
लोक गीत में अध्यात्म का गूढ़ अर्थ….
हमारे लोक साहित्य अध्यात्म की अनुपम धरोहर हैं। यहां का कण-कण आध्यात्मिक गौरव से लबालब है, और दुखद है हम अपने इस समृद्ध धरोहर को अनदेखी कर नौटकीबाजों के तमाशे देखने के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक पलायन करते जा रहे हैं।
हमारा “आदि धर्म जागृति संस्थान” का यह छोटा सा अभियान ऐसे गौरवशाली अतीत और समृद्धि से अपनों को अवगत कराने का प्रयास है।☺
आइए देखें एक फुगड़ लोक गीत में अध्यात्म का गूढ़ अर्थ….
-सुशील भोले-
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1- ( अटकन )
अर्थ-
जीर्ण शरीर हुआ जीव जब भोजन उचित रूप से निगल तक नहीँ पाता अटकने लगता है–
2- ( बटकन )
अर्थ-
मृत्युकाल निकट आते ही जब पुतलियाँ उलटने लगती हैं-
3- ( दही चटाकन )
अर्थ –
उसके बाद जब जीव जाने के लिए आतुर काल में होता है तो लोग कहते हैँ गंगाजल पिलाओ
4- ( लउहा लाटा बन के काटा )
अर्थ-
जब जीव मर गया तब श्मशान भूमि ले जाकर लकड़ियों से जलाना अर्थात जल्दी जल्दी लकड़ी लाकर जलाया जाना
6- ( तुहुर-तुहुर पानी गिरय )
अर्थ-
जल रही चिता के पास खड़े हर जीव की आँखों में आंसू होते हैं
7- ( सावन में करेला फुटय )
अर्थ-
अश्रुपूरित होकर कपाल क्रिया कर मस्तक को फोड़ना |
8- ( चल चल बेटा गंगा जाबो )
अर्थ-
अस्थि संचय पश्चात उसे विसर्जन हेतु गंगा ले जाना ।
9- ( गंगा ले गोदावरी जाबो )
अर्थ-
अस्थि विसर्जित कर घर लौटना ।
10- ( पाका-पाका बेल खाबो )
अर्थ-
घर में पक्वान्न (तेरहवीं अथवा दस गात्र में) खाना और खिलाना |
11- ( बेल के डारा टुटगे )
अर्थ-
सब खा-पीकर अपने-अपने घर चले गए |
12- ( भरे कटोरा फुटगे )
अर्थ-
उस जीव का इस संसार से नाता छूट गया ।
13- ( टुरी-टुरा जुझगे )
अर्थ-
दशकर्म के बाद सब कुछ भुलकर सब कोई अपने-अपने काम धंधा में लग गये |
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यह प्रतीकात्मक बाल गीत इतना बड़ा सन्देश देता रहा और मुझे अर्थ समझने में इतने वर्ष लग गए।
जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी.. जय मूल संस्कृति..
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