
डिप्टी CMO की रहस्यमयी मौत: अकेलापन, दबाव या साजिश — क्या है असली वजह?
बहराइच में डिप्टी CMO डॉ. राकेश प्रसाद की संदिग्ध मौत ने पूरे जिले को हिला दिया। क्या ये आत्महत्या थी या हत्या? पढ़ें पूरी जांच रिपोर्ट।
डिप्टी CMO की मौत रहस्य में बदल गई: सिस्टम की थकान, दबाव या किसी की साजिश?
बहराइच (उत्तर प्रदेश)। बहराइच जिले के शांत माने जाने वाले कोतवाली देहात क्षेत्र में उस समय सनसनी फैल गई जब डिप्टी मुख्य चिकित्साधिकारी (Deputy CMO) डॉ. राकेश प्रसाद का शव उनके किराए के मकान से संदिग्ध परिस्थितियों में बरामद हुआ।
ड्राइवर ने जब रोज की तरह उनके घर खाना पहुँचाया, तो भीतर से कोई जवाब नहीं मिला। दरवाजा बंद था, और अंदर का सन्नाटा मानो किसी अनहोनी की गवाही दे रहा था।
पुलिस ने जब दरवाजा तोड़ा, तो फर्श पर पड़े डॉक्टर का शव देख सभी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
घटना का सिलसिला: एक सामान्य दिन, जो अंत में असामान्य हो गया
जानकारी के मुताबिक, डॉ. राकेश प्रसाद बहराइच जनपद में डिप्टी सीएमओ के रूप में पदस्थ थे। वे सरकारी सेवा में लंबे समय से कार्यरत थे और पिछले कुछ महीनों से अकेले रह रहे थे।
मंगलवार की शाम उनका ड्राइवर खाना लेकर उनके आवास पहुंचा। दरवाजा खटखटाने पर कोई जवाब नहीं मिला।
काफी देर बाद जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो ड्राइवर ने आस-पड़ोस के लोगों को बुलाया और फिर पुलिस को सूचना दी।
थोड़ी देर में कोतवाली देहात पुलिस मौके पर पहुंची। दरवाजा तोड़ा गया तो डॉक्टर का शव फर्श पर पड़ा मिला। कमरे में कोई बड़ा संघर्ष या खूनखराबा नहीं था। आसपास दवाइयाँ और कुछ कागजात बिखरे पड़े थे।
पुलिस जांच का पहला चरण: आत्महत्या या हत्या?
पुलिस ने मौके पर पहुंचकर शव का पंचनामा किया और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
एसपी बहराइच ने बताया कि अभी तक प्राथमिक जांच में कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं मिला है। कमरे में ताला अंदर से बंद था, जिससे प्रथम दृष्टया आत्महत्या की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन हत्या की आशंका भी खारिज नहीं की गई है।
फॉरेंसिक टीम को मौके पर बुलाया गया है, और पुलिस डिजिटल व फिजिकल एविडेंस जुटा रही है —
जैसे मोबाइल कॉल रिकॉर्ड, सीसीटीवी फुटेज, और आसपास के लोगों के बयान।
एक अकेला डॉक्टर, और प्रशासनिक दबावों का पहाड़
डॉ. राकेश प्रसाद की मौत को सिर्फ “संदिग्ध” कह देना शायद इस कहानी की गहराई को कम कर देता है।
प्रदेश के अधिकांश स्वास्थ्य अधिकारियों की तरह, वे भी अत्यधिक जिम्मेदारियों और प्रशासनिक दबावों से गुजर रहे थे।
डिप्टी सीएमओ का दायित्व सिर्फ स्वास्थ्य कार्यक्रमों की मॉनिटरिंग नहीं, बल्कि जिले के हर ब्लॉक की चिकित्सा व्यवस्था को संभालना भी होता है —
टीकाकरण, एनसीडी सर्वे, मातृ-शिशु स्वास्थ्य, रूटीन हेल्थ कैम्प, मेडिकल स्टाफ की उपस्थिति रिपोर्ट, ऑडिट… और ऊपर से राजनीतिक दबाव।
कई सहकर्मियों का कहना है कि डॉ. प्रसाद हाल के दिनों में मानसिक रूप से थके हुए दिखाई दे रहे थे।
“वे शांत स्वभाव के थे, लेकिन अक्सर कहते थे कि सिस्टम में ईमानदार रहना मुश्किल हो गया है,” एक सहकर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।
पारिवारिक स्थिति और अकेलेपन की दास्तान
मृतक डॉक्टर के परिवार के सदस्य लखनऊ में रहते हैं।
सूत्रों के मुताबिक, वे पिछले कई महीनों से अकेले रह रहे थे और शायद काम के दबाव के चलते परिवार को अपने पास नहीं बुला पाए।
अकेलापन, सरकारी नौकरी का तनाव, और सीमित सामाजिक संपर्क — ये तीनों बातें अक्सर किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती हैं।
पुलिस अब यह भी जांच कर रही है कि क्या डॉक्टर ने हाल के दिनों में किसी से विवाद या तनाव की बात की थी।
सिस्टम पर सवाल: डॉक्टरों का मानसिक स्वास्थ्य कौन देखेगा?
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के “स्वास्थ्यकर्मी” खुद किस मानसिक स्थिति से गुजर रहे हैं, यह शायद ही कोई पूछता है।
नेशनल मेडिकल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट बताती है कि सरकारी डॉक्टरों में तनाव, अवसाद और पेशेगत थकान तेजी से बढ़ रही है।
कई डॉक्टर 12-14 घंटे की ड्यूटी करते हैं, बिना पर्याप्त स्टाफ के, और उन पर राजनीतिक व प्रशासनिक दबाव अलग से होता है।
डॉ. प्रसाद की मौत कहीं यह संकेत तो नहीं कि हमारा सिस्टम अपने ही सिपाहियों को तोड़ रहा है?
पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर निगाहें टिकीं
फिलहाल पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और रिपोर्ट का इंतजार है।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, रिपोर्ट से यह साफ होगा कि मौत प्राकृतिक है, आत्महत्या है या किसी बाहरी हस्तक्षेप से हुई है।
यदि यह आत्महत्या है, तो कारण तलाशना उतना ही जरूरी होगा —
क्या यह किसी दबाव की वजह से था, किसी धमकी की वजह से, या मानसिक स्वास्थ्य की गिरावट की वजह से?
और अगर यह हत्या निकली — तो फिर सवाल उठेगा कि कौन और क्यों?
जिले में सनसनी, विभाग में शोक की लहर
इस घटना के बाद पूरा स्वास्थ्य विभाग सदमे में है।
मुख्य चिकित्साधिकारी कार्यालय से लेकर जिला अस्पताल तक सन्नाटा पसरा है।
कई डॉक्टरों ने सोशल मीडिया पर अपने सहकर्मी की मौत पर सवाल उठाए हैं —
“कब तक डॉक्टर यूं ही सिस्टम की थकान में मरते रहेंगे?”
स्थानीय लोगों ने बताया कि डॉ. प्रसाद ईमानदार और व्यवहार कुशल अधिकारी थे।
वे गरीब मरीजों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते थे, और कई बार रात में भी कॉल रिसीव कर लेते थे।
जांच में नए मोड़ की संभावना
पुलिस सूत्रों का कहना है कि डॉक्टर के मोबाइल फोन और लैपटॉप से महत्वपूर्ण डेटा निकाला जा रहा है।
कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) में कुछ नंबर संदिग्ध बताए जा रहे हैं।
इनसे पूछताछ की तैयारी चल रही है।
इसके अलावा, डॉक्टर के बैंक अकाउंट और फंड ट्रांजेक्शन की भी जांच की जाएगी ताकि पता चल सके कि किसी वित्तीय दबाव या विवाद का कोई एंगल तो नहीं था।
यह मामला केवल एक डॉक्टर की मौत नहीं, बल्कि सिस्टम के भीतर की निस्तब्धता का चीखता सबूत है।
सरकारी अधिकारी, खासकर स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत अधिकारी, कई बार जनता की सेवा करते-करते खुद को भूल जाते हैं।
उनकी जिंदगी ड्यूटी, रिपोर्ट, निरीक्षण, और आदेशों के बीच गुम हो जाती है।
ऐसे में जब कोई घटना होती है, तो हम उसे केवल “संदिग्ध मौत” कहकर फाइल बंद कर देते हैं,
लेकिन यह घटना प्रशासन और समाज दोनों के लिए आईना है —
कि क्या हम अपने स्वास्थ्य अधिकारियों को मानसिक सुरक्षा दे पा रहे हैं?
पुलिस ने कहा है कि मामले में किसी भी संभावना को नकारा नहीं जाएगा।
फॉरेंसिक रिपोर्ट, मोबाइल डेटा, और परिवार के बयान मिलने के बाद आगे की दिशा तय होगी।
फिलहाल डॉ. प्रसाद की मौत को लेकर जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग दोनों स्तर पर जांच शुरू कर दी गई है।
डॉ. राकेश प्रसाद की मौत ने कई सवाल छोड़ दिए हैं —
क्या यह आत्महत्या थी? अगर हां, तो किन कारणों ने उन्हें ऐसा कदम उठाने पर मजबूर किया?
या फिर यह एक सुनियोजित हत्या है, जिसे आत्महत्या का रूप दिया गया?
इन सवालों का जवाब तो पोस्टमार्टम और पुलिस जांच देगी,
लेकिन इतना जरूर है कि डॉ. प्रसाद की मौत ने सिस्टम के भीतर की खामोश पीड़ा को उजागर कर दिया है।
कभी किसी सरकारी दफ्तर में किसी डॉक्टर को देखकर याद रखिए —
वह सिर्फ मरीजों का इलाज नहीं करता,
कभी-कभी वह खुद अपने दर्द का भी इलाज ढूंढता रहता है।








