छत्तीसगढ़ब्रेकिंग न्यूज़राज्यसरगुजा

हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा बड़ी महान्, जन को जन से जोड़कर, करती जनकल्याण

राजभाषा सप्ताह के तहत हिन्दी साहित्य परिषद की काव्यगोष्ठी

हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा बड़ी महान्, जन को जन से जोड़कर, करती जनकल्याण

hotal trinatram
Shiwaye

ब्यूरो चीफ/सरगुजा//  राजभाषा सप्ताह और गणेश विसर्जन के उपलक्ष्य पर हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा स्थानीय पंचानन होटल में काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जेएन मिश्र, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार बीडीलाल और अध्यक्षता शायरे शहर यादव विकास ने की।

कार्यक्रम का प्रारंभ पूनम दुबे द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से हुआ। माधुरी जायसवाल की कविता-हिन्दी मेरी शान है, हिन्दी से पहचान है, हिन्दी मेरी संस्कृति, वही देष की धड़कन है-में हिन्दी भाषा की महिमा और उसकी व्यापकता का चित्रण हुआ। ज्योति अम्बष्ट ने कविता-हे सखी हिन्दी, मैं साज हूं तेरा, तू ही मेरा गीत है, अंचल सिन्हा की हिन्दी पर अभिमान और परिषद के अध्यक्ष विनोद हर्ष की रचना-अमर रहे हिन्दी, वैभव तेरा गूंजे विष्व की हर वाणी में-जैसी सषक्त रचनाओं ने सबको भावविभोर कर दिया। मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहे में राष्ट्रभाषा हिन्दी को विष्व की एक महान् भाषा बताया-हिन्दी हिन्दुस्तान की, भाषा बड़ी महान्। जन को जन से जोड़कर, करती जनकल्याण। गीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने अपने गणेष भक्ति-गीत-त्रास हो न हृास हो हे गणेष देवा, राष्ट्र का विकास हो हे गणेश देवा के माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र के प्रति मंगलकामना व्यक्त की। आषा पाण्डेय ने-हे विघ्नहरण, मंगलकरण, गौरीपुत्र गजानन के द्वारा शुभ, मंगल के देवता गणेष की महिमा का गान किया।

nora
Shiwaye
hotal trinatram
durga123

कार्यक्रम में गीता दुबे की कविता-ये सावन की झडि़यां, ये खुषबू की लडि़यां, मन में इन्हें बसा लो, मीना वर्मा की-मोर सोन चिरइयां कहां तैं उड़ा गे रे, माधुरी दुबे की-झुलवा रे झुल, कदम मेेरे फूल, मया देके संगी झन जाबे मोला भूल, रंजीत सारथी का सरगुजिहा गीत-मांदर ला बजाबे ओरे ओर, तभे रिझ लागही संगी मोर, गीता द्विवेदी की-आती-जाती हवाओं, थोड़ी देर ठहर जाती, तो अच्छा था, डाॅ. सुधीर पाठक की-हरियर लुग्गा संगी हरियर चूरी, राजनारायण द्विवेदी की रचना-मुझे भी कुछ कहना है पर कहूं कैसे और किससे, कृष्णकांत पाठक का गीत-दिल की बात जुबां पर लाना कितना है मुष्किल, डर लगता है टूट न जाए मुझसे उसका दिल और राजेन्द्र विष्वकर्मा का गीत-मेहनत-मजूरी कयेर लो तबे पइसा पाबे-जैसी रचनाओं ने सबका दिल जीत लिया।

पूनम दुबे के गीत-फूल भी शूल बनकर उम्रभर चुभते रहे-में नारियों की व्यथा का मार्मिक वर्णन हुआ। अम्बरीष कष्यप की गजल-मेहनत की नदी में तैरना भी पड़ता है यहां, भूख अपनी मिटाने को कोयले की तरह जलना भी पड़ता है यहां-को सुनकर श्रोता जीवन की सच्चाइयों से रूबरू हुए। गोष्ठी में प्रकाष कष्यप की गजल-टूट न जाए दर्पण कहीं नेह का, प्रीत का गीत बस गुनगुनाते रहें, अजय श्रीवास्तव की रचना-उनके घर में करो रोषनी, जिनके घर अंधियारा है, बीडी लाल की रचना-कविते, तू उपवन-द्वार खोल, कल कुंजन होता जहां बोल, शायरे शहर की गजल-क्या खूब शायर कहता है, दिल है वही जो दुखता है और जेएन मिश्र के गीत-सोंधी माटी गांव की, पोखर, बरगद, छांव की-को श्रोताओं ने खूब सराहा। इनके अलावा कार्यक्रम में अजय शुक्ल बाबा ने भी अपनी प्रतिनिधि कविता का पाठ किया। गोष्ठी का काव्यमय संचालन प्रकाष कष्यप और आभार गीता दुबे ने जताया। इस अवसर पर लीला यादव, विषिष्ट केषरवानी, शुभम सोनी आदि काव्यप्रेमी उपस्थित रहे।

 

Pradesh Khabar

a9990d50-cb91-434f-b111-4cbde4befb21
rahul yatra3
rahul yatra2
rahul yatra1
rahul yatra

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!