
Chitragupta Jayanti 2021: सभी के अच्छे-बुरे का लेखा जोखा का हिसाब और यमराज के खास सहयोगी हैं भगवान चित्रगुप्त, ऐसे हुई थी उनकी उत्पत्ति
Chitragupta Jayanti 2021: सभी के अच्छे-बुरे का लेखा जोखा का हिसाब और यमराज के खास सहयोगी हैं भगवान चित्रगुप्त, ऐसे हुई थी उनकी उत्पत्ति
चित्रगुप्त भगवान को यमराज का सहयोगी माना जाता है. वे सभी प्राणियों के अच्छे-बुरे का लेखा जोखा रखते हैं. दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के साथ कायस्थ समाज के बंधुओं के द्वारा चित्रगुप्त जयंती के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इसी दिन उनकी उत्पत्ति हुई थी.
चित्रगुप्त महाराज कायस्थ लोगों के इष्ट देव माने जाते हैं, इसलिए उनकी जयंती को खासतौर पर कायस्थ समाज में ज्यादा प्रचलित है. भुजाओं में कलम, दवात, करवाल और किताब धारण करने वाले चित्रगुप्त जी को यमराज का मुंशी भी कहा जाता है. जानिए इस मौके पर भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति की कथा.
ये है कथा
सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला, जिस पर एक पुरूष आसीन थे. उनको ब्रह्मांड की रचना का दायित्व सौंपा गया. ब्रह्मांड की रचना और सृष्टि के निर्माण की वजह से उन्हें ब्रह्मा कहा गया. भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण करते समय स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, देव-असुर, गंधर्व और अप्साराएं बनाईं.
इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ. यमराज को पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को कर्मों के अनुसार सजा देने का कार्य सौंपा गया था. यमराज ने इसके लिए ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की. इसके बाद ब्रह्मा जी ने एक हजार वर्ष तक तपस्या की. इसके बाद एक पुरुष की उत्पत्ति हुई जिन्हें चित्रगुप्त कहा गया. ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ कहा गया.
पूजन से मिलती नर्क के कष्ट से मुक्ति
चित्रगुप्त जयंती के अलावा भगवान चित्रगुप्त की पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को की जाती है. पूजा के लिए एक चौकी पर भगवान चित्रगुप्त की तस्वीर को रखें. इसके बाद श्रद्धापूर्वक उन्हें अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, पुष्प, दक्षिणा, धूप-दीप और मिष्ठान अर्पित करें. इसके बाद उनसे जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए क्षमा मांगे. मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं. इससे व्यक्ति को मृत्यु के बाद नर्क के कष्ट नहीं भोगने पड़ते.
चित्र गुप्त उत्त्पत्ति एवं कथा पूजा :
शुभ समय- 13:17-15:15 बजे, शेष समय उचित नहीं है।
ओम श्री चित्रगुप्ताय नमः
कायस्थ वर्ग में, अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा और कलम-दवात पूजतने की परम्परा है। श्री चित्रगुप्तजी की उत्पत्ति ब्रह्माजी से हुई , सृष्टि सृजना के पश्चात पितामह ब्रह्मा ने धर्मराज को शुभाशुभ कर्मों का फल देने हेतु अधिकृत किया। धर्मराज की प्रार्थना पर विद्वान न्याय निष्ठ सहायक जो मनुष्य के कर्म लेख में दक्ष हो।
ब्रह्माजी ने ‘हाथ में कलम-दवात लिए विलक्षण तेजस्वी पुरुष की उत्पत्ति की। इस तेजस्वी पुरुष को बताया कि,तुम विचित्र रूप में मेरे चित्त में गुप्त रहे अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त है। “तुम मेरी काया से तुम्हारी उत्पत्ति हुई , इसलिए तुम कायस्थ हो।
चित्रगुप्तयम के सहायक एवं चूँकि इन का विवाह यमी से हुआ, वे यम के बहनोई भी हैं। यम और यमी सूर्य देव की जुड़वा संतान हैं। यमी ही बाद में यमुना के स्वरुप में पृथ्वी पर आ गईं। कायस्थ शब्द को कार्यस्थ का अपभ्रंश मान सकते हैं।
कार्यस्थ का शब्दश:
अर्थ : जिस पर सारा कार्य स्थिर (निर्भर) हो।’ श्री चित्रगुप्तजी गुप्त रहकर सृष्टि के क्रियाकर्म (पाप-पुण्य) का लेखा-जोखा रखते हैं व धर्मराज को न्याय करने में सहयोग देते हैं।
पद्मपुराण – परमपिता ब्रह्माजी की आज्ञा से श्री चित्रगुप्तजी तपस्या हेतु उज्जयिनी पधारे थे। श्रीचित्रगुप्त जी ने ज्वालामुखी देवी, चण्डी देवी और महिषासुर मर्दिनी की पूजा और और साधना की थी।। – श्री चित्रगुप्तजी का अत्यंत प्राचीन मंदिर भी है।
चित्र गुप्त कथा- (साभार)
सौदास नाम का एक राजा था। वह एक अन्यायी और अत्याचारी राजा था और उसके नाम पर कोई अच्छा काम नहीं था। एक दिन जब वह अपने राज्य में भटक रहा था तो उसका सामना एक ऐसे ब्राह्मण से हुआ जो पूजा कर रहा था। उनकी जिज्ञासा जगी और उन्होंने पूछा कि वह किसकी पूजा कर रहे हैं।
ब्राह्मण ने उत्तर दिया कि आज कार्तिक शुक्ल पक्ष का दूसरा दिन है और इसलिए मैं यमराज (मृत्यु और धर्म के देवता) और चित्रगुप्त (उनके मुनीम) की पूजा कर रहा हूं, उनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है और आपके बुरे पापों को कम करती है। यह सुनकर सौदास ने भी अनुष्ठानों का पालन किया और पूजा की।
बाद में जब उनकी मृत्यु हुई तो उन्हें यमराज के पास ले जाया गया और उनके कर्मों की चित्रगुप्त ने जांच की।उन्होंने यमराज को सूचित किया कि यद्यपि राजा पापी है लेकिन उसने पूरी श्रद्धा और अनुष्ठान के साथ यम का पूजन किया है और इसलिए उसे नरक नहीं भेजा जा सकता।इस प्रकार राजा केवल एक दिन के लिए यह पूजा करने से, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो गया।