
Vande Mataram Controversy: मुस्लिम आपत्तियाँ क्यों? 150वीं वर्षगांठ पर संसद में आज विशेष बहस
मुस्लिम समुदाय वंदे मातरम गाने से क्यों परहेज करता है? गीत के धार्मिक विवाद, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, हटाए गए छंद, राष्ट्रीय गीत का दर्जा और संसद में आज होने वाली विशेष बहस—पूरी रिपोर्ट पढ़ें।
वंदे मातरम विवाद फिर सुर्खियों में: संसद में आज विशेष बहस, मुस्लिम समुदाय की आपत्तियाँ और 150 साल पुराने गीत का इतिहास

नई दिल्ली। राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संसद में आज विशेष बहस आयोजित की जा रही है। लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी शुरुआत करेंगे, जबकि राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह चर्चा का प्रारंभ करेंगे। करीब 10 घंटे लंबी बहस में सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों अपनी बात रखेंगे।
पीएम मोदी इससे पहले कई कार्यक्रमों में कह चुके हैं कि “कांग्रेस ने वंदे मातरम की आत्मा को तोड़ दिया, इसी विभाजन ने देश के विभाजन के बीज बोए।” अब पूरा देश यह देखने को उत्सुक है कि प्रधानमंत्री संसद में क्या कहते हैं।

मुस्लिम समुदाय वंदे मातरम क्यों नहीं गाता?—धार्मिक तर्क और विद्वानों के बयान
इस्लामी स्कॉलर मौलाना अब्दुल हमीद नोमानी और मुफ्ती ओसामा नदवी का कहना है कि—
- ‘वंदे मातरम’ बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास ‘आनंद मठ’ का अंश है।
- गीत की कई पंक्तियाँ इस्लाम के एकेश्वरवाद के सिद्धांत के विपरीत हैं।
- इस्लाम में मूर्ति-पूजा हराम है और अल्लाह के अलावा किसी के आगे सिर झुकाना वर्जित है।
- गीत में दुर्गा का उल्लेख है, मंदिर का जिक्र है, और मातृभूमि की पूजा करने की बात है—जो इस्लामी आस्था से मेल नहीं खाती।
नोमानी कहते हैं—
“इस्लाम में एक अदृश्य ईश्वर की उपासना होती है। मां या भूमि की पूजा करना भी एकेश्वरवाद से टकराव पैदा करता है।”
मुस्लिम समुदाय के हिस्से में यह धारणा बनी रही है कि गीत का मूल स्वरूप देवी दुर्गा की आराधना है, न कि राष्ट्रभक्ति का। यही कारण है कि कई मुस्लिम न सिर्फ पूरा गीत गाने से परहेज करते हैं बल्कि “वंदे मातरम” शब्द का भी प्रयोग नहीं करते।
गीत के मूल छंद क्यों हटाए गए?—इतिहास की पड़ताल
आज जो ‘वंदे मातरम’ गाया जाता है, वह पूरा गीत नहीं है।
- बंकिमचंद्र ने यह गीत 7 नवंबर 1875 को लिखा।
- इसे 1882 में ‘आनंद मठ’ में शामिल किया गया।
- गीत के शुरुआती पांच छंद बाद में हटा दिए गए, क्योंकि उनमें दुर्गा की प्रत्यक्ष स्तुति थी।
- समिति (जिसमें जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर शामिल थे) ने दो ही छंद राष्ट्रीय गीत के रूप में चुने—क्योंकि ये जमीन, नदियों और वनस्पति की प्रशंसा करते हैं, धार्मिक संदर्भ कम है।
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 के कांग्रेस अधिवेशन में इसे पहली बार गाया था।
1905 के बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन में यह गीत प्रतिरोध का प्रतीक बना।
क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ ‘वंदे मातरम’ को युद्ध घोष के रूप में अपनाया।
वंदे मातरम पर मुस्लिम आपत्तियाँ पहली बार कैसे शुरू हुईं?
1909 में मुस्लिम लीग नेता सैयद अली इमाम ने इसे “काफिरों का गीत” बताया और मुसलमानों से दूरी बनाए रखने की अपील की।
उसके बाद गीत सांप्रदायिक विवाद का हिस्सा बन गया और अंग्रेजों ने इसे राजनीतिक विभाजन को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया।
राष्ट्रीय गीत का दर्जा—but संवैधानिक अनिवार्यता नहीं
24 जनवरी 1950 को देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा—
“‘वंदे मातरम’ को ‘जन गण मन’ के समान सम्मान मिलना चाहिए।”
लेकिन—
- इसे संवैधानिक दर्जा नहीं मिला।
- संविधान के अनुच्छेद 51A में केवल राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ का गान अनिवार्य है।
- वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत की मान्यता मिली, पर इसे गाने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है।
150वें वर्ष पर संसद में बहस क्यों?
गीत की सालगिरह और वर्तमान राजनीतिक माहौल ने इस पुरानी बहस को फिर केंद्र में ला दिया है—
प्रमुख कारण:
- विपक्ष–सत्ता के बीच वैचारिक टकराव
- मुस्लिम समुदाय की पारंपरिक आपत्तियाँ
- पीएम मोदी द्वारा हाल के भाषणों में गीत पर दिए गए बयान
- राष्ट्रीय पहचान, राष्ट्रवाद और धार्मिक आस्था के संदर्भ में नई बहसें
वंदे मातरम: प्रमुख ऐतिहासिक तथ्य (टाइमलाइन)
- 1875: बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने गीत लिखा
- 1882: उपन्यास ‘आनंद मठ’ में प्रकाशित
- 1896: टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन में पहला गायन
- 1905: बंगाल विभाजन विरोध में राष्ट्रीय नारा बना
- 1907: मैडम भीकाजी कामा ने विदेश में वंदे मातरम वाला ध्वज फहराया
- 1950: राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकृति
- 2025: 150 वर्ष पूरे, संसद में विशेष बहस









