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दहेज हत्या पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: विवाह को बताया पवित्र, दहेज को दुर्भाग्यपूर्ण सामाजिक बुराई

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या को समाज के खिलाफ गंभीर अपराध बताते हुए कहा कि दहेज प्रथा विवाह जैसी पवित्र संस्था को एक व्यावसायिक लेन-देन में बदल रही है।

दहेज हत्या पर सुप्रीम कोर्ट सख्त: कहा– यह सिर्फ महिला के खिलाफ नहीं, समाज के खिलाफ अपराध

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या को लेकर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह अपराध मानवीय गरिमा, समानता और सम्मानजनक जीवन के मूल अधिकार का सीधा उल्लंघन है। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि दहेज प्रथा विवाह जैसी पवित्र संस्था को खोखला कर रही है और महिलाओं की सुरक्षा एवं सम्मान पर गंभीर प्रहार कर रही है।

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यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की गई जिसमें एक आरोपी पर शादी के मात्र चार महीने बाद अपनी पत्नी को दहेज की मांग को लेकर ज़हर देने का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा आरोपी को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा कि यह आदेश “प्रतिकूल और अव्यावहारिक” था।

दहेज प्रथा: विवाह को बना दिया कारोबारी लेन-देन

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा:

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  • “दहेज जैसी सामाजिक बुराई ने विवाह जैसे पवित्र संबंध को एक व्यावसायिक सौदे में बदल दिया है।”
  • “दहेज को अक्सर स्वैच्छिक उपहार बताकर छिपाने की कोशिश की जाती है, जबकि यह समाज में प्रतिष्ठा दिखाने और भौतिक लालसा पूरी करने का साधन बन चुका है।”

दहेज हत्या—सिर्फ एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, समाज के खिलाफ अपराध

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दहेज हत्या महिलाओं के संगठित उत्पीड़न, पराधीनता और सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि ऐसे जघन्य अपराधों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

हाई कोर्ट की चूक पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने तीन महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की:

  1. अपराध की गंभीर प्रकृति
  2. पीड़िता द्वारा दिए गए मृत्यु-पूर्व सुसंगत बयान
  3. दहेज हत्या से जुड़ी वैधानिक धारणाएं

अदालत ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में न्यायपालिका की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।

दहेज प्रथा पर कड़ा रुख बेहद जरूरी

कोर्ट ने कहा कि:

  • विवाह “आपसी विश्वास, साहचर्य और सम्मान” पर आधारित होना चाहिए।
  • दहेज प्रथा समाज के नैतिक ढांचे और परिवार की गरिमा को नुकसान पहुंचा रही है।
  • दहेज हत्या इस कुप्रथा की “सबसे घृणित अभिव्यक्ति” है।

 

Ashish Sinha

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