
विश्व पृथ्वी दिवस 2025: पराली, प्लास्टिक और पानी की चुनौती, क्या हम तैयार हैं?
विश्व पृथ्वी दिवस 2025 पर जानिए क्यों पराली जलाना, जल संकट और प्लास्टिक प्रदूषण जैसे मुद्दे भारत के लिए गंभीर हैं। महात्मा गांधी के विचारों के साथ पढ़िए पूरी रिपोर्ट।
विश्व पृथ्वी दिवस 2025: धरती माँ को चाहिए हमारा साथ, नहीं तो…!
राजनांदगांव, 21 अप्रैल 2025|55वें विश्व पृथ्वी दिवस की थीम है — _“हमारी शक्ति, हमारा ग्रह”। यह अवसर हमें याद दिलाता है कि हमारी पृथ्वी पर बढ़ते पर्यावरणीय संकट के बीच अब हर किसी को जागरूक होना होगा।
विश्व पृथ्वी दिवस की शुरुआत 1970 में अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन द्वारा की गई थी। वहीं, 1971 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव यू थांट ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एक विशेष समारोह के दौरान 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में घोषित किया।
धरती पर संकट के बादल: पराली, प्लास्टिक और पानी की कमी
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में केवल 2.4% भूमि क्षेत्र, 4% ताजा जल, और 18% मानव एवं पशुधन आबादी है। ऐसे में अंधाधुंध पराली जलाना, प्लास्टिक प्रदूषण, जल स्रोतों का क्षरण और वनों की कटाई जैसी समस्याएं गंभीर चिंता का विषय बन चुकी हैं।
केंद्रीय भूमिजल बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. प्रबीर के नाइक ने चेतावनी दी है कि,
“लोगों को पराली जलाने की हानियों की जानकारी ही नहीं है, जिससे पर्यावरण को गहरा नुकसान हो रहा है। ग्राम पंचायत स्तर पर जन-जागरूकता अत्यंत आवश्यक है।”
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश में 25% वन क्षेत्र है, लेकिन पेड़ों की संख्या और घनत्व में भारी गिरावट आई है — विशेषकर छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में।
महात्मा गांधी का संदेश: लालच नहीं, संतुलन जरूरी
महात्मा गांधी ने कहा था:
“पृथ्वी हर किसी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन प्रदान करती है, लेकिन किसी के लालच को नहीं।”
वे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग और शोषण के खिलाफ थे। उनकी सादा जीवनशैली और प्रकृति के अनुकूल विचार आज भी प्रेरणा देते हैं।
हमारे पूर्वज सूर्य, नदी, वृक्ष और पहाड़ों की पूजा करते थे और उनकी रक्षा करते थे। लेकिन आज हम उन्हीं संसाधनों का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं। अगर यह क्रम नहीं रुका तो एक दिन मानव जाति का अस्तित्व भी डायनासोर की तरह इतिहास बन सकता है।
अब नहीं चेते तो बहुत देर हो जाएगी
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धरती गर्म हो रही है
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जलस्रोत सूख रहे हैं
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समुद्र और मिट्टी प्रदूषित हो रहे हैं
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प्राकृतिक तंत्र टूट रहे हैं
अब समय है सामूहिक जागरूकता का। स्थानीय समुदायों के पास स्थानिक ज्ञान होता है, जो अपने परिवेश की रक्षा में सहायक बन सकता है।