
जस्टिस नागरत्ना की असहमति: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की विश्वसनीयता पर सवाल |
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विपुल पंचोली की नियुक्ति पर जस्टिस नागरत्ना की असहमति क्यों महत्वपूर्ण है और यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता के लिए क्या मायने रखती है, पढ़िए संजय पराते की टिप्पणी।
जस्टिस नागरत्ना की असहमति पर गौर करना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपुल एम. पंचोली को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत करने की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति पंचोली के नाम पर कॉलेजियम में 4-1 से फैसला हुआ, जबकि जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने इसका कड़ा विरोध किया।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि पंचोली की नियुक्ति न केवल न्याय प्रशासन के लिए प्रतिकूल होगी, बल्कि कॉलेजियम प्रणाली की विश्वसनीयता को भी खतरे में डाल देगी।
उन्होंने कई अहम सवाल उठाए—
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तीन माह पहले खारिज नाम फिर से कैसे सामने आया?
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सुप्रीम कोर्ट में राज्यों का प्रतिनिधित्व संतुलित क्यों नहीं किया गया? (गुजरात पहले से दो न्यायाधीश दे रहा है)
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पंचोली का गुजरात से पटना स्थानांतरण “असामान्य” क्यों था?
जस्टिस नागरत्ना ने चेतावनी दी कि यदि पंचोली नियुक्त होते हैं, तो वे भविष्य में चीफ जस्टिस भी बन सकते हैं, जो संस्थान के हित में नहीं होगा।
यह असहमति ऐसे समय आई है जब संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता पर सवाल उठ रहे हैं और जनता का विश्वास सुप्रीम कोर्ट पर टिका है। यदि वरिष्ठता और योग्यता दरकिनार कर राजनीतिक आधार पर नियुक्ति की जाती है, तो यह न केवल न्यायपालिका बल्कि संविधान के भविष्य के लिए भी खतरनाक है।
✍️ (लेखक संजय पराते, उपाध्यक्ष – छत्तीसगढ़ किसान सभा, अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध)










