी ने सही फरमाया कि रामायण, महाभारत पुराण में जिनका उल्लेख है। वह असुरों के संहारक राम एकमात्र परशुधारी भगवान, जय परशुराम! जय परशुराम! कवयित्री मंशा शुक्ला ने विनय-निवेदन किया- विष्णु के अवतार प्रभु, विप्रकुल सिरमौर। कर जोड़ विनती करूं, अरज सुनो प्रभु मोर। गीतकार गीता द्विवेदी ने तो उन्हें फिर से धराधाम में अवतार लेने का आग्रह किया- परशुरामजी आपको, नमन हज़ारों बार, पाप बढ़े जब भूमि पर, लेना तुम अवतार। कवि संतोष सरल ने तो यहां तक कह डाला कि मर्यादा पुरुषोत्तम के जैसा सतनाम कहां बन पाऊंगा? मैं जीव मात्र मानव हूं, ईश्वर श्रीराम कहां बन पाऊंगा?
काव्य-संध्या में मधुर स्वरों की मलिका कवयित्री पूर्णिमा पटेल को परशुराम के गुरु भगवान शिव भी खूब याद आए। उन्होंने शिव-स्तुति द्वारा सबको मंत्रमुग्ध कर दिया- तुम निर्विकार तेरा न पार, तू अनादि और अनंता। तू कण-कण व्यापे हे भोले! एक तू ही जगत नियंता। प्रतिष्ठित गीतकार पूनम दुबे ने भी अपनी भक्ति-माधुरी से श्रोताओं के कानों में मिश्री घोल दी- परशुराम को जानिए, नारायण अवतार। तीज दिवस शुभ है बड़ा, धर्म का हो प्रचार।
इनके अलावा गोष्ठी में जहां वीर रस के कवि अम्बरीष कश्यप की रचना- चाय-पानी तो पूछ ले बेटा, बूढ़ा अभी मरा तो नहीं है- ने श्रोताओं को हंसा कर लोटपोट कर दिया, वहीं चंद्रभूषण मिश्र की कविता- अपनी वफाई और उसकी बेवफाई में भी इतराता ही रहा, कवि अजय श्रीवास्तव का कलाम- है दिल से नमन उस सावन को जिसने प्रिया से मिलाया था, वरिष्ठ कवि उमाकांत पाण्डेय के दोहे- नाई ले नेवता गया, बिटिया हुई सयान, रोज़ गांव आने लगे, नये-नये मेहमान और शायर-ए-शहर यादव विकास की उम्दा ग़ज़ल- जो निगाहों में खोट रखते हैं, आईना देखने से डरते हैं, शान देखो तो इन दरख़्तों की, झुककर बादल सलाम करते हैं- ने कार्यक्रम को बेहद ऊंचाइयां प्रदान कीं। गोष्ठी में ग़ज़लकारा पूर्णिमा पटेल की दिलकश ग़ज़ल- आप लोगों की क्या मेहरबानी कहूं, प्यार की है फ़कत बस निशानी कहूं- ने भी समां बांधा। अंत में, संस्था के ऊर्जावान अध्यक्ष जाने-माने दोहाकार मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहों में गुरूश्रेष्ठ परशुरामजी के अलौकिक व्यक्तित्व का समुल्लेख कर कार्यक्रम का यादगार समापन किया- परशुराम भगवान हैं, दिव्य गुणों की खान। जग उनका वंदन करे, सदा करे सम्मान। भीष्म, द्रोण थे कर्ण भी, जिनके शिष्य महान। परशुराम गुरुदेव को, बारम्बार प्रणाम। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन कवयित्री अर्चना पाठक व आभार संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष माधुरी जायसवाल ने जताया। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता यशोदा साहू, एकता विश्वास, मनीष दुबे, सुलेखा साहू और अंजनी पाण्डेय उपस्थित थे। सम्पूर्ण कार्यक्रम की रिकार्डिंग आकाशवाणी अम्बिकापुर द्वारा की गई।