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5वीं और 8वीं की अंकसूची से जाति का कॉलम हटा: शिक्षक, छात्र और अभिभावक चिंतित

5वीं और 8वीं की अंकसूची से जाति का कॉलम हटा: शिक्षक, छात्र और अभिभावक चिंतित

संवाददाता । सौरभ साहू | सूरजपुर । राज्य सरकार के निर्देशानुसार इस सत्र से 5वीं और 8वीं की केन्द्रीयकृत वार्षिक परीक्षा आयोजित की जा रही है। इस संबंध में स्कूल शिक्षा विभाग और लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। लेकिन नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, छात्रों को दी जाने वाली प्रगति पत्रक (अंकसूची) में जाति का कॉलम नहीं रखा गया है। इससे छात्रों और अभिभावकों को जाति, आय, निवास प्रमाण पत्र बनवाने तथा सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

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जाति का कॉलम हटाने से शिक्षकों और अभिभावकों की चिंता

अंकसूची में जाति के उल्लेख को हटाने का असर स्कूलों में महसूस किया जा रहा है। संयुक्त शिक्षक संघ के रामानुजनगर ब्लॉक अध्यक्ष राधे साहू का कहना है कि विभाग द्वारा जारी अंकसूची को बेहतरीन और आकर्षक रूप से तैयार किया गया है, लेकिन जाति का उल्लेख नहीं होने से छात्रों को प्रमाणपत्र बनवाने में परेशानी होगी। सरकारी योजनाओं के तहत स्कूलों को छात्रों के जाति व निवास प्रमाण पत्र बनवाने की जिम्मेदारी दी जाती है। ऐसे में अंकसूची में जाति न होने से शिक्षकों और पालकों दोनों को असुविधा का सामना करना पड़ेगा।

शालेय शिक्षक संघ सूरजपुर के ब्लॉक अध्यक्ष मुन्ना सोनी ने बताया कि परंपरागत रूप से जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए 5वीं की अंकसूची को आवश्यक दस्तावेज माना जाता है। यदि इसमें जाति का उल्लेख नहीं रहेगा, तो प्रमाण पत्र बनवाने की प्रक्रिया जटिल हो जाएगी। इससे विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों के छात्रों को अधिक कठिनाई हो सकती है, क्योंकि वहाँ अन्य दस्तावेज आसानी से उपलब्ध नहीं होते।

छात्रों और पालकों पर पड़ने वाला प्रभाव

ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के छात्र और अभिभावक इस बदलाव से प्रभावित होंगे। कई सरकारी योजनाएँ जैसे कि छात्रवृत्ति, शिक्षण शुल्क माफी, छात्रावास सुविधा और अन्य लाभ लेने के लिए जाति प्रमाण पत्र आवश्यक होता है। चूंकि 5वीं और 8वीं की अंकसूची जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए एक प्रमाण मानी जाती थी, इसलिए यह बदलाव छात्रों के लिए बाधा बन सकता है।

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वरिष्ठ शिक्षक जयराम प्रसाद ने इस नई अंकसूची को सरल और उपयोगी बताया। उन्होंने कहा कि इसकी संरचना ऐसी है कि ग्रामीण क्षेत्रों के पालक भी अपने बच्चों की प्रगति को आसानी से समझ सकते हैं। हालांकि, उन्होंने भी इस बात पर सहमति जताई कि अंकसूची में जाति का उल्लेख होना चाहिए ताकि दस्तावेज़ी प्रक्रिया सुगम बनी रहे।

जाति कॉलम हटाने के कारण और सरकार का रुख

जाति कॉलम हटाने के पीछे सरकार की मंशा प्रशासनिक सरलीकरण या भेदभाव रहित दस्तावेज़ तैयार करने की हो सकती है। कई राज्यों में जाति-आधारित भेदभाव को कम करने के उद्देश्य से इस तरह के बदलाव किए गए हैं। हालांकि, शिक्षकों और छात्रों का तर्क है कि जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता अब भी बनी हुई है और अंकसूची में इसका उल्लेख नहीं होने से अनावश्यक जटिलता बढ़ेगी।

सरकार इस मुद्दे पर पुनर्विचार कर सकती है यदि इसे व्यापक स्तर पर उठाया जाए। शिक्षक संघ और अभिभावकों की ओर से इस विषय पर मांग बढ़ सकती है कि जाति कॉलम को अंकसूची में फिर से जोड़ा जाए या इसके लिए कोई वैकल्पिक प्रमाण पत्र दिया जाए।

समाधान की संभावनाएँ

1. स्कूल स्तर पर प्रमाणन प्रक्रिया – यदि अंकसूची में जाति का उल्लेख नहीं किया जाता है, तो स्कूल प्रशासन अलग से प्रमाण पत्र जारी कर सकता है, जो जाति प्रमाण पत्र के आवेदन में सहायक होगा।

2. डिजिटल प्रमाण पत्र प्रणाली – सरकार एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू कर सकती है, जहाँ स्कूलों द्वारा प्रमाणित जानकारी उपलब्ध कराई जाए। इससे छात्रों को अलग-अलग दस्तावेज़ जमा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

3. स्थानीय प्रशासन से समर्थन – जिला शिक्षा कार्यालय, तहसील और अन्य सरकारी संस्थाएँ स्कूलों को इस समस्या के समाधान के लिए दिशा-निर्देश दे सकती हैं।

5वीं और 8वीं की अंकसूची से जाति का कॉलम हटाए जाने के निर्णय से छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। जहाँ एक ओर यह एक सामान्य सुधार लगता है, वहीं व्यावहारिक स्तर पर यह सरकारी योजनाओं और प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। इस बदलाव के प्रभाव को देखते हुए, शिक्षक संघ और अभिभावक सरकार से इस पर पुनर्विचार करने या समाधान प्रस्तुत करने की मांग कर सकते हैं।

Ashish Sinha

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