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नीरज और मंगल पांडेय को काव्यांजलि, तुलसी साहित्य समिति अम्बिकापुर की काव्यगोष्ठी

नीरज की पुण्यतिथि और मंगल पांडेय की जयंती पर तुलसी साहित्य समिति, अम्बिकापुर द्वारा भावभीनी काव्यगोष्ठी का आयोजन, जिसमें कवियों ने देशभक्ति, प्रेम और इंसानियत को स्वर दिए।

नीरज और मंगल पांडेय को काव्यांजलि, तुलसी साहित्य समिति की भावभीनी गोष्ठी सम्पन्न

अम्बिकापुर। आंसू जब सम्मानित होंगे, मुझको याद किया जाएगा, जहां प्रेम की चर्चा होगी, मेरा नाम लिया जाएगा।
गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ की इन पंक्तियों के साथ उनकी पुण्यतिथि और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पांडेय की जयंती पर तुलसी साहित्य समिति द्वारा केशरवानी भवन में एक भव्य काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया।

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गोष्ठी की अध्यक्षता गीतामर्मज्ञ ब्रह्मशंकर सिंह ने की। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शायर-ए-शहर यादव विकास, विशिष्ट अतिथि लीला यादव, चंद्रभूषण मिश्र और रामलाल विश्वकर्मा रहे। संचालन कवि अजय सागर और कवयित्री अर्चना पाठक ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत

कार्यक्रम की शुरुआत माँ वीणावती की सामूहिक पूजा और तुलसीकृत रामचरितमानसएसपी जायसवाल द्वारा रचित सरगुजिहा रामायण के पाठ से हुई।

विचार और श्रद्धांजलि

ब्रह्मशंकर सिंह ने कहा कि नीरज हिंदी गीतों के गगन में ध्रुवतारे समान हैं। उन्हें दो बार पद्म पुरस्कार मिला, और उन्होंने प्रेम को अपनी रचना का मूल बनाया।
अर्चना पाठक ने नीरज के गीतों को प्रेम की साधना और सौंदर्य की मिसाल बताया। उन्होंने कहा कि नीरज हिंदी फिल्म संगीत को नया स्वरूप देने वाले गीतऋषि थे।

वरिष्ठ व्याख्याता सच्चिदानंद पांडेय ने मंगल पांडेय की क्रांति को भारत के स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत बताया और कहा कि उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी।

कवियों की प्रस्तुति

  • श्यामबिहारी पांडेय: “हां मैं ही मंगल पांडे हूं” जैसे ओजपूर्ण गीत से श्रोताओं में जोश भरा।

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  • रामलाल विश्वकर्मा: “अग्रज क्रांतिकारी थे, बलिया के रहनेवाले थे” के माध्यम से श्रद्धांजलि दी।

  • अंजू पांडेय: “भारत में रहकर सिर्फ़ भारत की बात कर!” से युवाओं को देशभक्ति का संदेश।

  • शायर मुकुंदलाल साहू: “देश उन्हें भूले नहीं, दे उनको सम्मान” — आजादी के बलिदानों को याद रखने का आग्रह।

  • अर्चना पाठक: “इंसानियत से प्यार करे, आदमी है वह!” — सच्चे इंसान की परिभाषा।

  • जयंत खानवलकर: “बात सदा ऐसी करो, जिसमें कि वज़न हो।”

  • संतोष सरल: “इंसानियत का नामो-निशान ढूंढ़ता हूं।”

  • निर्मल गुप्ता: “कुछ इमली-सी, कुछ चाशनी-सी ज़िंदगी।”

  • विनोद हर्ष: “क्षणभर मिलना भी पीड़ा का कारण होगा।”

अन्य उल्लेखनीय रचनाएं:

  • गीता द्विवेदी: “मेरे आंसुओं का असर ये होगा…”

  • सीमा तिवारी: “मां ने उर-अमृत पिलाकर…”

  • चंद्रभूषण मिश्र: “अपनी वफ़ा और उसकी बेवफाई…”

  • राजेन्द्र राज: “जावा बहुरिया देवा…”

  • अजय श्रीवास्तव: “बरसात वो ना आएगी…”

कार्यक्रम का समापन शायर यादव विकास की प्रेरणास्पद ग़ज़ल से हुआ —
जो हुआ उसको भुलाया जाए, आइए अब हाथ मिलाया जाए।

धन्यवाद ज्ञापन जयंत खानवलकर द्वारा किया गया। इस अवसर पर केके त्रिपाठी, प्रियंका तिवारी, मनीलाल गुप्ता सहित अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।

Ashish Sinha

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