
दमोह में फर्जी डॉक्टर गिरफ्तार: सात मरीजों की मौत का आरोपी प्रयागराज से पकड़ा गया
दमोह के मिशन अस्पताल में फर्जी हार्ट स्पेशलिस्ट नरेंद्र विक्रमादित्य यादव को प्रयागराज से गिरफ्तार किया गया। आरोपी पर फर्जी डिग्री से इलाज करने और 7 मरीजों की मौत का आरोप है।
दमोह में फर्जी हार्ट स्पेशलिस्ट की गिरफ्तारी: सात मरीजों की मौत का आरोप, प्रयागराज से पकड़ा गया नरेंद्र विक्रमादित्य
दमोह, मध्य प्रदेश।मध्य प्रदेश के दमोह जिले से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मिशन अस्पताल, दमोह में वर्षों से खुद को हृदय रोग विशेषज्ञ बताकर इलाज कर रहा व्यक्ति असल में फर्जी डॉक्टर निकला। आरोपी की पहचान नरेंद्र विक्रमादित्य यादव उर्फ एन. जॉन केम के रूप में हुई है, जिसे उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से गिरफ्तार किया गया है।
इस मामले की गंभीरता इस बात से समझी जा सकती है कि आरोपी पर फर्जी डिग्री के आधार पर इलाज करने और कम से कम 7 मरीजों की मौत का कारण बनने का आरोप है।
फर्जी डिग्री, झूठी पहचान और जानलेवा इलाज
दमोह के मिशन अस्पताल में मरीजों का इलाज कर रहे नरेंद्र विक्रमादित्य ने न सिर्फ लोगों को अपनी झूठी पहचान से गुमराह किया, बल्कि अपने आप को हृदय रोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) बताकर गहन चिकित्सा प्रक्रियाएं भी कीं। यह सब एक फर्जी मेडिकल डिग्री के आधार पर किया गया, जिसकी पुष्टि जांच एजेंसियों ने की है।
पुलिस के अनुसार, आरोपी ने एन. जॉन केम नाम से पहचान बनाकर चिकित्सा सेवाएं दीं। उसने कई मरीजों की एंजियोग्राफी, ईसीजी और इमरजेंसी हार्ट ट्रीटमेंट जैसी गंभीर प्रक्रियाएं कीं, जिनमें से सात मरीजों की मौत हो चुकी है।
कैसे हुआ खुलासा? एक पीड़ित परिवार की सतर्कता से टूटा पर्दाफाश
सूत्रों के मुताबिक, इस फर्जीवाड़े का भांडा तब फूटा जब एक मरीज की मृत्यु के बाद उसका परिवार आरोपी की डिग्री और मेडिकल रजिस्ट्रेशन की जानकारी खंगालने लगा। जांच में पाया गया कि नरेंद्र विक्रमादित्य न तो किसी मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज से पढ़ा है, न ही उसके पास भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) या नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) की वैध रजिस्ट्रेशन है।
परिवार ने तुरंत पुलिस और प्रशासन को सूचना दी, जिसके बाद जांच शुरू हुई और आखिरकार उसे प्रयागराज से गिरफ्तार किया गया।
दमोह पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त कार्रवाई
दमोह पुलिस अधीक्षक ने बताया कि यह मामला अत्यंत गंभीर है और आरोपी के खिलाफ धारा 420 (धोखाधड़ी), 304 (गैर इरादतन हत्या), 468 (दस्तावेज़ों की जालसाजी), 471 (जाली दस्तावेज़ों का उपयोग) सहित कई धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।
दमोह के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) ने कहा:
“इस घटना से हम सभी स्तब्ध हैं। अस्पताल प्रबंधन से भी जवाब तलब किया गया है कि कैसे एक फर्जी व्यक्ति इतने वर्षों तक मरीजों का इलाज करता रहा।”
प्रशासनिक चूक या मिलीभगत?
यह सवाल अब सामने आ रहा है कि एक फर्जी डॉक्टर कैसे सालों तक एक प्रतिष्ठित अस्पताल में काम करता रहा? क्या यह केवल प्रशासनिक चूक थी या फिर इसके पीछे किसी स्तर पर मिलीभगत और लापरवाही भी थी?
स्वास्थ्य विभाग ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। साथ ही मिशन अस्पताल के रजिस्ट्रेशन और अन्य चिकित्सकों की भी पड़ताल की जा रही है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस मामले ने न केवल चिकित्सा क्षेत्र को हिला दिया है, बल्कि आम जनता में भी गहरा आक्रोश देखने को मिल रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने मांग की है कि आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों, इसके लिए अस्पतालों के रजिस्ट्रेशन और डॉक्टरों की वेरिफिकेशन प्रक्रिया को और कड़ा किया जाए।
जनता को अलर्ट रहने की ज़रूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि आम लोगों को इलाज के लिए जाते समय यह देखना चाहिए कि डॉक्टर के पास वैध डिग्री, रजिस्ट्रेशन नंबर और प्रामाणिकता है या नहीं। आजकल NMC और MCI की वेबसाइट पर रजिस्टर्ड डॉक्टरों की जानकारी उपलब्ध है।
चिकित्सा व्यवस्था को और सख्त निगरानी की ज़रूरत
दमोह में फर्जी डॉक्टर की गिरफ्तारी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि स्वास्थ्य संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही अब केवल विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गई है। जब तक अस्पतालों और डॉक्टरों के दस्तावेज़ों की समय-समय पर जांच नहीं की जाएगी, ऐसी घटनाएं समाज के लिए खतरा बनी रहेंगी।
सरकार और चिकित्सा परिषद को इस दिशा में सख्त नीति और तकनीकी निगरानी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि भविष्य में किसी की जान एक फर्जी डिग्रीधारी के हाथों न जाए।












