
पंचायत सचिवों के आंदोलन को मिला कांग्रेस का साथ, बालकृष्ण पाठक ने किया समर्थन का ऐलान
पंचायत सचिवों का शोषण कब तक? जमीनी प्रशासन चलाने वाले कर्मचारियों को कब मिलेगा न्याय?
अंबिकापुर। प्रदेश के पंचायत सचिव, जो ग्रामीण प्रशासन की रीढ़ माने जाते हैं, आज अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं। शासकीयकरण की मांग को लेकर वे 17 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। सरकार की इस बेरुखी के खिलाफ कांग्रेस ने खुलकर पंचायत सचिवों का समर्थन किया है। जिला कांग्रेस कमेटी के नवनियुक्त अध्यक्ष बालकृष्ण पाठक ने धरना स्थल पर पहुंचकर पंचायत सचिवों की मांगों को जायज ठहराया और उन्हें हर संभव मदद का आश्वासन दिया।
गांवों में विकास कार्यों को लागू करने की जिम्मेदारी पंचायत सचिवों की होती है। वे गांवों में सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन, राशन वितरण, प्रधानमंत्री आवास योजना, नल-जल योजना, मनरेगा भुगतान, पेंशन योजना जैसे कार्यों को संभालते हैं। लेकिन इसके बावजूद उन्हें न तो स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया गया है और न ही अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह सुविधाएं मिलती हैं।
सरकार उन्हें सिर्फ ‘संविदा कर्मचारी’ या ‘अस्थायी कर्मचारी’ मानती है, जबकि पंचायत स्तर पर उनके बिना प्रशासनिक व्यवस्था की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सवाल यह उठता है कि जब वे सरकारी योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, तो उन्हें स्थायी कर्मचारी क्यों नहीं माना जाता?
2023 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा ने ‘मोदी की गारंटी’ के तहत प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के लिए कई बड़े वादे किए थे। इसमें पंचायत सचिवों के शासकीयकरण का भी जिक्र था। लेकिन भाजपा सरकार को सत्ता में आए डेढ़ वर्ष हो चुके हैं और अभी तक पंचायत सचिवों की मांगों पर कोई अमल नहीं हुआ है।
हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अपना दूसरा बजट विधानसभा में प्रस्तुत किया, लेकिन इसमें पंचायत सचिवों के लिए कोई विशेष घोषणा नहीं की गई। इससे पंचायत सचिवों में रोष है और वे इसे वादाखिलाफी मान रहे हैं।
धरनास्थल पर पहुंचे कांग्रेस जिलाध्यक्ष बालकृष्ण पाठक ने पंचायत सचिवों को समर्थन देते हुए कहा,
“पंचायत सचिव प्रशासनिक ढांचे का अहम हिस्सा हैं, लेकिन उन्हें हाशिए पर रखा गया है। जो योजनाएं सचिवों की मेहनत से सफल होती हैं, उनका श्रेय कलेक्टर और सीईओ को मिलता है। यह सरासर अन्याय है। कांग्रेस पार्टी पंचायत सचिवों की हर जायज मांग के साथ खड़ी है और इस मुद्दे को विधानसभा में पुरजोर तरीके से उठाएगी।”
पंचायत सचिवों ने भी अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक वे धरना समाप्त नहीं करेंगे।
कौन सुनेगा पंचायत सचिवों की आवाज़?
अगर पंचायत सचिवों का काम रोका जाए, तो पंचायतों में प्रशासन पूरी तरह ठप हो जाएगा। लेकिन सरकार इस गंभीर स्थिति को नजरअंदाज कर रही है। पंचायत सचिवों की प्रमुख मांगें हैं—
1. शासकीयकरण – पंचायत सचिवों को स्थायी सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिले।
2. समान वेतनमान – अन्य सरकारी कर्मचारियों की तरह वेतन और सुविधाएं दी जाएं।
3. संविदा प्रथा समाप्त हो – पंचायत सचिवों को अस्थायी रखने की नीति खत्म हो।
4. प्रमोशन और अन्य लाभ – पंचायत सचिवों को उनकी सेवा अवधि के अनुसार प्रमोशन मिले।
सरकार की अनदेखी से बढ़ रहा असंतोष
प्रदेशभर के पंचायत सचिव जब से हड़ताल पर गए हैं, गांवों में प्रशासनिक कामकाज ठप पड़ने लगा है। ग्रामीण स्तर पर कई विकास योजनाओं का क्रियान्वयन रुक गया है, मनरेगा मजदूरों के भुगतान में देरी हो रही है, और कई पंचायत कार्यालय खाली पड़े हैं।
सरकार की यह बेरुखी न केवल पंचायत सचिवों के लिए, बल्कि पूरे प्रशासनिक ढांचे के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। अगर जल्द ही कोई ठोस समाधान नहीं निकला, तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है, जिससे सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
कांग्रेस अब इस मुद्दे को पूरी ताकत से उठाने की तैयारी कर रही है। बालकृष्ण पाठक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी पंचायत सचिवों के साथ खड़ी है और उनके हक की लड़ाई में हर कदम पर साथ देगी।
उन्होंने कहा कि आगामी विधानसभा सत्र में कांग्रेस इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाएगी और सरकार पर दबाव डालेगी कि वह पंचायत सचिवों की मांगों को पूरा करे।
अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा सरकार पंचायत सचिवों की मांगों को गंभीरता से लेगी, या फिर यह आंदोलन और लंबा चलेगा? अगर सरकार ने जल्द ही कोई समाधान नहीं निकाला, तो आने वाले दिनों में पंचायत सचिवों का यह आंदोलन राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, जिसका असर प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ेगा।