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तीन काले किसान कानून तो रद्द कर दिए, अब 4 लेबर कोड बिल कब रद्द करोगे…… मोदी जी। स्वामी नाथ जायसवाल

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तीन काले किसान कानून तो रद्द कर दिए, अब 4 लेबर कोड बिल कब रद्द करोगे…… मोदी जी। स्वामी नाथ जायसवाल

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नई दिल्ली में प्रेस वार्ता में भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी नाथ जायसवाल ने बताया गुरु नानक जयंती की पवित्र बेला का शुभ लाभ उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने तीनों काले कृषक कानूनों को रद्द करने का फैसला लिया और 700 से अधिक कुर्बान हुए किसानों के परिवार से उनकी अकाली की मृत्यु के लिए क्षमा याचना करने की कोशिश की। मगर यह संभव नहीं है मोदी जी। आपकी एक बचकानी जीत इन 700 किसानों के घरों का चिराग बुझा गई। जरा सोचिए की इन किसानों के घरों में इनके परिवार वालों के गले से निवाला भला कैसे उतरता होगा। अपने उद्योगपति मित्रों के मुंह में सोने के चम्मच से निवाला भरने के लिए आपने यह तीन काले कृषक कानून लाए थे और उसके बदले में आपने गरीब मजदूरों और किसानों के मुंह से निवाला छीनने का पूरा कार्यक्रम बनाया था। आपकी यह कुटिल नीति नहीं चल सकी क्योंकि किसानों और मजदूरों ने आपके मन को भाप लिया था और जिस तरह 345 दिनों तक आप अपने फैसले पर अडिग थे उसी तरह हमारे किसान और मजदूर भाई भी 345 दिनों तक अपने फैसले पर अडिग रहे और अंत में आपने उनकी अधिकता को उनकी नासमझी बताते हुए यह काले कृषक कानून रद्द कर दिए। मैं इसके लिए आपका धन्यवाद नहीं करूंगा। बल्कि देश से यह गुजारिश करूंगा कि गुरु नानक जयंती के दिन को प्रकाश पूर्व दिवस के रूप में मनाने के साथ-साथ किसान एकता दिवस भी मनाया जाए। मोदी जी आप कृषक कानून को रद्द करने के लिए भले ही अलग-अलग अनेक वजह बताएं लेकिन सबसे बड़ी वजह तो सिर्फ यही है कि किसानों और मजदूरों की एकता को आप तोड़ नहीं पाए। भले ही सरकार ने किसानों को समझा पाने में खुद को फेल बताया हो, मगर किसानों की कुर्बानी के चलते यह कानून वापस हुआ है। भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) किसानों – मजदूरों के हित को सर्वोपरि मानती है।सरकार ने अपने हठ के चलते किसानों के शोषण वाले कृषि कानून को वापस लेने का निर्णय लेने में एक वर्ष लगा दिया। ऐसे में तमाम किसानों को आंदोलन में शहीद होना पड़ा। किसानों पर लाठियां चलीं। आखिरकार किसानों की जीत हुई और सरकार झुकी। यदि कृषि कानून लागू हो जाता तो निश्चित तौर पर कृषि पर पूंजीपतियों का अधिकार होता और किसान बंधुआ मजदूर बनकर रह जाते। यदि सरकार किसानों का भला ही चाहती है तो उनके पक्ष में कोई ऐसा कानून बना दिया जाए, जिससे किसान अपने उपज की कीमत तय करने का अधिकार पा ले। सरकार मानी, मगर 700 किसानों को इसके लिए खुद का बलिदान देना पड़ा। किसानों के हित में जो फैसला लेना चाहिए वह सरकार नहीं ले रही है, बल्कि कृषि कानून लाकर सरकार किसानों को बंधुआ मजदूर बना देना चाहती थी। यह सरकार की नहीं, बल्कि किसानों के बलिदान का परिणाम है कि सरकार को किसानों की मांगों के सामने झुकना पड़ा। अब जिस तरह तीनो काले पोषक कानून रद्द किए गए उसी तरह माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के माध्यम से यह निवेदन किया जाता है कि मजदूरों के हित को सर्वोपरि मानते हुए 44 श्रमिक कानूनों को जिन 4 लेबर बिल कोड में बदला गया है उनको भी तुरंत से तुरंत रद्द किया जाए। क्या कानून है जिसके जरिये जहां एक तरफ सरकार ने सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाकर इसमें गिग वर्कर और अंतर-राज्यीय प्रवासी मजदूरों को शामिल करने का प्रावधान किया है, वहीं दूसरी तरफ यह बिना सरकारी इजाजत के मजदूरों को नौकरी पर रखने एवं उन्हें नौकरी से निकालने के लिए नियोक्ता (एम्प्लॉयर) को और अधिक छूट प्रदान करता है। औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक में सरकार ने हड़ताल पर जाने के मजदूरों के अधिकारों पर अत्याधिक बंदिश लगाने का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही नियुक्ति एवं छंटनी संबंधी नियम लागू करने के लिए न्यूनतम मजदूरों की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर दिया गया है, जिसके चलते ये प्रबल संभावना जताई जा रही है नियोक्ता इसका फायदा उठाकर बिना सरकारी मंजूरी के ज्यादा मजदूरों को तत्काल निकाल सकेंगे और उसी अनुपात में भर्ती ले लेंगे। इन संहिताओं के चलते 74 फीसदी से अधिक औद्योगिक श्रमिक और 70 फीसदी औद्योगिक प्रतिष्ठान ‘हायर एंड फायर’ व्यवस्था में ढकेल दिए जाएंगे, जहां उन्हें अपने मालिक के रहम पर जीना पड़ेगा। इसके चलते ट्रेड यूनियन बनाना भी बहुत कठिन होगा और हड़ताल करने के मजदूरों के अधिकार पर एक अप्रत्यक्ष प्रतिबंध लग जाएगा। यहां तक की उन्हें अपनी शिकायतें एवं मांग के लिए आवाज उठाने में दिक्कत आएगी। इन सभी तीनों कोड बिलों में श्रमिकों के कई मूल अधिकारों और काम करने की स्थितियों के संबंध में भयावह प्रावधानों को निर्धारित किया गया है, जो कार्यपालिका को खुली छूट दे देगा अर्थात सरकार एकतरफा रूप से परिवर्तन करेगी और कॉरपोरेट के इशारे पर कार्यकारी प्रावधानों के माध्यम से उन प्रावधानों को स्पष्ट रूप से बदल देगी। औद्योगिक संबंध संहिता के तहत औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों के लिए बने नियम ‘स्थायी आदेश’ की आवश्यकता के लिए श्रमिकों की सीमा बढ़ाकर 300 से अधिक कर दी गई है। इसका तात्पर्य है कि 300 श्रमिकों से कम वाले औद्योगिक प्रतिष्ठानों को स्थायी आदेश लागू करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिसे लेकर विशेषज्ञ का कहना है कि कंपनियां श्रमिकों के लिए मनमाना सेवा शर्तें बनाएंगी। स्थायी आदेश के लिए न्यूनतम श्रमिक की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 करने का मतलब है कि सरकार मजदूरों को नौकरी पर रखने एवं नौकरी से निकालने के लिए कंपनी मालिकों को खुली छूट दे रही है। 300 मजदूरों से कम वाले संस्थान में कथित दुराचार और आर्थिक कारणों का हवाला देकर आसानी से छंटनी की जा सकेगी। इसके साथ ही औद्योगिक संबंध संहिता में कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन के संबंध में भी नई शर्तें पेश की गईं हैं। इसमें प्रस्ताव किया गया है कि एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत कोई भी व्यक्ति 60 दिनों के नोटिस के बिना हड़ताल पर नहीं जाएगा। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के सामने मामले लंबित कार्यवाही के समय भी विरोध प्रदर्शन नहीं किया जा सकेगा।
इसका सीधा-सीधा तात्पर्य है कि मजदूरों को पुनः गुलामी की तरफ धकेला जा रहा है और उनसे उनका अधिकार भी छीना जा रहा है कि वह अपनी स्वतंत्रता को लेकर लड़ाई भी ना कर सके। आपके माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने की हैसियत से मैं यह घोषणा कर रहा हूं कि इन चार लेबर बिल कोड का विरोध करने के लिए कल 26 नवंबर 2021 को अमृतसर से जलियांवाला बाग तक हम इसका विरोध प्रदर्शन करने के लिए एक रैली का आयोजन कर रहे हैं और उस रैली के माध्यम से माननीय नरेंद्र मोदी जी को यह सुझाव देना चाहते हैं कि जल्द से जल्द इन मजदूर कानूनों को रद्द किया जाए और पुराने मजदूर कानूनों को पूर्ववत लागू किया जाए।

News Desk

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