
पितृ-दिवस और महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी…………
‘सपने तुम देखा करो, सपने होते ख़ास, मंज़िल पाने के लिए, यही जगाते आस’
पितृ-दिवस और महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर तुलसी साहित्य समिति की काव्यगोष्ठी…………
P.S.YADAV/ब्यूरो चीफ/सरगुजा// पितृ-दिवस और महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान-दिवस पर तुलसी साहित्य समिति द्वारा स्थानीय केशरवानी भवन में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि शायरे शहर यादव विकास, आशा पाण्डेय, आनंद सिंह यादव, मुख्य अतिथि पूर्व प्राचार्य बीडी लाल और अध्यक्षता वरिष्ठ कवि एसपी जायसवाल ने की। शुभारंभ मां वीणावादिनी के पूजन से हुआ। पूर्णिमा पटेल ने सुन्दर सरस्वती-वंदना की प्रस्तुति दी। कवयित्री पूनम पाण्डेय ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मीबाई का परिचय देते हुए कहा – बचपन की वो ‘मणिकर्णिका’ मनु पुकारी जाती थी, सुंदर बहुत थी और चंचल भी, ‘छबीली’ वह कहलाती थी।
माधुरी जायसवाल ने देश की हर नारी को रानी लक्ष्मीबाई बनने की प्रेरणा दी- अपने हौसले को एक कहानी बनाना। हो सके तो अपने आपको झांसी की रानी बनाना। शौर्य और वीरता झलकती है जिनके नाम में। स्वतंत्रता-संग्राम की डोर थी जिनके हाथ में। अर्चना पाठक ने अनुपम साहस, शौर्य और नारी शक्ति की प्रतिमा लक्ष्मीबाई के समरांगण में अद्भुत रणकौशल का ज़िक्र किया- वीरता की आन-बान-शान- सी दमकती थी। धीरता में उनका न कोई उपमान था। ज्वाला-सी धधकती थी क्रोध में प्रचंड बन। देशभक्ति का भी दिव्य मन में गुमान था। गीता द्विवेदी ने माह्या छंद में वीरांगना लक्ष्मीबाई के संबंध में कहा – तुझसे गर्वित झांसी, हे लक्ष्मीबाई, जैसे शिव से काशी। हे वीर सुता रानी, भारत तेरा ऋणी, मैं तेरी दीवानी। अनिता मंदिलवार ने अपने काव्य में सबसे विनय-निवेदन किया- स्वतंत्रता के लिए वो हंसते हुए हो गई कुर्बान। एक शूरवीर मर्दानी थी, शीश तो झुकाइए।
पितृ-दिवस पर भी अनेक कवियों ने बेहतरीन कविताओं की प्रस्तुतियां दीं। वरिष्ठ कवि एसपी जायसवाल ने सरगुजिहा में अपनी गीत रचना की प्रस्तुति देेते हुए कहा- दाऊ हमर देव बरोबर ओके झन बिसरावा गा। दाई दादर गीत हवय सबे कोई मिलके गावा गा। आशा पाण्डेय ने अपने दोहे में माता-पिता के चरणों में चारों धाम होने की बात कह डाली- मातृ-पितृ के चरण में, होते चारों धाम। उनके शुभ आशीष से, बनते बिगड़े काम। वरिष्ठ कवि बीडी लाल ने भारतीय होने पर गर्व जताया- आर्यों के वंशज हैं हम, आर्यावर्त निवासी। जम्बू द्वीपे भारतखंडे, युग-युग से विश्वासी। आनंद सिंह यादव ने लोगों से निरंतर कुछ-न-कुछ करते रहने का अनुरोध किया- मंज़िल मिले ना मिले, ये तो मुक़द्दर की बात है। हम कोशिश भी ना करें, ये तो ग़लत बात है। समिति के अध्यक्ष मुकुंदलाल साहू ने युवाओं से बेहतर भविष्य-निर्माण के लिए स्वप्न देखने का आव्हान किया- सपने तुम देखा करो, सपने होते ख़ास। मंज़िल पाने के लिए, यही जगाते आस।
इन कवियों के अलावा रंजीत सारथी की बालिका-शिक्षा पर आधारित कविता- चला मिल-जुल के पढ़े भेजबो, आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर की- सम्राट् विक्रमादित्य का अखंड आर्यावर्त न्यारा था, लेकर रहंेगे हम जो भू-भाग हमारा था, राजेश पाण्डेय की – काबा-काशी जो चले उसकी नैया पार, कृष्णकांत पाठक की- सबसे प्यारा मेरा घर, जग से न्यारा मेरा घर, अविनाश तिवारी की अग्निवीर पर केन्द्रित कविता- क्यों तुम आग लगाते हो, चन्द्रभूषण मिश्र की – देखकर वो अपनी नज़रें झुका लेते हैं, पूर्णिमा पटेल की- ऐ मोर सजनी, कोन कती बरसत हे मेघ, राजनारायण द्विवेदी की- हां, मुझे भी कुछ कहना है, उमेश पाण्डेय की- मैं मज़दूर हूं और अजय श्रीवास्तव की – ज़िदगी में ये भी कोशिश आज़मानी चाहिए- जैसी रचनाओं ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। अंत में, शायरे शहर यादव विकास ने अपनी उम्दा ग़ज़ल- गुलिस्तां में बहार लाओ तो, पक्षियों आओ चहचहाओ तो- से गोष्ठी का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन राजनारायण, गीता द्विवेदी और आभार आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर ने ज्ञापित किया।