
कर्नाटक में आरक्षण पर सियासी संग्राम: कांग्रेस बनाम भाजपा
कर्नाटक में आरक्षण पर सियासी संग्राम: कांग्रेस बनाम भाजपा
कर्नाटक में आरक्षण से जुड़ा मुद्दा एक बार फिर राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा पर झूठ फैलाने का आरोप लगाते हुए यह दावा किया कि भाजपा सरकार और उसके नेता कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार को लेकर गलत सूचना फैला रहे हैं। साथ ही, उन्होंने राज्य में मुस्लिम आरक्षण को लेकर भाजपा के दावों की पोल खोलने की बात कही।
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने हाल ही में अपने बजट में SC, ST और OBC के लिए सरकारी ठेकों में आरक्षण की सीमा ₹1 करोड़ से बढ़ाकर ₹2 करोड़ कर दी। इससे पहले, 2015 में कांग्रेस सरकार ने SC/ST समुदाय को ₹50 लाख तक के सरकारी ठेकों में 24% आरक्षण देने का फैसला किया था। जुलाई 2023 में, इस सीमा को ₹50 लाख से बढ़ाकर ₹1 करोड़ कर दिया गया और जून 2024 में OBC को भी सरकारी ठेकों में आरक्षण देने की घोषणा हुई।
सरकारी ठेकों में वर्तमान आरक्षण की स्थिति इस प्रकार है:
SC/ST को 24% आरक्षण
OBC (Category-I) को 4% आरक्षण (जिसमें 95 पिछड़ी जातियाँ शामिल हैं)
OBC (Category-IIA) को 15% आरक्षण (जिसमें 102 जातियाँ शामिल हैं)
OBC (Category-IIB) को 4% आरक्षण (जिसमें मुस्लिम पिछड़े समुदाय शामिल हैं)
मुस्लिम आरक्षण: धर्म नहीं, पिछड़ेपन का आधार
सुप्रिया श्रीनेत के अनुसार, भाजपा द्वारा यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि कर्नाटक सरकार ने मुस्लिम समुदाय को धर्म के आधार पर आरक्षण दिया है। जबकि वास्तविकता यह है कि पिछड़े वर्गों की श्रेणी सितंबर 1994 में तय की गई थी, जिसमें मुस्लिम समुदाय के पिछड़े वर्गों को सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर IIB श्रेणी में रखा गया था। इसी आधार पर, पिछले 31 वर्षों से शिक्षा और सरकारी नौकरियों में मुस्लिम पिछड़े वर्गों को 4% आरक्षण मिलता रहा है।
गौरतलब है कि 2006, 2008 और 2019 में भाजपा की सरकार रहने के बावजूद इस आरक्षण को समाप्त नहीं किया गया। इतना ही नहीं, पिछले 11 वर्षों से केंद्र की मोदी सरकार ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी।
भाजपा के नेता लगातार कांग्रेस सरकार की आरक्षण नीति पर सवाल उठा रहे हैं और इसे तुष्टिकरण की राजनीति बता रहे हैं। वहीं, कांग्रेस का कहना है कि भाजपा को सामाजिक और आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण से परेशानी है। सुप्रिया श्रीनेत ने भाजपा से यह सवाल भी किया कि क्या उन्हें सरकारी ठेकों में मिल रहे आरक्षण से दिक्कत है, या फिर SC, ST और OBC को आरक्षण दिए जाने से ही समस्या है?
कर्नाटक सरकार का यह फैसला कानूनी रूप से कितना मजबूत है, यह भी एक बड़ा सवाल है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न फैसलों में 50% आरक्षण की सीमा तय की है, ऐसे में क्या यह नया आरक्षण प्रावधान इस सीमा का उल्लंघन करता है? इस पर आगे कानूनी चुनौती की भी संभावना बनी हुई है।
कर्नाटक में आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील बन चुका है। कांग्रेस सरकार इसे सामाजिक न्याय का कदम बता रही है, जबकि भाजपा इसे मुस्लिम तुष्टिकरण के रूप में देख रही है। इस बहस में सच क्या है और राजनीतिक एजेंडा क्या है, यह जनता को तय करना होगा।