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छत्तीसगढ़ नगर निकाय चुनाव: भाजपा की बड़ी जीत, कांग्रेस की कमजोर पकड़ और तीसरी शक्ति की संभावनाएं

छत्तीसगढ़ नगर निकाय चुनाव: भाजपा की बड़ी जीत, कांग्रेस की कमजोर पकड़ और तीसरी शक्ति की संभावनाएं

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रायपुर। छत्तीसगढ़ के 173 नगर निकायों—10 नगर निगम, 49 नगर पालिका परिषद और 114 नगर पंचायतों—में हुए चुनावों के नतीजे घोषित कर दिए गए हैं। इन चुनावों में कुल 3200 वार्डों पर मतदान हुआ, जिनमें से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1868, कांग्रेस ने 952 और अन्य ने 227 वार्डों में जीत दर्ज की है। इन चुनावों में भाजपा का स्पष्ट प्रभुत्व दिखा, वहीं कांग्रेस के लिए ये नतीजे निराशाजनक रहे।

भाजपा की जीत: सत्ता पक्ष का प्रभाव कायम

नगर निकाय चुनावों में आमतौर पर सत्ता पक्ष को लाभ मिलता है, और इस बार भी यह परंपरा कायम रही। भाजपा ने हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जो मजबूत प्रदर्शन किया था, उसकी झलक इन चुनावों में भी देखने को मिली।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 10 नगर निगमों के सभी महापौर पदों पर भाजपा ने कब्जा किया। नगर पालिका परिषदों के 49 अध्यक्ष पदों में से 35 भाजपा के खाते में गए, जबकि कांग्रेस केवल 8 सीटों पर ही जीत पाई। आम आदमी पार्टी (आप) ने 1 और निर्दलीय प्रत्याशियों ने 5 सीटें जीतीं। नगर पंचायतों में भाजपा का दबदबा बरकरार रहा, जहां कुल 114 नगर पंचायतों में से कांग्रेस को केवल 22 अध्यक्ष पद मिले, जबकि भाजपा ने बहुमत हासिल किया। बसपा और निर्दलीयों ने क्रमशः 1 और 10 सीटें जीतीं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि इन पदों पर जनता द्वारा सीधे मतदान किया गया था, न कि पार्षदों के वोटों से चुनाव हुआ।

कांग्रेस की हार: संगठनात्मक कमजोरी और रणनीतिक चूक

इन चुनावों में कांग्रेस की हार कोई चौंकाने वाली बात नहीं थी। विधानसभा चुनावों में हार के बाद पार्टी ने अपनी कमजोरियों को सुधारने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।

गुटबाजी और कमजोर संगठन: कांग्रेस का आंतरिक संगठन गुटबाजी से ग्रस्त है, जिससे चुनाव प्रचार में एकजुटता की कमी साफ नजर आई। पार्टी के नेताओं के बीच समन्वय की कमी के कारण कांग्रेस प्रभावी रणनीति नहीं बना पाई।

गलत प्रत्याशी चयन: कांग्रेस ने जमीनी नेताओं की बजाय ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए जो चुनाव प्रचार में धनबल झोंकने की क्षमता रखते थे। लेकिन भाजपा के सशक्त प्रचार अभियान और संगठन शक्ति के आगे कांग्रेस के प्रत्याशी टिक नहीं पाए।

भ्रष्टाचार के आरोपों का असर: कांग्रेस के शासनकाल में हुए कथित घोटालों की जांच के चलते कई नेताओं और अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई। इन घोटालों का प्रभाव मतदाताओं पर भी पड़ा, जिससे कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना।

भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का कोई ठोस जवाब नहीं: कांग्रेस ने ‘उदार हिंदुत्व’ की नीति अपनाकर भाजपा की सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रणनीति का मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन यह रणनीति विफल रही। भाजपा हिंदुत्व और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर अपना जनाधार मजबूत करने में सफल रही।

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नीतिगत अस्पष्टता: कांग्रेस का चुनाव प्रचार भाजपा नेताओं पर पलटवार करने तक सीमित रहा। भाजपा भी कांग्रेस को इसी जाल में उलझाना चाहती थी। कांग्रेस की नीतियों पर कोई स्पष्ट प्रचार अभियान नहीं था, जिससे मतदाता उसे गंभीर विकल्प के रूप में नहीं देख पाए।

चुनावी आंकड़ों की समीक्षा

नगर निकाय प्रमुखों के पदों पर कांग्रेस को कुल 31.25% वोट मिले, जबकि भाजपा को 56.04% वोट प्राप्त हुए। वार्ड पार्षद सीटों पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत 33.58% रहा, जबकि भाजपा को 46.62% वोट मिले।

पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 42.23% और भाजपा को 46.27% वोट मिले थे। तुलना करने पर स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का जनाधार और कमजोर हुआ है, जबकि भाजपा ने अपनी स्थिति को और मजबूत कर लिया है।

भाजपा और कांग्रेस के बीच तीसरी शक्ति की संभावना

इन चुनावों में निर्दलीयों और छोटे दलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही। लगभग 12% पार्षद सीटें गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस प्रत्याशियों के खाते में गईं।

आम आदमी पार्टी (आप): छत्तीसगढ़ में आप की मौजूदगी अब तक नगण्य थी, लेकिन इन चुनावों में उसने 1 नगर पालिका अध्यक्ष पद जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यह संकेत है कि पार्टी भविष्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच तीसरे विकल्प के रूप में उभर सकती है।

बहुजन समाज पार्टी (बसपा): बसपा ने 1 नगर पंचायत अध्यक्ष पद जीता, जिससे पता चलता है कि उसका कुछ क्षेत्रों में अब भी प्रभाव बना हुआ है।

वामपंथी दलों का प्रदर्शन: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के 6 पार्षद चुनाव जीते, जिनमें 5 किरंदुल से और 1 राजनांदगांव से हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने बाकीमोंगरा नगर पालिका में 4 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 3 सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही। यह संकेत करता है कि इन क्षेत्रों में वामपंथी पार्टियों का संघर्ष असरदार रहा है।

छत्तीसगढ़ की राजनीति में तीसरी शक्ति की संभावना हमेशा बनी रही है। इन चुनावों के नतीजे दर्शाते हैं कि कांग्रेस-भाजपा के प्रभाव से बाहर की 15-20% जनता अभी भी एक ठोस विकल्प की तलाश में है। यदि कांग्रेस भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की दिशा में पहल करे और वामपंथी दल इसका समर्थन करें, तो प्रदेश में एक नया राजनीतिक समीकरण बन सकता है।

लेकिन इसके लिए कांग्रेस को जमीनी स्तर पर संघर्ष तेज करना होगा और जनता के मुद्दों को गंभीरता से उठाना होगा। साथ ही, उसे हिंदुत्व की राजनीति से किसी भी प्रकार के समझौते से बचना होगा और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को मजबूती से बनाए रखना होगा।

छत्तीसगढ़ के नगर निकाय चुनावों के नतीजों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा की पकड़ प्रदेश की राजनीति पर मजबूत होती जा रही है। वहीं, कांग्रेस अपने संगठनात्मक और रणनीतिक संकट से बाहर नहीं निकल पाई है। हालांकि, छोटे दलों और निर्दलीयों की मजबूत उपस्थिति यह संकेत देती है कि प्रदेश में तीसरी शक्ति की संभावनाएं बरकरार हैं। यदि कांग्रेस भाजपा के खिलाफ एक व्यापक मोर्चा बनाने में सफल होती है, तो यह राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है। लेकिन इसके लिए उसे जमीनी संघर्ष और रणनीतिक स्पष्टता की जरूरत होगी।

Ashish Sinha

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