
Ambikapur : मानव अधिकार दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्यगोष्ठी……………….
‘जनादेश तुमको मिला, गढ़ो नई सरकार, चमको सूरज की तरह, मिट जाए अंधियार’
मानव अधिकार दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की सरस काव्यगोष्ठी……………….
पी0एस0यादव/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// मानव अधिकार दिवस पर तुलसी साहित्य समिति द्वारा शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में केशरवानी भवन में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्माशंकर सिंह, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवि-साहित्यकार एसपी जायसवाल व उपभोक्ता अधिकार संगठन छतीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रभूषण मिश्र थे। मां वीणावती के सामूहिक अर्चन व कवयित्री अर्चना पाठक की मनोहारी सरस्वती-वंदना पश्चात् कार्यक्रम का विधिवत् शुभारंभ हुआ। कविवर एसपी जायसवाल ने कहा कि मानव अधिकार दिवस प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर को मनाया जाता है। 10 दिसम्बर, 1948 को संयुक्त राष्ट्रसंघ ने मानव अधिकारों की घोषणा की थी। राष्ट्रीयता, लिंग, जाति, रंग, धर्म, भाषा या किसी अन्य भेदभाव के बिना ये सार्वभौमिक अधिकार हम सबके लिए प्रकृति प्रदत्त हैं। इनमें सबसे मौलिक जीवन के अधिकारों से लेकर वे अधिकार भी शामिल हैं, जो जीवन को जीने लायक बनाते हैं, जैसे कि- भोजन, शिक्षा, काम, स्वास्थ्य और स्वतंत्रता का अधिकार।
इन अधिकारों का अतिक्रमण विश्व के किसी भी देश या सरकार के द्वारा नहीं किया जाना चाहिए। पं. चंद्रभूषण मिश्र का कहना था कि मानव की अंतर्निहित गरिमा को बनाए व बचाए रखना मानवाधिकार का उद्देश्य है। इसके लिए देश व राज्यों में आयोग का गठन किया गया है। उन्होंने उपभोक्ता संरक्षण के अधिकारों पर भी प्रकाश डाला और बताया कि उपभोक्ता अधिकारों का हनन होने पर जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर न्याय प्राप्त किया जा सकता है। वरिष्ठ अधिवक्ता ब्रह्माशंकर सिंह ने महर्षि अरविंद के समाधि-दिवस पर अपने विचार रखे और कहा कि महर्षि अरविंद एक महान स्वतंत्रता-सेनानी, कवि और गुरु भी थे। उन्होंने वेद-उपनिषदों पर अनेक भाष्य लिखे। उनके दार्शनिक विचारों का प्रभाव आज समूचे विश्व में दिखाई देता है। उनकी साधना पद्धति के अनुयायी लगभग सभी देशों में पाए जाते हैं।
काव्यगोष्ठी में बेटियों को उनके अधिकारों से वंचित रखे जाने पर कवयित्री माधुरी जायसवाल ने अपने काव्य में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि- घर में हमारी बेटियां मायूस और बर्बाद हैं। दिल पर हाथ रखकर कहिए, बेटियां क्या आज़ाद हैं? कवयित्री मंशा शुक्ला ने मानवाधिकारों के खुलेआम उल्लंघन पर अपनी कविता पेश की- हवा में घुला आज कैसा ज़हर है, मनुज ही मनुज पर ढाता क़हर है। सस्ता बड़ा हो गया अब तो जीवन, धमाकों से जलते शहर-के-शहर हैं! कवयित्री व अभिनेत्री अर्चना पाठक ने अपने काव्य में मानवाधिकारों को प्राणों का रक्षक बताया- हंस पे तीर चलाया देवदत्त ने, सिद्धार्थ ने किया उसका उपचार। हर युग में वही विजयी रहा, जिसके साथ खड़ा मानवाधिकार। कविवर श्यामबिहारी पाण्डेय ने मानवाधिकारों की व्याख्या अत्यंत सरल शब्दों में की- हर नर का सम्मान हो, मानव का अधिकार। मानव से ही चल रहा, अग-जग का व्यापार। मानव का अधिकार है उत्तम शिक्षा, स्वास्थ्य।
मानव का कल्याण हो, मानवता हो साध्य। प्रसिद्ध गीतकार पूनम दुबे ‘वीणा’ के दोहे में मानवीय सेवा का संदेश मुखरित हुआ- मानव-सेवा कीजिए, सुंदर यही विचार। होती पूरी कामना, सुख का है आसार। लाखों लोगों की दुआ, आती है फिर काम। नेकी मिलती है सदा, मन पाए आराम। कवयित्री अंजू पाण्डेय ने मानवाधिकारों से वंचित ग़रीबों की पीड़ा व सामाजिक उपेक्षा का दर्द बयान किया- हां, मैं वो ग़रीब हूं। अब तो जीने से भी डरता हूं क्योंकि हर रोज़ ही मरता हूं! अब तो कोई सरोकार नहीं, ईश्वर से भी दरकार नहीं। वीर रस के कवि अम्बरीष कश्यप का भी दर्द उनकी कविता में छलक पड़ा- शख़्स मज़बूर है कहे कैसे और इस ग़म को सहे कैसे? हर जगह सेतुओं का रोड़ा है, अपनी रफ़्तार में बहे कैसे! कवयित्री गीता द्विवेदी ने अपनी रचना में आंधियों को विपत्तियों की संज्ञा देते हुए उसे मेहमान की तरह बताया- बिन बुलाए मेहमान-सी आती हैं आंधियां! फिर जमके उत्पात मचाती हैं आंधियां!
काव्यगोष्ठी में वरिष्ठ कवि उमाकांत पाण्डेय ने मानवाधिकारों के हो रहे हनन के बीच इंसानों को प्रकृति से जुड़ने व उनसे प्रेरणा लेकर हमेशा खुश रहने का संदेश यूं दिया- तुम गाते रहना, नित नवीन सपनों के सुमन सजाते रहना। पेड़ों पर लिख आना कोई नाम, कोंपलों से बतियाते रहना! कमोबेश यही बात गीत-कवि कृष्णकांत पाठक ने भी कही- प्यार करने का बहाना ढूंढ़िए, बन-संवरने का बहाना ढूंढ़िए। जो दिखाए जिं़दगी को रास्ता, आए जिसको मुस्कुराना ढूंढ़िए! कवि अजय श्रीवास्तव ने दीवानगी की हद में अपनी प्रेयसी से यहां तक कह दिया कि- तेरी मैं ख़ुशियां पूरी कर दूं, सारी दुनियां तेरे क़दमों में धर दूं। वरिष्ठ कवयित्री गीता दुबे ने इश्क़बाज़ी की सरस कविता पेश कर महफ़िल लूट ली- मजबूरी में हाथ छुड़ाना याद आता है बहुत प्रिये। सांझ पड़े मेरे घर आना, बैठे-बैठे बातें करना। बातों का अनमोल ख़ज़ाना याद आता है बहुत प्रिये! लोकगायिका व कवयित्री पूर्णिमा पटेल के उम्दा गीत- सरगुजा गाजमगुजा, माटी कर देव पहार कर पूजा- ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
सच है, अहंकार इंसान को ले डूबता है। इसे छोड़ने में ही उसकी भलाई है। कवि प्रकाश कश्यप ने यह नेक सलाह दी- काबर ले करथा गुमान दउआ, जिनगी के नइए ठेकान दउआ! कविवर एसपी जायसवाल ने ग़रीबी का करूण चित्रण किया- बिगर पनही कर पांव मैं देखें फाटे रहिस बेवाई! मूड़ में लकरी कर बोझा अउ कोरा में लरिका। कनिहा गइस टेड़गाई! छत्तीसगढ़ में चुनाव परिणाम पश्चात् सरकार गठन को लेकर चल रहे भारी कयासों के बीच संस्था के अध्यक्ष दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने विजयी दल का आव्हान करते हुए दोहे सुनाए- जनादेश तुमको मिला, गढ़ो नई सरकार। चमको सूरज की तरह, मिट जाए अंधियार। इनके अलावा कवि अभिनय चतुर्वेदी ने भी श्रीकृष्ण-चरित्र पर कविता पढ़ी। अंत में, शायर-ए-शयर यादव विकास की इस संदेशपरक शानदार ग़ज़ल से गोष्ठी का यादगार समापन हुआ- हादसों का पता नहीं होता, समय का चेहरा नहीं होता। दिल दुखाना गुनाह है लोगों, किसके दिल में ख़ुदा नहीं होता। विकास तुमसे तमन्ना रखते, ख़ुदा का आसरा नहीं होता। कार्यक्रम का संचालन कवयित्री अर्चना पाठक व आभार संस्था की कार्यकारी अध्यक्ष माधुरी जायसवाल ने जताया। इस अवसर पर लीला यादव, सच्चिदानंद पाण्डेय, मदालसा गुप्ता, केशरवानी वैश्य सभा के उपाध्यक्ष मनीलाल गुप्ता सहित कई काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।