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स्वास्थ्य विभाग ने जयसिंह तालाब में छोड़े दो हजार नग गंबूसिया मछली

रायगढ़ : स्वास्थ्य विभाग ने जयसिंह तालाब में छोड़े दो हजार नग गंबूसिया मछली

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गंबूसिया मछली पालने से मच्छर जनित बीमारियों से होता है बचाव

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कलेक्टर श्री भीम सिंह के दिशा-निर्देशन एवं सीएमएचओ डॉ.एस.एन.केशरी की नेतृत्व व जिला मलेरिया अधिकारी डॉ.टी.जी.कुलवेदी के मार्गदर्शन में रायगढ़ शहर के जयसिंह तालाब में 2000 नग गंबूसिया मछली स्वास्थ्य विभाग (राष्ट्रीय वाहक जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम) के द्वारा छोड़ी गई हैं जहां इनकी संख्या को बढ़ाया जायेगा। इस मौके पर जिला प्रोग्राम मैनेजर भावना महलवार, जिला राष्ट्रीय वाहक जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत जिला सलाहकार श्री शेख निशार, टेक्निकल सुपरवाइजर निर्मल प्रसाद साहू, गौतम सिदार, सेक्रेटेरियल असिस्टेंट प्रीती शर्मा व अंजू पट्टनायक उपस्थित रहे।
गंबूसिया मछली पालने से मच्छर जनित बीमारियों से बचा जा सकता है। गंबूसिया मछली की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यह पानी में पनपने वाले व मच्छर जनित रोग फैलाने वाले मच्छरों के लार्वा को पानी में ही खा जाती है जिससे मच्छरों के संख्या में कमी आती है। मच्छर जनित रोग जैसे डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया के होने का रिस्क काफी हद तक कम हो जाता है। इसका प्रयोग देश के कई महानगरों में डेंगू नियंत्रण हेतु उपयोग किया गया है वहीं छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग के जिलों में व मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में मलेरिया नियंत्रण हेतु उपयोग कर लाभदायक सिद्ध हुआ है।
यह मछली पानी के सतह में रहती है। मच्छर के लार्वा को खा जाती है। यह मछली आकार में छोटी होती है, ऐसे में आम नागरिक डेंगू, मलेरिया से खुद को बचाकर रखना चाहते हैं, तो घर में भी इस मछली को पाल सकते हैं। इसे आप एक्वेरियम, सीमेंट की बड़ी टंकी में रख सकते हैं। गंबूसिया का जीवनकाल लगभग पांच वर्ष होता है। इन पांच वर्षों में यह लाखों लार्वा खा सकती है। इसे एक स्थान से दूसरे स्थान भी लिया जा सकता है।
स्वास्थ्य विभाग रायगढ़ ने वाहक जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत ओडिशा राज्य के सम्बलपुर जिले के मदर हेचेरी से 12 हजार 500 गंबूसिया मछली नि:शुल्क प्राप्त किया है। जिसे आगामी दिनों में जिले के सभी विकासखंड में वितरित करवाया जाएगा, जिससे मछलियों की संख्या में इजाफा होगा। जिले के चिन्हांकित हाई रिस्क एरिया फॉर वेक्टर बोर्न डिजीज वाले ग्रामों में इनका संचयन किया जायेगा। जिन मानव-निर्मित कृत्रिम स्रोत पे 02 सप्ताह से अधिक या 03 माह से अधिक जल भराव वाले प्राकृतिक स्रोत रहते हैं वहाँ इस मछली को डाले जाते हैं। ये केमिकल प्रयोग से बेहतर जैविक तरीका है। इसमें खर्च भी कम आते हैं। गंबूसिया मछलियों से जल प्रदूषण भी नहीं होता। छिछले या कम पानी में भी ये जीवित रह सकती हैं। ये मछलियां मनुष्य के खाने के उपयुक्त नहीं है। 30-45 दिनों में इसकी संख्या दुगुनी हो जाती है। ये एक छोटी मछली है जिसे मच्छर मछली भी कहा जाता हैं। ये मछली अंडे नहीं बल्कि मछली के बच्चे पैदा करती हैं

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Ashish Sinha

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