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कभी खींचते थे रिक्शा, आज चला रहे हैं कैब कंपनी

कभी खींचते थे रिक्शा, आज चला रहे हैं कैब कंपनी

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भाग्य के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं होता, हमेशा मेहनत ही रंग लाती है. जी हां, ऐसा ही कुछ करके दिखाया है सहरसा के युवा एंटरपेन्योर दिलखुश ने. दिलखुश कभी सड़कों पर रिक्शा चलाने का काम करता था.

आज वह 3200 गाड़ियों वाले कैब सर्विस कंपनी का मालिक (Dilkhush became owner of cab company) है. आखिर कैसे उसने रिक्शा चलाने से कैब सर्विस कंपनी का मालिक बनने तक का सफर तय किया. यह बहुत ही दिलचस्प कहानी है. पढ़ें पूरी खबर..

सहरसा: बिहार के सहरसा का दिलखुश कभी दिल्‍ली की सड़कों पर रिक्‍शा खींचने का काम करता था. आज उसकी अपनी स्टार्टअप कंपनी है. वह पटना में एक स्‍टार्टअप कैब कंपनी को सफलतापूर्वक चला रहे हैं. दिलखुश की सफलता की कहानी (Story of Saharsa Dilkhush) बेहद ही दिलचस्‍प है. कैसे उसने रिक्शा चालक से कैब कंपनी के मालिक बनने का सफर तय किया. दिलखुश बिहार के सहरसा जिला के बनगांव के रहने वाले हैं. उनकी एप आधारित कैब कंपनी से इस समय 3200 से अधिक गाड़ियां जुड़ी हुई हैं.

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सहरसा के दिलखुश कुमार

3200 गाड़ियां दिलखुश के कैब कंपनी से जुड़ी हैः दिलखुश की कैब कंपनी में 3200 गाड़ियों के अलावा इतनी ही संख्या में चालक भी उनसे जुड़कर स्वरोजगार कर रहे हैं. उसने इस साल के अंत तक उन्होंने अपने नेटवर्क से 25 हजार गाड़ियों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है. दिलखुश की पढ़ाई इंटरमीडिएट तक ही हुई है. पिता पवन खां बस चालक हैं. गांव के लोग भी कहते थे, बस चालक का बेटा तो बस ड्राइवर ही बनेगा, लेकिन दिलखुश के लिए बस चालक भी बनना आसान नहीं रहा. गांव में रोजगार शिविर लगा तो निजी स्कूल में चपरासी पद के लिए आवेदन दिया. वहां भी नौकरी लगते-लगते रह गई.

” देश में रोजाना सवा करोड़ लीटर तेल इसलिए बर्बाद हो जा रहा है, क्योंकि अधिकतर चालकों को किसी अन्य शहर जाने पर एक ही तरफ के लिए यात्री मिलते हैं. उनका लक्ष्य कैब चालकों का एक समुदाय विकसित करना है, जिसमें देश के सभी शहरों का प्रतिनिधित्व हो. वे साफ्टवेयर इंजीनियरों की मदद से ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जिसमें अन्य कैब सेवा कंपनियों के चालकों के आंकड़े भी रहेंगे. इसका फायदा यह होगा कि अगर व्यक्ति को किसी शहर में कैब की जरूरत पड़ेगी, तो उसे सेवा उपलब्ध करा दी जाएगी” – दिलखुश
सहयोगियों के साथ सहरसा के दिलखुश कुमार

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बीमारी ने जकड़ा तो लौटे घर, फिर शुरू किया अपना स्टार्टअप : दिलखुश रोजगार की तलाश में दिल्ली चले आए, लेकिन यहां बस चालक की नौकरी नहीं मिली तो पैडल रिक्शा चलाना शुरू किया. इसी बीच बीमारी ने जकड़ लिया तो घर लौट आए और कुछ अलग करने की ठानी. फिर स्टार्टअप योजना के तहत बिहार सरकार के सीड फंड से साढ़े पांच लाख रुपये का लोन लिया और अक्टूबर 2016 में आर्यागो नाम से कैब सेवा शुरू की. इसमें 350 के करीब गाड़ियों का संचालन होता है. सहरसा के अलावा पड़ोसी जिले सुपौल और दरभंगा तक इसका नेटवर्क है.

दो कंपनियां AryaGo, RodBez शुरू कर चुके हैं दिलखुश: सहरसा के रहने वाले 29 साल के दिलखुश कुमार अब तक दो कंपनियों की शुरुआत कर चुके हैं. उन्होंने साल 2016 में AryaGo की स्थापना की थी. उसके बाद RodBez नाम की कैब कंपनी भी खोली. उनकी इस सोच को लोग कितना पसंद करते हैं और आज उनकी ये कोशिश कितनी कामयाब हो चुकी है, इसे इस बात से समझ सकते हैं कि आज उनकी कंपनी के नेटवर्क में करीब 4000 कार हैं. इसके माध्यम से वह करीब 500 लोगों को रोजगार मुहैया कराते हैं.
दिलखुश की कोशिश से कैब बुकिंग की दुनिया में क्रांति

रोडवेज नाम से शुरू की दूसरी कैब आधारित कंपनीः छह जून 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्टार्टअप इंडिया के तहत युवाओं से बात की थी. इसमें दिलखुश भी शामिल थे. कमाई बढ़ने पर दिलखुश ने आर्यागो की जिम्मेदारी पत्नी और अन्य सहयोगियों को सौंप दी और पिछले साल रोडवेज नाम से एक दूसरी कंपनी बनाई. रोडवेज भी एप आधारित कैब सेवा प्रदाता कंपनी है. दिलखुश अपनी कंपनी का संचालन पटना से कर रहे हैं. यहीं उनका कार्यालय है. इसमें 14 लोग नौकरी कर रहे हैं. वे बताते हैं कि ओला और उबेर जैसी कंपनियों से इतर रोडबेज अलग-अलग शहरों में जाने के लिए कैब उपलब्ध कराती है.

हर शहर में कैब चालकों का समुदाय विकसित करने का लक्ष्य: दिलखुश कहते हैं कि बिहार का सबसे लंबा वन वे टैक्सी चेन की शुरुआत करने के पीछे मकसद बहुत स्पष्ट है. इस ऐप से कैब बुकिंग किराए में 40-60 फीसदी तक की बचत हो सकती है. इतना ही नहीं कैब संचालकों की कमाई भी 10 से 15 हजार बढ़ सकती है. एक तरफ कैब बुकिंग की सुविधा देने वाले रोडबेज की लोकप्रियता बिहार में पिछले कुछ समय में तेजी से बढ़ गई है. पटना से दूर जाने वाले लोग इसे खूब पसंद करते हैं. वह कहते हैं कि साफ्टवेयर इंजीनियरों की मदद से ऐसी तकनीक विकसित कर रहे हैं, जिसमें अन्य कैब सेवा कंपनियों के चालकों के आंकड़े भी रहेंगे. इसका फायदा यह होगा कि अगर व्यक्ति को किसी शहर में कैब की जरूरत पड़ेगी, तो उसे सेवा दी जा सके.

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