
वक्फ संशोधन अधिनियम पर अखिलेश यादव का हमला: ‘हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे’
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम को अलोकतांत्रिक बताते हुए विरोध जताया। अलीगढ़ में जनसभा के दौरान बोले – ‘यह विधेयक अल्पसंख्यकों की आज़ादी पर हमला है।’
वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर गरमाई सियासत: अखिलेश यादव का तीखा विरोध, कहा – ‘कभी स्वीकार नहीं करेंगे’
रिपोर्ट: प्रदेश खबर डिजिटल टीम | दिनांक: 12 अप्रैल 2025 | स्थान: अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर देश की राजनीति में फिर हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दल इस विधेयक को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और धार्मिक संस्थानों के स्वशासन में हस्तक्षेप करार दे रहे हैं। इसी क्रम में समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा,
“हम वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ हैं। जिस तरह से इसे पेश किया गया है, वह पूरी तरह अलोकतांत्रिक है। हम इसे कभी स्वीकार नहीं कर सकते।”
अखिलेश यादव के इस बयान के बाद भाजपा बनाम विपक्ष का एक और मोर्चा खुल गया है, खासकर मुस्लिम बहुल इलाकों में, जहां वक्फ संपत्तियों से जुड़े मसले बेहद संवेदनशील माने जाते हैं।
क्या है वक्फ (संशोधन) अधिनियम?
वक्फ अधिनियम 1995, जो देश भर में मुस्लिम समुदाय की वक्फ संपत्तियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए बनाया गया था, उसमें केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में संशोधन पेश किया गया है। इस संशोधन का मकसद वक्फ बोर्डों की निगरानी व्यवस्था को अधिक मजबूत बनाना और कथित तौर पर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना बताया गया है।
संशोधन के तहत कुछ प्रमुख बदलाव प्रस्तावित हैं:
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केंद्र और राज्य सरकार को विशेष शक्तियां प्रदान करना।
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वक्फ बोर्ड की निर्णय प्रक्रिया पर सरकारी दखल।
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वक्फ संपत्ति के उपयोग, लीज़ और हस्तांतरण से जुड़े नियमों में परिवर्तन।
सरकार का दावा है कि यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह एक धर्म विशेष के धार्मिक और सांस्कृतिक ढांचे में सीधा हस्तक्षेप है।
अखिलेश यादव का विरोध क्यों?
अखिलेश यादव ने अपने बयान में कहा कि
“वक्फ की संपत्तियां गरीब मुसलमानों की भलाई के लिए हैं – मस्जिदें, कब्रिस्तान, मदरसे और सार्वजनिक कल्याण से जुड़ी जगहें। सरकार अब इन पर नियंत्रण करना चाहती है, जिससे यह संस्थाएं अपनी स्वतंत्रता खो देंगी।”
उन्होंने आगे कहा कि यह केवल मुस्लिम समुदाय की बात नहीं है, बल्कि यह संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर भी हमला है।
सपा प्रमुख ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार धीरे-धीरे संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सीमित करने की दिशा में काम कर रही है।
विधेयक के कानूनी पहलू और आलोचना
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन यदि लागू हो जाते हैं, तो धार्मिक स्वतंत्रता और प्रॉपर्टी राइट्स पर प्रभाव पड़ सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ज़फर क़ुरैशी के अनुसार –
“यदि सरकार किसी धर्म-विशेष की संपत्ति प्रबंधन संस्था में सीधा हस्तक्षेप करती है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन माना जा सकता है, जो धार्मिक संस्थाओं को अपने मामलों का संचालन करने की स्वतंत्रता देता है।”
राजनीतिक प्रतिक्रिया और सियासी मोर्चाबंदी
अखिलेश यादव के बयान के बाद अन्य विपक्षी दलों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आने लगी हैं। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पहले ही इस विधेयक को “मुस्लिम विरोधी” बताया था।
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कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने कहा –
“यह विधेयक धार्मिक संस्थाओं को सरकारी नियंत्रण में लाने की साजिश है।”
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AIMIM ने मांग की है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार पूरी तरह समुदाय आधारित संस्थाओं को ही रहना चाहिए।
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TMC सांसद सुष्मिता देव ने भी इस मुद्दे को संसद में उठाने की बात कही है।
उत्तर प्रदेश की राजनीतिक रणनीति में बदलाव
अखिलेश यादव के इस मुद्दे पर मुखर रुख को उत्तर प्रदेश की आगामी चुनावी राजनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सपा की कोशिश मुस्लिम वोट बैंक को फिर से अपने पक्ष में करने की है, जो 2022 के चुनावों में थोड़ा खिसकता नजर आया था।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. डी.के. त्रिपाठी के अनुसार –
“अखिलेश यादव का यह बयान चुनावी रणनीति का हिस्सा है। वह भाजपा की ‘एक राष्ट्र – एक कानून’ की सोच के बरअक्स धार्मिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाकर अल्पसंख्यकों का भरोसा जीतना चाहते हैं।”
अलीगढ़ से संदेश – ग्राउंड रिपोर्ट
अलीगढ़ जैसे शहर, जो मुस्लिम आबादी के घनत्व और धार्मिक संस्थानों की प्रचुरता के लिए जाना जाता है, वहां इस अधिनियम को लेकर गहरी चिंता देखी जा रही है।
स्थानीय वक्फ बोर्ड से जुड़े कार्यकर्ता अनीस सैफी ने कहा –
“हमारी मस्जिदों, मदरसों और कब्रिस्तानों की देखरेख हमें ही करनी चाहिए। सरकार को इसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।”
वहीं कुछ प्रगतिशील मुस्लिम युवाओं ने पारदर्शिता की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि अगर बोर्डों में भ्रष्टाचार है, तो उसका हल बोर्ड की संरचना सुधारकर निकाला जाना चाहिए – न कि सरकारी नियंत्रण से।
वोट बैंक और असर
उत्तर प्रदेश में लगभग 20% मुस्लिम आबादी है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चुनौती देने के लिए सपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का एक साझा प्रयास देखा गया था। अब 2025 में संभावित उपचुनावों और निकाय चुनावों में यह मुद्दा अहम बन सकता है।
विशेषकर जब राम मंदिर, यूनिफॉर्म सिविल कोड और मदरसा शिक्षा जैसे मुद्दे पहले ही चर्चा में हैं, वक्फ संशोधन विधेयक इन सब में और एक नई परत जोड़ता है।
निष्कर्ष
वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर शुरू हुआ विरोध केवल एक धार्मिक या कानूनी मुद्दा नहीं रह गया है – यह अब देश की राजनीति, अल्पसंख्यक अधिकारों, और संविधान की व्याख्या से जुड़ा एक व्यापक बहस का विषय बन गया है। अखिलेश यादव जैसे प्रमुख नेता जब इसे ‘अस्वीकार्य’ बताते हैं, तो यह साफ संकेत है कि यह मुद्दा आने वाले समय में और गरमाएगा।










