
अगर सच में चाय बेची है तो फिर मजदूरों से इतनी नफरत क्यों है साहब….स्वामीनाथ जायसवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय राष्ट्रीय मजदूर काँग्रेस (इंटक)
अगर सच में चाय बेची है तो फिर मजदूरों से इतनी नफरत क्यों है साहब….स्वामीनाथ जायसवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष :भारतीय राष्ट्रीय मजदूर काँग्रेस (इंटक)
शायद ही कोई ऐसा आशियाना निर्मित हुआ हो जिसमे किसी मेहनत कश ने अपना योगदान ना दिया हो। बगैर श्रमिक के किसी भी निर्माण कार्य की कल्पना तक असंभव है। कस्बों, नगरों, महानगरों में जिन्दगी की सुबह की शुरुआत ही मजदूरों की आमद से होती है। किसानों के कृषि भूमि के अधिग्रहण और घटती जोत ने किसानों को भी मजदूर ही बना दिया है। आज श्रमिक वर्ग असंगठित है जिसका बेजा फायदा पूंजीपति वर्ग बखूबी उठा रहा है और शुरू से उठता ही रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को भी असंगठित मजदूरों के हित की जगह अंबानी-अडाणी के हित पूर्ति की चिंता अपने स्वार्थ पूर्ति के कारण ज्यादा रहती है। अपने परिवार के पेट पालने की चिंता में बेबस-बेजार श्रमिक वर्ग तो हाथ जोड़े कम श्रम मूल्य में भी खटने को तैयार रहता ही है, तिस पे भी काम ना मिलने की चिंता उसको प्रतिदिन सताती ही रहती है। शिक्षा का अभाव, गिरता स्वास्थ्य, प्रति पल टूटता मनोबल श्रमिक वर्ग को अंधकार मय जीवन की तरफ ले जाता है। श्रमिक वर्ग की चिंता, उसके हितों की चिंता, उसके परिवार की, खुद उसकी स्वास्थ्य की चिंता किसको है?
किसी शायर ने सच ही कहा है कि …
किसी को इज़्ज़-ओ-नाज़,किसी को नाम चाहिए,
मैं मजदूर हूँ साहब मुझे पेट के लिए काम चाहिए।
पूरा देश जानता है कि भारतीय जनता पार्टी सरकार के रूप में भ्रष्ट और विफल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने पिछले ७ साल में अहंकारी, जनता से कटी हुई, संवेदनहीन, झूठे और पूरी तरह से नाकाम प्रधानमंत्री की भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का एक मात्र ऐजेंडा है, सिर्फ काँग्रेस के नेताओं और काँग्रेस पर कीचड़ उछालो, झूठी खबरें फैलाओ, उनको बार-बार ज़ोर-ज़ोर से रोज़ दोहराओ और लोगों को गुमराह करो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अपने झूठों को चलाने के लिए बेशर्मी का सहारा ले रहे हैं। मोदीजी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल साहब को कभी याद तक नहीं किया और आज जब जनता ने देश की सरकार चलाने का जिम्मा साहब को दिया तो सरदार पटेल जी के सम्मान के नाम पर साहब ने जनता के ३००० करोड़ रुपये “स्टैच्यू ऑफ युनिटी” बनवाने में खर्च कर दिये और वे पैसे भी किस देश को दिये, भारत के सबसे बड़े विरोधी राष्ट्र चीन को दिये। जब काँग्रेस ने कहा कि यही काम तो भारत के मजदूर भी कर सकते थे, तो यह बात इनसे हज़म नहीं हो रही है। पिछले आठ वर्षों में भाजपा सरकार ने ‘सबका साथ – सबका विकास’ का नारा देते हुये समाज के हर वर्ग के विकास पर ध्यान की बात कही है। जिसे कि इस युग का सबसे बड़ा झूठ कहा जाये तो भी कम है। अगर ऐसा हुआ होता तो इस देश का प्रवासी मजदूर कोरोना की विषम परिस्थितियों में भूखा नहीं सोया होता । असंगठित क्षेत्र के मजदूरों ने शहरों की तरफ से गावों की तरफ पलायन नहीं किया होता।
हमारे नेता राहुल गाँधी संघर्ष में तपते – तपते इतनी निखरे हैं कि उनकी सोच दिखाती है कि कार्यकर्ताओ की कड़ी मेहनत और जनता जनार्दन के आशीर्वाद से सब कुछ संभव है। और आज इसी विश्वास के साथ काँग्रेस उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत प्राप्त करेगी और सरकार भी बनायेगी।
मोदीजी के शासनकाल में पिछले सात सालों बाद भी असंगठित क्षेत्र में मजदूरों की दशा ज्यों की त्यों बनी हुई है। आज भी ईंट भट्ठा, ऊंचे-ऊंचे भवनों में निर्माण कार्य व अन्य स्थानों में मजदूर जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं। न तो उन्हें चिकित्सकीय सुविधाएं उपलब्ध हैं और न ही अन्य सुविधाएं। बावजूद इसके मजदूर यह कार्य करके दो वक्त की रोटी जुटा रहे हैं। दिहाड़ी मजदूर कहते हैं कि महंगाई दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में मजदूरों की मजदूरी बढ़ाई जानी चाहिए। पहले जहां डेढ़ सौ रुपए में महीने का खर्च चल जाता था, वहीं अब ५ हजार रुपए भी कम पड़ते हैं। मंडी के हमालों का कहना है कि मजदूर के हक में मजदूरी दर बढ़ाई जानी चाहिए। यदि मजदूरों की हालत सुधारना ही है, तो मजदूरी दर बढ़ा देनी चाहिए। मजदूरों और गरीबों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का पूरा लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल पा रहा है।
मोदी जी के सात सालों के शासनकाल में मजदूरों के हालात बद से बदतर ही हुये हैं। अगर ऐसा नहीं है तो इमारतों के, सडकों के, पुलों के अनवरत निर्माण के बावजूद मेहनत कश मजदूर के आर्थिक विपन्नता के पीछे का राज क्या है? मजदूरों को क्या उनकी मेहनत की वाजिब मजदूरी मिलती है? मजदूरी कितनी हो, न्यूनतम के साथ-साथ अधिकतम मजदूरी भी यह सुनिश्चित होना क्या जरुरी नहीं है?
मेहनत मजदूरी करने वालों की स्थिति में सुधार अभी तक क्यों नहीं हो पाया, यह सवाल अभी भी मोदी सरकार की चिन्ता में शामिल नहीं है। भारत की वास्तविक शक्ति किसान और मजदूर हैं, इनकी समृद्धि के बगैर देश में खुशहाली आ ही नहीं सकती। इसकी ईमानदार कोशिशें सरकारों को करनी चाहिए क्योंकि -जब तक भूखा इन्सान रहेगा धरती पर तूफान रहेगा।
सरकार का प्रयास लोगों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना – मंत्री गुरु रूद्रकुमार