ताजा ख़बरेंदेशब्रेकिंग न्यूज़

मुख्यमंत्री योगी के खिलाफ बार-बार याचिका दायर करने पर हाईकोर्ट ने शख्स पर लगाया जुर्माना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2007 के गोरखपुर दंगा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले का निपटारा किए जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ बार-बार याचिका दायर करने के लिए परवेज परवाज और एक दूसरे शख्स पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है।27 जनवरी 2007 को गोरखपुर में मुहर्रम के जुलूस के दौरान दो समूहों के बीच हुई झड़प में एक हिंदू युवक की मौत हो गई थी. एक स्थानीय पत्रकार परवाज ने 26 सितंबर 2008 को एक मामला दर्ज कराया, जिसमें आरोप लगाया गया कि तत्कालीन स्थानीय भाजपा सांसद आदित्यनाथ ने युवक की मौत का बदला लेने के लिए लोगों को उकसाया था. परवाज ने कहा उसके उसके पास घटना के वीडियो थेइसके बाद, भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने 3 मई 2017 को मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया. आवेदक ने हाईकोर्ट के समक्ष राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी, जिसने 22 फरवरी 2018 को उनकी याचिका खारिज कर दी. बाद में, उन्होंने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती दी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार, आवेदकों ने निचली अदालत के 11 अक्टूबर 2022 के फैसले को चुनौती दी थी जिसमें अदालत ने मामले में पुलिस की अंतिम/क्लोजर रिपोर्ट पर विरोध याचिका खारिज कर दी थी।न्यायमूर्ति दिनेश कुमार ने परवाज और अन्य की याचिका सीआरपीसी की धारा 482 (उच्च न्यायालय में निहित अधिकार) के तहत खारिज करते हुए एक लाख रुपए जुर्माना लगाया और इसे सेना कल्याण कोष में चार हफ्ते के भीतर जमा करने का आदेश दिया. यह अर्थदंड जमा नहीं करने पर इसकी वसूली याचिकाकर्ता की संपत्ति से भू राजस्व के बकाया के तौर पर की जाएगी.रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता एक व्यस्त व्यक्ति प्रतीत होता है जो खुद कई आपराधिक मामलों का सामना कर रहा है, और वह 2007 से इस मामले को लड़ता रहा है. निचली अदालत, इस अदालत और सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इस मामले को लड़ने के लिए याचिकाकर्ता को वकील नियुक्त करने में भारी खर्च करना पड़ा होगा. मुकदमेबाजी लड़ने के लिए उसके संसाधन जांच का विषय होने चाहिए. अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल की इस बात में दम है कि उत्तर प्रदेश के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ काम कर रही ताकतों द्वारा इसे खड़ा किया गया है जो राज्य और देश की प्रगति नहीं चाहती हैं।हाईकोर्ट ने कहा कि इस पहलू की जांच करना राज्य पर निर्भर है, हालांकि, यह अदालत आगे कुछ नहीं कहना चाहती और न ही इस संबंध में कोई निर्देश देना चाहती है. आवेदकों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एफ.ए. नकवी ने तर्क दिया कि आदेश की वैधता का सवाल, मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करना सुप्रीम कोर्ट द्वारा खुला छोड़ दिया गया था और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि इस मुद्दे ने अंतिम रूप ले लिया है।

a41ad136-ab8e-4a7d-bf81-1a6289a5f83f
ea5259c3-fb22-4da0-b043-71ce01a6842e
WhatsApp Image 2025-08-03 at 9.25.33 PM (1)
Pradesh Khabar

8d301e24-97a9-47aa-8f58-7fd7a1dfb1c6 (2)
e0c3a8bf-750d-4709-abcd-75615677327f
WhatsApp Image 2025-08-03 at 9.25.33 PM (1)

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!