छत्तीसगढ़ताजा ख़बरेंब्रेकिंग न्यूज़राज्यरायपुर

छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य में है यहां की लोककला का प्राणतत्व

रायपुर: विशेष लेख : छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य में है यहां की लोककला का प्राणतत्व

WhatsApp Image 2025-10-31 at 2.58.20 PM (1)
WhatsApp-Image-2025-10-31-at-2.41.35-PM-300x300

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव

यह मानव जीवन के उल्लास-उमंग-उत्साह के साथ परंपरा के पर्याय

अनंत व असीम है छत्तीसगढ़ की नृत्य परंपरा

1 से 3 नवंबर तक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में होगा जनजातीय नृत्यों का प्रदर्शन

मनोज सिंह, सहायक संचालक

अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन 1 से 3 नवंबर तक
छत्तीसगढ़ी लोककला में लोकनृत्य संपूर्ण प्रमुख छत्तीसगढ़ के जनजीवन की सुन्दर झांकी है। राग-द्वेष, तनाव, पीड़ा से सैकड़ों कोस दूर आम जीवन की स्वच्छंदता व उत्फुल्लता के प्रतीक लोकनृत्य यहां की माटी के अलंकार है। छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य सुआ, करमा, पंथी राउत नाचा, चंदैनी, गेड़ी, नृत्य, परब नृत्य, दोरला, मंदिरी नृत्य, हुलकी पाटा, ककसार, सरहुल शैला गौरवपाटा, गौरव, परथौनी, दशहरा आदि हैं। छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य में यहां की लोककला का प्राणतत्व है। यह मानवीय जीवन के उल्लास – उमंग-उत्साह के साथ परंपरा के पर्याय हैं। समस्त सामाजिक, धार्मिक व विविध अवसरों पर छत्तीसगढ़ वासियों द्वारा अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के ये प्रमुख उद्विलास हैं। छत्तीसगढ़ की नृत्य परंपरा अनंत व असीम है। छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकनृत्यों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :-
सुआ नृत्य
यह छत्तीसगढ़ का सबसे लोकप्रिय नृत्य है। छत्तीसगढ़ी ग्रामीण जीवन की सुंदरता बरबस इस नृत्य से छलक पड़ती है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र की महिलाएं व किशोरियां यह नृत्य बड़े ही उत्साह व उल्लास से उस समय प्रारंभ करती हैं, जब छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल धान के पकने का समय पूर्ण हो जाता है। यह नृत्य दीपावली के कुछ दिन पूर्व प्रारंभ होता है और इसका समापन शिवगौरी के विवाह आयोजन के समय दीपावली के दिन रात्रि के समय होता है। इस नृत्य में महिलाएं प्रत्येक घर के सामने गोलाकार झुंड बनाकर ताली की थाप पर नृत्य करते हुए सुन्दर गायन करती हैं। टोकरी जिसमें धान भरा होता है, उसमें मिट्टी से बने दो सुआ शिव और गौरी के प्रतीक के रूप में श्रद्धापूर्वक रखे जाते हैं। नृत्य करते समय महिलाएं टोकरी गोलाकर वृत के बीचों-बीच रख देती है, और सामूहिक रूप से झूम-झूमकर ताली बजाते हुए सुआ गीत गाती हैं। वस्तुतः सुआ नृत्य प्रेम नृत्य है जिसे शिव और गौरी के नाम से व्यक्त किया जाता है।

mantr
66071dc5-2d9e-4236-bea3-b3073018714b

पंथी नृत्य
छत्तीसगढ़ में निवास करने वाली सतनामी जाति का परंपरागत नृत्य है। माघ महीने की पूर्णिमा को गुरू घासीदास के जन्म दिन पर सतनामी सम्प्रदाय के लोग जैतखाम की स्थापना करके उसका पूजन करते हैं और फिर उसी के चारों तरफ गोल घेरा बनाकर गीत गाते हैं, नाचते हैं। पंथी नृत्य का प्रारंभ देवताओं की स्तुति से होता है। उनके गीतों में गुरू घासीदास का चरित्र ही प्रमुख होता है जिसमें मनुष्य के जीवन की गौरव गाथा के साथ उसकी क्षण भंगुरता प्रकट होती है गहरे आध्यामिक रंग में रंगे उनके गीत निगुण भक्ति की ऊंचाईयों का स्पर्श करते हैं। इन नृत्य के प्रमुख वाद्य मृदंग और झांझ हैं। नृत्य का आरंभ तो विलम्बित गति से ही होता है, पर लय प्रतिपल द्रुत होती है और समापन नृत्य की चरम द्रुतगति पर होता है। नर्तकों की ताम्बे के रंग की देह से उभरती आंगिक चेष्टाएं आलौकिक भाव का सृजन करती हैं। ऐसे कम ही लोक नृत्य है और वह भी उन क्षणों में जब जीवन की क्षणभंगुरता का गीत गाया जा रहा हो।
राऊत नाचा
दीपावली के तुरंत बाद राऊतों द्वारा नृत्य का सामूहिक आयोजन किया जाता है। वे समूह में सिंग बाजा के साथ गांव के मालिक जिनके वे पशुधन की देखभाल करते हैं, के घर में जाकर नृत्य करते हैं। उनके लिए यह एक बड़ा वार्षिक पर्व है। स्थानीय लोगों को इसमें उत्साहित होने का मौका मिलता है। मालिक इन्हें 10-20 दिन तक काम से मुक्त कर देते हैं। इस बीच वे नाथ गाना का उत्सव करते हैं। देवउठनी, पुन्नी पूर्णिमा के दिन गायों को सोहई बांधकर अपने सुमधुर कंठ से मालिक की सुख-समृद्धि की कामना कर दोहा कहते हैं। इस समय राऊतों के विशिष्ट परिधान देखते ही बनता है। बिलासपुर में होने वाले राऊत नृत्य प्रतियोगिता ने तो अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पा ली है।
चंदैनी नृत्य
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में लोककथाओं पर आधारित यह एक महत्त्वपूर्ण लोकनृत्य है। लोरिक चंदा के नाम से ख्यातिलब्ध चंदैनी मुख्य रूप से एक प्रेमगाथा है जिसमें पुरुष पात्र विशेष पहनावे में अनुपम नृत्य के साथ चंदैनी कथा को अत्यंत ही सम्मोहक शैली में प्रस्तुत करते हैं जो कि सम्पूर्ण रात्रि तक दर्शकों को सम्मोहित किये रहती है। छत्तीसगढ़ में चंदेनी दो शैलियों में विख्यात है। एक तो लोककथा के रूप में एवं द्वितीय गीत नृत्य के रूप में चंदैनी नृत्य में मुख्य रूप से ढोलक की संगत एवं टिमकी प्रमुख वाद्य यंत्र है।
छत्तीसगढ़ में जनजातियों की जनसंख्या कुल जनसंख्या का 31 प्रतिशत है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति एवं सभ्यता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल रही है। इसी कड़ी में राज्य में तीसरी बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री बघेल की पहल पर इंटरनेशनल ट्राइबल डांस फेस्टिवल के रूप में एक बहुत महत्वपूर्ण परंपरा की शुरुआत छत्तीसगढ़ में की गई है। यह प्रयास न केवल छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि देश और पूरी दुनिया के जन-जातीय समुदायों के आपसी मेलजोल, कला-संस्कृतियों के आदान-प्रदान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो रहा है।

Ashish Sinha

e6e82d19-dc48-4c76-bed1-b869be56b2ea (2)
WhatsApp-Image-2025-09-23-at-1.09.26-PM-300x300
IMG-20250923-WA0360-300x300
WhatsApp-Image-2025-09-25-at-3.01.05-AM-300x298
BackgroundEraser_20250923_132554448-1-300x298
WhatsApp Image 2025-11-23 at 11.25.59 PM

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!