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Karwa Chauth 2025: नई सोच और पुरानी परंपरा का संगम, आधुनिक महिलाओं ने दिया नया अर्थ

करवाचौथ 2025 में आधुनिकता और परंपरा का संगम — जानिए कैसे महिलाएं बदलते दौर में निभा रही हैं यह व्रत।

Karwa Chauth 2025: बदलते समय में भी कायम है प्रेम और आस्था का यह चांदनी व्रत, नई पीढ़ी ने दी आधुनिकता को पारंपरिक रंग

रायपुर, प्रदेश खबर। करवाचौथ… एक ऐसा पर्व जो सिर्फ उपवास या पूजा नहीं, बल्कि पति-पत्नी के रिश्ते में समर्पण, प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। समय बदल गया, जीवनशैली बदली, सोच आधुनिक हुई — लेकिन करवाचौथ का भाव आज भी वैसा ही गहरा है।
10 अक्टूबर 2025 को जब महिलाएं चांद की ओर छलकती आंखों से देखेंगी, तो वो सिर्फ आस्था नहीं बल्कि आधुनिक नारी के संतुलित जीवन की झलक भी होगी।

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परंपरा और मॉडर्न लाइफ का संगम

जहां पहले करवाचौथ का अर्थ सिर्फ सोलह शृंगार और निर्जला उपवास था, वहीं आज यह पर्व स्वास्थ्य, करियर और आत्म-संतुलन के साथ मनाया जा रहा है।
रायपुर की युवा प्रोफेशनल्स और कॉलेज छात्राओं के बीच यह त्योहार अब सेल्फ-केयर और पॉजिटिव एनर्जी डे के रूप में भी लोकप्रिय हो रहा है।
सोशल मीडिया पर #ModernKarwaChauth और #CoupleFasting जैसे ट्रेंड्स के जरिए अब पुरुष भी इस उपवास में बराबरी से भाग ले रहे हैं।


चांद से जुड़ी भावनाएं — अब साझेदारी की कहानी

करवाचौथ अब एकतरफा व्रत नहीं रहा। कई युवा जोड़े इसे “म्युचुअल फास्ट” के रूप में मनाते हैं — दोनों एक-दूसरे के लिए उपवास रखते हैं।
रायपुर की आयुषी अग्रवाल कहती हैं —

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“यह सिर्फ पति की लंबी उम्र का पर्व नहीं, बल्कि रिश्ते में समानता और प्रेम जताने का दिन है। मैं और मेरे पति दोनों आज व्रत रखते हैं — यही है असली साथ।”


सजने-संवरने से आगे है इसका अर्थ

सजधज, सोलह शृंगार और पारंपरिक परिधान आज भी आकर्षण का केंद्र हैं, लेकिन इसके साथ ही महिलाएं अब सस्टेनेबल फैशन, ऑर्गेनिक मेकअप और इको-फ्रेंडली पूजा सामग्री का उपयोग कर रही हैं।
इस बार रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग की कई महिलाओं ने ‘Green Karwa Chauth’ मनाने की पहल की है — जिसमें प्लास्टिक रहित साज-सज्जा और मिट्टी के दीयों से पूजा की जाएगी।


आस्था में बदलाव नहीं, स्वरूप में नयापन

समाज बदल रहा है, लेकिन करवाचौथ की आस्था नहीं।
जहां पहले यह व्रत सिर्फ गृहिणियों तक सीमित था, अब ऑफिस जाने वाली, डॉक्टर, पत्रकार, पुलिस और शिक्षिका महिलाएं भी पूरी आस्था के साथ व्रत रखती हैं।
चांद की पहली झलक आज भी दिल की धड़कनें बढ़ा देती है — फर्क बस इतना है कि अब यह परंपरा प्यार और समानता दोनों का प्रतीक बन चुकी है।

Ashish Sinha

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