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कुष्ठ बस्ती को गोद लिया औऱ संवार रहीं उनकी ज़िन्दगी

कुष्ठ बस्ती को गोद लिया औऱ संवार रहीं उनकी ज़िन्दगी

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दो साल से अरुणिमा कुष्ठ रोगियों की परवरिश कर रहीं, हर दुःख दर्द में उनके साथ

बिलासपुर,छत्तीसगढ़। कुष्ठ रोग की बात दिमाग में आते ही लोगों के मन में एक घृणा आती है। गिने-चुने लोगों की बात छोड़ दें तो ज्यादातर रोगी से दूर भागते नजर आते हैं, लेकिन बिलासपुर की समाज सेवी महिला अरुणिमा मिश्रा ने रेलवे स्थित कुष्ठ रोगियों की बस्ती को ही गोद ले लिया औऱ उनकी परवरिश में सबकुछ दांव पर लगा दिया है। दो बार कोविड का दंश झेलने के बावजूद अरुणिमा समाज की बगैर परवाह किये कुष्ठ रोगियों की सेवा में सक्रिय हैं। उन्हें इस बात का कोई मलाल नहीं कि समाज क्या सोचेगा। बीस लोगों की कुष्ठ बस्ती को गोद लेकर अरुणिमा ने उनके रहन सहन से लेकर खाने पीने औऱ हैल्थ चेकअप व दवाइयों का बीड़ा अकेले अपने सर पर उठा रखा है। अरुणिमा इस कुष्ठ बस्ती के बुजुर्ग महिला पुरुषों के लिए देवदूत की भूमिका निभा रही हैं। अरुणिमा ने दो साल पहले आश्रयनिष्ठा वेलफेयर सोसायटी नामक संस्था की स्थापना कर समाज सेवा की शरूआत की। वे घुमन्तु बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के साथ बुजुर्ग औऱ विधवा महिलाओं के उत्थान के लिए कार्य करती हैं। रेलवे स्थित फुटपाथ पर झुग्गी झोपड़ियों में गुजर बसर कर रहे कुष्ठ रोगियों के साथ अपना जन्मदिन मनाने के दौरान उन्होंने बुजुर्गों की हालत देखी तो उनका दिल पसीज गया। क्षेत्र के जिम्मेदार लोगों ने जब उनके लिए कोई सकारात्मक पहल नहीं की तो उन्होंने पूरी बस्ती गोद ले ली। अब वे नियमित रूप से बस्ती में जाकर बुजुर्गों की परवरिश कर रही हैं। उनके भोजन रहने से लेकर स्वास्थ्य की देखभाल वे स्वयं कर रही हैं। बस्ती के बुजुर्गों को लगवाई वैक्सीन

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हैल्थ चेकअप के दौरान पता चला कि कुष्ठ बस्ती के 15 लोगों का कोविड वेक्सिनेशन नहीं हुआ है तो अरुणिमा ने हेमू नगर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से टीम बुलवाकर उन्हें वैक्सीन लगवाई। जिला अस्पताल की डॉक्टर गायत्री बांधी ने व्यक्तिगत रूचि दिखाते हुए शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की टीम भेजकर बुजुर्गों का वेक्सिनेशन कराया।

स्थितियां बदलीं पर अब भी जागरुकता की कमी

अरुणिमा मानती हैं कि आज की स्थिति में पहले से थोड़ा बदलाव जरूर आया है पर जागरूकता की अभी भी काफी कमी है। मैं यह सब इसलिए करती हूं, क्योंकि मैंने उनके जीवन को बारीकी से देखा है। मैं जानती हूं कि कुष्ठ रोग होना शारीरिक और मानसिक रूप से कितना तकलीफ भरा होता है।

Ashish Sinha

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