
“शमी के रोजे पर फतवे की सियासत! आचार्य प्रमोद का करारा जवाब – ‘सच्चे मुसलमान होते तो विरोध न करते!’”
“मोहम्मद शमी के रोजे पर फतवे की सियासत! आचार्य प्रमोद बोले – ‘सच्चे मुसलमान होते तो विरोध नहीं करते'”
नोएडा से उठा विवाद, क्रिकेटर शमी पर कट्टरपंथियों की तीखी प्रतिक्रिया, आचार्य प्रमोद कृष्णम ने दिया करारा जवाब
नोएडा, उत्तर प्रदेश: भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी के रोजा न रखने को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। जहां एक ओर कुछ मौलानाओं ने शमी को इस्लाम की शिक्षा देने की कोशिश की, वहीं दूसरी ओर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि “अगर कोई सच्चा मुसलमान होगा, तो वह मोहम्मद शमी का विरोध नहीं करेगा, क्योंकि वह अपने देश के लिए खेल रहे हैं। जो लोग इस मामले पर शमी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें इस्लाम की सही जानकारी नहीं है।”
आचार्य प्रमोद के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है। एक ओर कट्टरपंथी मौलाना शमी के धार्मिक कर्तव्यों पर सवाल उठा रहे हैं, तो दूसरी ओर खेलप्रेमी और बुद्धिजीवी वर्ग इसे धर्म की जबरदस्ती करार दे रहे हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद?
दरअसल, मोहम्मद शमी इन दिनों क्रिकेट में व्यस्त हैं और रमज़ान के दौरान उन्होंने रोजे नहीं रखे। इस पर एक कट्टरपंथी मौलाना ने बयान देते हुए कहा कि एक मुसलमान को अपने धार्मिक कर्तव्यों को पहले रखना चाहिए, चाहे वह किसी भी पेशे में क्यों न हो।
इस बयान ने शमी के प्रशंसकों के बीच हलचल मचा दी। कई लोगों ने मौलाना के बयान को अनुचित हस्तक्षेप करार दिया और तर्क दिया कि क्रिकेटर अपने देश के लिए खेल रहे हैं, जो कि उनके लिए एक बहुत बड़ा कर्तव्य है।
आचार्य प्रमोद कृष्णम ने क्या कहा?
इस पूरे विवाद पर आचार्य प्रमोद कृष्णम ने खुलकर अपनी राय दी। उन्होंने कहा,
“मुझे लगता है कि जो लोग मोहम्मद शमी के रोजा न रखने पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें इस्लाम की सही जानकारी नहीं है। अगर कोई सच्चा मुसलमान होगा, तो वह समझेगा कि देश की सेवा भी एक इबादत से कम नहीं है।”
आचार्य प्रमोद का यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। उनके समर्थकों ने इस बयान को धर्म की सच्ची समझ बताया, जबकि मौलाना वर्ग इससे असहमत नजर आ रहा है।
मौलाना की दलील, कट्टरपंथ बनाम आधुनिक सोच
कुछ मौलानाओं का मानना है कि इस्लाम के अनुसार हर मुसलमान पर रोजा रखना अनिवार्य है, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति स्वस्थ है और रोजा रखने में सक्षम है, तो उसे रोजा रखना चाहिए, भले ही वह क्रिकेटर हो या कोई और।
लेकिन इस पर खेल जगत से जुड़े कई लोगों ने पलटवार किया है। उनका कहना है कि खेल एक अत्यधिक शारीरिक परिश्रम वाली गतिविधि है, और किसी भी खिलाड़ी को अपने शरीर की जरूरतों के हिसाब से फैसला लेने की आजादी होनी चाहिए।
सोशल मीडिया पर बवाल
इस विवाद ने सोशल मीडिया पर भी हलचल मचा दी है। ट्विटर और फेसबुक पर लोग इस विषय पर अपनी राय रख रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि धर्म व्यक्ति का निजी मामला है और इसमें हस्तक्षेप करना गलत है, जबकि कुछ लोग इसे इस्लामिक कर्तव्य के रूप में देख रहे हैं।
कुछ ट्वीट्स इस प्रकार हैं:
“धर्म को जबरदस्ती किसी पर थोपना बंद करिए, शमी हमारे देश के लिए खेल रहे हैं, यही उनकी सबसे बड़ी इबादत है!”
“रोजा रखना या न रखना शमी का व्यक्तिगत मामला है, इसमें किसी मौलाना का दखल क्यों?”
“आचार्य प्रमोद कृष्णम का बयान बिलकुल सही है, कट्टरपंथियों को इस्लाम की सही जानकारी नहीं है।”
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
धर्म और खेल के इस टकराव पर विशेषज्ञों की राय भी सामने आई है। खेल विश्लेषक मानते हैं कि किसी भी खिलाड़ी को अपने प्रदर्शन के लिए अपने आहार और फिटनेस का ध्यान रखना जरूरी होता है। खेल विशेषज्ञों का कहना है कि रोजे के दौरान निर्जला रहना खिलाड़ियों के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है, इसलिए यह पूरी तरह से व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए।
वहीं, धार्मिक मामलों के जानकारों का कहना है कि इस्लाम में कई परिस्थितियों में रोजे की छूट दी गई है, जैसे बीमार व्यक्ति, गर्भवती महिलाएं, यात्रा करने वाले लोग, और अत्यधिक मेहनत करने वाले व्यक्ति। ऐसे में, एक पेशेवर क्रिकेटर को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
क्या यह मामला सिर्फ धर्म का है या राजनीति भी?
कुछ लोगों का मानना है कि इस विवाद को अनावश्यक रूप से धार्मिक रंग दिया जा रहा है। कई बार, ऐसे मुद्दों को तूल देकर सामाजिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की जाती है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस मामले को बेवजह उछालकर धर्म और राजनीति को आपस में जोड़ा जा रहा है, जिससे समाज में नकारात्मकता फैल सकती है।
मोहम्मद शमी के रोजा न रखने के विवाद ने एक बार फिर धर्म और पेशेवर जिम्मेदारियों के बीच बहस को जन्म दिया है। आचार्य प्रमोद कृष्णम के बयान से यह साफ है कि धर्म को कट्टरपंथी नजरिए से देखने के बजाय व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।
खेल कोई आम पेशा नहीं है, यह देश के गौरव से जुड़ा हुआ क्षेत्र है, जहां खिलाड़ियों को अपने शारीरिक और मानसिक फिटनेस का खास ध्यान रखना होता है। ऐसे में, रोजा रखना या न रखना किसी भी खिलाड़ी का व्यक्तिगत निर्णय होना चाहिए और इस पर किसी बाहरी व्यक्ति को सवाल उठाने का हक नहीं है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवाद पर आगे क्या प्रतिक्रियाएं आती हैं और क्या कट्टरपंथी मानसिकता इस तरह के मुद्दों से आगे बढ़कर वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देगी या नहीं।