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12 साल में 16 लाख भारतीय बने विदेशी नागरीक

नई दिल्ली। कारोबार, नौकरी और पढ़ाई के लिए विदेश जाकर वहां की नागरिकता लेने पर भारतीय नागरिकता स्वत: रद्द हो जाती है। बीते 12 साल में अमेरिका की नागरिकता लेने वालों की संख्या सबसे ज्यादा रही है। भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता रखने की इजाजत नहीं देता है। भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के मुताबिक भारत के नागरिक रहते हुए आप दूसरे देश के नागरिक नहीं रह सकते।

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अगर कोई व्यक्ति भारत का नागरिक रहते हुए दूसरे देश की नागरिकता लेता है तो अधिनियम की धारा नौ के तहत उसकी नागरिकता खत्म की जा सकती है। पढ़ाई, नौकरी, कारोबार के लिए विदेश जा बसने वालों की संख्या बढ़ी है।

विदेश मंत्री ने राज्यसभा में वर्षवार भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की संख्या का ब्योरा देते हुए बताया कि कहा कि 2015 में 1,31,489 जबकि 2016 में 1,41,603 लोगों ने नागरिकता छोड़ी और 2017 में 1,33,049 लोगों ने नागरिकता छोड़ी। उनके मुताबिक 2018 में यह संख्या 1,34,561 थी, जबकि 2019 में 1,44,017, 2020 में 85,256 और 2021 में 1,63,370 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी थी।

मंत्री के अनुसार, 2022 में यह संख्या 2,25,620 थी। जयशंकर ने कहा कि संदर्भ के लिए 2011 के आंकड़े 1,22,819 थे, जबकि 2012 में यह 1,20,923, 2013 में 1,31,405 और 2014 में 1,29,328 थे। वर्ष 2011 के बाद से भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की कुल संख्या 16,63,440 है।

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जयशंकर ने उन 135 देशों की सूची भी उपलब्ध कराई जिनकी नागरिकता भारतीयों ने हासिल की है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले भारतीयों की सबसे बड़ी संख्या संयुक्त राज्य अमेरिका (78,284) की नागरिकता लेने वालों की रही। दूसरे नंबर पर आस्ट्रेलिया रहा जहां 23,533 भारतीयों ने नागरिकता ली।

इस सूची में तीसरे स्थान पर कनाडा रहा जहां 21,597 भारतीयों ने नागरिकता ली और चौथे नंबर इंग्लैंड रहा जहां 14,637 भारतीयों ने नागरिकता ली। जहां की नागरिकता लेने वाले भारतीयों की संख्या कम रही, वे देश हैं- इटली (5,986 भारतीय), न्यूजीलैंड (2,643), सिंगापुर (2,516), जर्मनी (2,381), नीदरलैंड (2,187), स्वीडन (1,841) और स्पेन (1,595)।

भारत की नागरिकता छोड़ने वालों की जो प्रमुख तीन वजहें- पढ़ाई, नौकरी और कारोबार – सामने आई हैं, उनके अलावा कुछ हद तक रहन-सहन के स्तर को लेकर भी लोगों ने विदेश में नागरिकता हासिल की है। अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया और कनाडा की ओर रुख करने की वजह रहन-सहन भी रही है।

जहां तक पढ़ाई का सवाल है, साल 2020 के मुकाबले 2021 में अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 10 फीसद से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों में से 60 फीसद से ज्यादा युवा देश में वापसी नहीं करते।

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