
कृष्ण-जन्माष्टमी पर्व के उपलक्ष्य पर मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन की काव्य-संध्या……………
‘बल-संबल, धन-संपदा, आस, भरोसा, मान, मेरा तो सबकुछ सखे, वासुदेव भगवान’......
कृष्ण-जन्माष्टमी पर्व के उपलक्ष्य पर मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन की काव्य-संध्या……………
ब्यूरो चीफ/सरगुजा// कृष्ण-जन्माष्टमी पर्व के उपलक्ष्य पर मानव कल्याण एवं सामाजिक विकास संगठन, सरगुजा की ओर से कवयित्री माधुरी जायसवाल के निवास पर वरिष्ठ साहित्यकार एसपी जायसवाल की अध्यक्षता में सरस काव्य-संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शायर-ए-शहर यादव विकास, विशिष्ट अतिथि पूर्व प्राचार्य बीडी लाल, गीतकार रंजीत सारथी और देवेन्द्रनाथ दुबे थे। कार्यक्रम का शुभारंभ मां वागेश्वरी की पारंपरिक पूजा-अर्चना से हुआ। नग़मा निगार पूनम दुबे ने कणप्रिय स्वरों में सरस्वती-वंदना की प्रस्तुति देकर सबको अभिभूत कर दिया। शायर-ए-शहर यादव विकास ने कहा कि भगवान कृष्ण सोलह कलाओं से युक्त साक्षात् परम्ब्रह्म परमात्मा हैं। उन्होंने शिष्य, मित्र, भाई, पुत्र, प्रेमी, पति, गुरु, राजा आदि सभी रूपों में एक महान आदर्श की संस्थापना की है, जो सभी लोगों के लिए अत्यंत प्रेरक व अनुकरणीय है। उन्होंने कर्मविमुख अर्जुन को दिव्य गीता-ज्ञान का उपदेश देकर उसे कर्तव्यपरायण बनाया और समूचे विश्व को ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग की अनुपम शिक्षा प्रदान की।
श्रीकृष्ण हर युग में मानव जाति के लिए प्रकाशस्तंभ बने रहेंगे। वरिष्ठ कवि बीडी लाल ने अपने काव्य में भगवान कृष्ण का परिचय देते हुए बताया- थी जननी देवक की दुहिता और यशोदा मैया, दोनों की जो गोद भरा, वह था कुंवर कन्हैया। अद्भुत था जीवन जिसके, हर पल, हर क्षण के काम। दोनों भैया ब्रजभूमि के रत्न श्याम, बलराम। माधुरी जायसवाल ने कृष्ण-जन्माष्टमी को यादगार बनाने के मनोहर मंत्र दिए- जिसमें राधा की भक्ति हो, मुरली की मिठास हो, माखन का स्वाद और गोपियों की रास हो- ऐसे मनाएं हम सब जन्माष्टमी, जो बिलकुल ख़ास हो। एसपी जायसवाल ने अपनी सरगुजिहा रचना में भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया- ऐ कन्हैया, तोर लीला अपरंपार हे, कूटनीति अउ प्रेम तोर व्यापार हे। जेल में तोर अवतार होइस, खुलिस ओकर केवार, अंधियारी महिना भादो कर आधी रात तैं गए जमुना पार। भक्त-कवि मुकुन्दलाल साहू ने अपने दोहों में जगदीश्वर श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व बताते हुए उनसे अचल भक्ति का वरदान प्रदान करने की अभ्यर्थना की- बल-संबल, धन-संपदा, आस, भरोसा, मान। मेरा तो सबकुछ सखे, वासुदेव भगवान। हे हरि, हे गोविंद तुम, दो ऐसा वरदान। भक्ति मिले अनपायिनी, हो जाए कल्याण।
कार्यक्रम में कवयित्री पूनम दुबे ने कृष्ण प्रेम में आकंठ डूबी गोपियों की उलाहना को सुंदर गीतात्मक अभिव्यक्ति दी- मत मारो कंकरी घनश्याम, टूट जाएगी गागरिया। ऐसे डारो न नज़रों के वार, शर्माएगी झांझरिया। वरिष्ठ गीतकार रंजीत सारथी ने गीत- मनमोहन कन्हैया मोर, मया मा बांध डारे- सुनाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। कवयित्री अर्चना पाठक ने अपने दोहे में भगवान कृष्ण के नामों को आनंद का धाम बताते हुए उनसे जीवन जगमग कर लेने का आव्हान किया- श्याम नाम आनंद है, सुखद रहे दिन-रात। चंद्र-चंद्रिका लाइए, देने को सौग़ात।
संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉ0 उमेश पाण्डेय ने भगवान कृष्ण के नित्य कर्मों का समुल्लेख करते हुए बताया कि- जन्म, पुनर्जन्म, कर्मफल का रहस्य समझाया, आत्मा-परमात्मा का रहस्य बताया। परिवर्तन जीवन का आधार है, श्रीकृष्ण-दर्शन जीवन का सार है। गोपाल कभी रुके नहीं, गोविंद कभी थके नहीं। आशा पाण्डेय ने भी कहा- जनमे कारागार में, श्रीकृष्णा भगवान। लीला अपरंपार है, कृष्णा बड़े महान्। स्वामी तीनों लोक के, हैं जीवन-आधार। मिले कृष्ण के ध्यान से, मन को शांति अपार। कवि कृष्णकांत पाठक ने तो यहां तक कह दिया कि- श्याम-चरणों मंे मन को लगाया नहीं, तो बता दे किया तूने क्या उम्रभर। इनके अलावा कविवर यादव विकास, कार्यक्रम संचालक श्यामबिहारी पाण्डेय, देवेन्द्रनाथ दुबे, विनोद हर्ष, संतोष दास ‘सरल’, आनंद सिंह यादव और अम्बरीष कश्यप ने भी राष्ट्रभक्ति और गोविन्द विषयक कविताएं प्रस्तुत कर कार्यक्रम को रोचक, सफल व यादगार बनाया। माधुरी जायसवाल ने आभार ज्ञापित किया।