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गरीब हो या अमीरी इसे भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करें : आचार्य अतुलकृष्ण

खरसिया। भागवत कथा के सप्तम दिन व्यासपीठ पर प्रवचन करते हुए आचार्य अतुलकृष्ण भारद्वाज ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस द्वारा अपहृत की गईं 16100 कन्याओं को युद्ध करके छुड़ाया। समाज द्वारा उनका तिरस्कार न हो, इसलिए स्वयं भगवान उसका अपने साथ विवाह किया। भगवान श्रीकृष्ण से बड़ा दयालु और कौन होगा? जिनको दुनिया वाले त्याग देते हैं उनको स्वयं भगवान की शरण में जाना चाहिए, भगवान स्वयं उसका वरन कर लेते हैं।

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वहीं कहा कि सुदामा ब्राह्मण था, परंतु दरिद्र नहीं। जीवन में गरीबी होना अलग बात है दरिद्र होना अलग बात है। कोई धनवान भी दरिद्र हो सकता है। गरीबी होने पर सुदामाजी भीख नहीं मांगते थे, पूजा-पाठ एवं कथा में जो आ जाए उसी को भागवत कृपा मानकर स्वीकार कर लेते थे। सुदामा संतोषी है, वह भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए गए और श्रीकृष्ण ने उन्हें आसन पर बैठाया। चरणों में बैठ गए भगवान खूब रोए। समाज को सुदामा से प्रेरणा लेनी चाहिए कि गरीबी हो या अमीरी भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करें और जीवन जीएं।आचार्य अतुलकृष्ण ने अंत में परीक्षित के मोक्ष का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से किया। कहा मृत्यु उसे कहते हैं, जब शरीर शांत हो जाए। माया क्या है? यह भ्रम है, जो दिख रहा है और सत्य लगता है। परंतु नष्ट होने वाली वस्तुएं सास्वत नहीं होतीं। मैं-मेरा, तू-तेरा से अलग होकर श्याम को देखता है, वही सत्य है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो मुझसे अलग है, मुझ से भिन्न है वही माया है और जो मुझ में रमा है उसमें जुड़ा है, वही मुझे पाता है।

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