
पद्मश्री लोकनृत्य कलाकार रामसहाय पांडे का निधन, सीएम मोहन यादव ने जताया शोक
बुंदेलखंड के राई नृत्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले पद्मश्री रामसहाय पांडे का निधन हो गया। मुख्यमंत्री मोहन यादव और लोककलाकारों ने जताया शोक।
पद्मश्री लोकनृत्य कलाकार रामसहाय पांडे का निधन, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जताया शोक
भोपाल।मध्य प्रदेश की लोकसंस्कृति और नृत्य परंपरा को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले प्रसिद्ध लोकनृत्य कलाकार पद्मश्री रामसहाय पांडे का निधन हो गया। उनके निधन की खबर से लोककला प्रेमियों, शिष्यों और सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े लोगों में गहरा शोक है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उनके निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए इसे “लोकसंस्कृति के एक स्तंभ का पतन” बताया।
बुंदेलखंड के पारंपरिक लोकनृत्य ‘राई’ के अग्रदूत थे रामसहाय पांडे
रामसहाय पांडे को लोकनृत्य ‘राई’ के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए सन् 2021 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा गया था। वे मध्य प्रदेश के सागर जिले के निवासी थे और उन्होंने बुंदेली संस्कृति को देश और विदेश में मंचों पर जीवंत किया।
उनकी पूरी जिंदगी राई नृत्य की परंपरा को संरक्षित करने, नवाचार के साथ प्रस्तुत करने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने में समर्पित रही।
मुख्यमंत्री मोहन यादव का बयान
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शोक संदेश में कहा:
“पद्मश्री रामसहाय पांडे का निधन मध्यप्रदेश की लोकसंस्कृति के लिए गहरी क्षति है। उन्होंने ‘राई’ लोकनृत्य को वैश्विक मंच तक पहुंचाया। उनकी कला, साधना और समर्पण सदा याद किया जाएगा। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को शांति और शोक संतप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करें।”
एक साधारण कलाकार से लेकर पद्मश्री तक का सफर
रामसहाय पांडे का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनका झुकाव बचपन से ही नृत्य और लोककला की ओर था। आर्थिक अभावों और सामाजिक दबावों के बावजूद उन्होंने अपनी कला को कभी नहीं छोड़ा।
उनके नेतृत्व में सैकड़ों कलाकारों ने ‘राई’ नृत्य सीखा और मंच पर प्रस्तुत किया। उन्होंने कई राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों में भाग लिया और बुंदेलखंड की संस्कृति को सम्मान दिलाया।
कला के लिए जीवन समर्पित कर देने वाला व्यक्तित्व
रामसहाय पांडे का जीवन केवल कला प्रदर्शन तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने लोकनृत्य को संस्कार, सामाजिक संवाद और जनचेतना का माध्यम बनाया। वे अक्सर कहते थे:
“राई सिर्फ नृत्य नहीं है, यह हमारी मिट्टी की सांस है।”
उन्होंने अनेक बार स्कूलों, कॉलेजों और ग्रामीण अंचलों में प्रशिक्षण शिविर आयोजित कर नई पीढ़ी को इस विधा से जोड़ा।
अंतिम दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब
उनके निधन की खबर फैलते ही सागर जिले और आसपास के क्षेत्रों से उनके शिष्य, प्रशंसक, सामाजिक कार्यकर्ता और आम लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। स्थानीय प्रशासन ने उनके अंतिम संस्कार को राजकीय सम्मान के साथ आयोजित करने की घोषणा की।
सांस्कृतिक संस्थाओं और कलाकारों ने जताया दुख
मध्यप्रदेश ललित कला अकादमी, आदिवासी लोक कला परिषद और देशभर के लोककलाकारों ने रामसहाय पांडे के निधन को “एक युग का अंत” बताया। प्रसिद्ध लोकगायिका मालविका भट्ट ने कहा:
“उनका जाना ऐसा है जैसे राई की ताल थम गई हो। उनकी जगह कोई नहीं भर सकता।”
सरकार दे सकती है स्मृति में सम्मान
सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार रामसहाय पांडे की स्मृति में कोई वार्षिक पुरस्कार या सांस्कृतिक अकादमी स्थापित करने पर विचार कर रही है, ताकि उनके कार्यों को आगे बढ़ाया जा सके और युवाओं को प्रेरित किया जा सके।
मिट्टी की खुशबू को मंच पर सजाने वाला चला गया
पद्मश्री रामसहाय पांडे का निधन लोकसंस्कृति के उस अध्याय का अंत है, जो परंपरा, साधना और समर्पण से लिखा गया था। वे चले गए, लेकिन उनके गीत, नृत्य और यादें बुंदेलखंड की फिज़ाओं में हमेशा गूंजती रहेंगी।