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विशेष लेख: टीएस सिंह देव: 73 वर्ष का सफर—शाही विरासत, आधुनिक साहस और जनसेवा का संकल्प

टीएस सिंह देव का 73वां जन्मदिन (31 अक्टूबर 2025): जानिए सरगुजा महाराजा की 73 वर्षों की जीवन यात्रा। उनके स्काईडाइविंग के शौक, इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि का संकल्प और छत्तीसगढ़ की राजनीति में उनकी अटूट निष्ठा पर विशेष लेख।

विशेष लेख: टीएस सिंह देव: 73 वर्ष का सफर—शाही विरासत, आधुनिक साहस और जनसेवा का संकल्प

आज 31 अक्टूबर 2025 को टीएस सिंह देव 73 वर्ष के हो गए हैं। इन 73 वर्षों में, उन्होंने सरगुजा रियासत के अंतिम महाराजा होने से लेकर छत्तीसगढ़ की राजनीति के सबसे अनुभवी और सम्मानित जननायकों में से एक होने तक का एक बहुआयामी सफर तय किया है।

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टीएस सिंह देव का जन्मदिन एक राष्ट्रीय दुःख से जुड़ा है, यही कारण है कि वह इसे जश्न के रूप में नहीं मनाते:

  • जन्म (31 अक्टूबर 1952): आज वह 73 वर्ष के हो गए हैं।
  • मौन व्रत का कारण: 31 अक्टूबर 1984 को पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, उन्होंने उनके सम्मान में जन्मदिन का उत्सव मनाना छोड़ दिया।
  • निष्ठा का प्रमाण: यह उनका कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के प्रति अटूट निष्ठा का सबसे बड़ा सार्वजनिक प्रमाण है, जो उनके राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े संघर्ष (सीएम पद की खींचतान) के दौरान भी कायम रहा।

टीएस सिंह देव का व्यक्तित्व उनकी गौरवशाली विरासत और आधुनिक साहस का मिश्रण है:

  • सरगुजा राजघराना: वह सरगुजा रियासत के वारिस हैं, जिसके पूर्वजों ने 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में अंग्रेजों के विरुद्ध कांग्रेस को समर्थन देकर राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • साहस का प्रदर्शन (स्काईडाइविंग): 70 वर्ष की आयु पार करने के बावजूद, उनका स्काईडाइविंग का शौक उनके जीवंत, उत्साही और जोखिम लेने वाले व्यक्तित्व को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि उम्र उनके जीवन के प्रति उत्साह को कम नहीं कर पाई है।
  • नेहरू से संबंध: उनके पिता और पंडित नेहरू के बीच की प्रसिद्ध कार कहानी उनके परिवार के गहरे राजनीतिक संबंधों को दर्शाती है।

अपने 73 वर्षों के सफर में, टीएस सिंह देव ने स्वास्थ्य मंत्री के रूप में एक मजबूत प्रशासनिक छाप छोड़ी:

  • यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज: उन्होंने डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना को मजबूत कर राज्य के नागरिकों के लिए ₹5 लाख तक का निःशुल्क उपचार सुनिश्चित किया।
  • महामारी प्रबंधन: COVID-19 महामारी के दौरान, उन्होंने निःशुल्क उपचार और जाँच सुनिश्चित करने के लिए नेतृत्व किया, जिससे जनता के बीच उनकी छवि एक संवेदनशील प्रशासक की बनी।
  • बुनियादी ढाँचा: उन्होंने सरगुजा जैसे क्षेत्रों में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों का उन्नयन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इन 73 वर्षों में, उनका सबसे बड़ा संघर्ष 2018 के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर चला। ‘ढाई-ढाई साल’ के फॉर्मूले के विवाद ने राज्य की राजनीति को गरमाए रखा। इस आंतरिक खींचतान के बावजूद, उन्होंने पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी और अंततः 2023 में उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया।

टीएस सिंह देव का 73वां जन्मदिन न केवल एक व्यक्तिगत milestone है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में त्याग, साहस, विरासत और अटूट प्रतिबद्धता की कहानी का प्रतीक है।

त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव (T. S. Singh Deo), जिन्हें छत्तीसगढ़ में प्यार से ‘टीएस बाबा’ कहा जाता है, एक ऐसे नेता हैं जो राजसी वैभव और आधुनिक एडवेंचर को समान सहजता से जीते हैं। वह न केवल सरगुजा रियासत के अंतिम महाराजा हैं, बल्कि उनके परिवार का इतिहास राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं और अद्भुत कारनामों से भरा हुआ है।

राजनीति के तनावपूर्ण माहौल के बावजूद, टीएस सिंह देव अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और एडवेंचर के प्रेम को बनाए रखते हैं। उनका यह पहलू उन्हें सामान्य राजनेताओं से अलग खड़ा करता है।

70 वर्ष की आयु पार कर चुके टीएस सिंह देव का सबसे चर्चित व्यक्तिगत शौक स्काईडाइविंग (Skydiving) है।

  • साहस का प्रदर्शन: उनका स्काईडाइविंग करते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसने उनके समर्थकों और आम जनता को आश्चर्यचकित कर दिया। यह कारनामा दर्शाता है कि वह न केवल जोखिम लेने से नहीं डरते, बल्कि जीवन को पूरी जीवंतता और उत्साह के साथ जीते हैं।
  • व्यक्तित्व का संदेश: हजारों फीट की ऊँचाई से छलांग लगाना उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, तनाव को नियंत्रित करने की क्षमता और जीवन में रोमांच को अपनाने की इच्छा को दर्शाता है। यह उन्हें एक ‘कूल’ और प्रगतिशील राजनेता की छवि देता है।
  • प्रेरणा स्रोत: यह वीडियो कई लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया कि उम्र केवल एक संख्या है और शारीरिक सक्रियता तथा मानसिक फिटनेस बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।

राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के बीच, टीएस सिंह देव अपनी सादगी और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते हैं।

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  • किताबें और ज्ञान: उन्हें पढ़ने का शौक है और उनकी रुचि इतिहास तथा दर्शन में गहरी है, जो उनकी भाषण शैली और राजनीतिक समझ में परिलक्षित होती है।
  • सामाजिक सरोकार: उनकी सबसे बड़ी व्यक्तिगत रुचि जनसेवा में है। भले ही वह एक महाराजा की उपाधि रखते हों, लेकिन जनता के बीच उनकी सहजता और विनम्रता ही उन्हें ‘टीएस बाबा’ बनाती है।

टीएस सिंह देव सरगुजा राजघराने के 118वें महाराज हैं। उनके पूर्वजों ने सिर्फ रियासत नहीं चलाई, बल्कि देश के इतिहास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह राजघराना अपनी वीरता, शिकार कौशल और कांग्रेस के प्रति निष्ठा के लिए जाना जाता है।

सरगुजा राजघराने और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच गहरे और व्यक्तिगत संबंध थे।

  • कार की कहानी: एक प्रसिद्ध किस्सा तब का है जब पंडित नेहरू प्रयागराज (इलाहाबाद) में एक रैली के लिए आए थे। उनकी नज़र एक खुली छत वाली लाल स्पोर्टिंग कार पर पड़ी। नेहरूजी ने वैसी ही गाड़ी रैली के लिए मांगी। जाँच करने पर पता चला कि वह कार उनके अभिन्न मित्र, महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के पोते यानी टीएस सिंह देव के पिता मदनेश्वर शरण सिंहदेव की थी।
  • व्यक्तिगत संबंध: गाड़ी को रैली के लिए इस्तेमाल किया गया। रात के खाने के समय नेहरूजी ने उस कार वाले ‘पोते’ से मिलने की इच्छा व्यक्त की। जब मदनेश्वर शरण सिंह (जो उस समय सिनेमा हॉल में थे) को बुलाया गया, तो नेहरूजी ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। यह घटना राजघराने और गांधी परिवार के बीच घनिष्ठ पारिवारिक और राजनीतिक संबंध को दर्शाती है, जो टीएस बाबा की कांग्रेस के प्रति अटूट निष्ठा को भी समझाता है।

टीएस सिंह देव के दादा, महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव, अपनी रियासत में जनकल्याण के साथ-साथ अपने विश्वस्तरीय शिकार कौशल के लिए भी जाने जाते थे।

  • विश्व रिकॉर्ड: उन्हें दुनिया में सबसे अधिक खूंखार, आदमखोर बाघों को मारने का विश्व कीर्तिमान दर्ज करने का गौरव प्राप्त था। यह रिकॉर्ड गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज रहा है (हालाँकि, अब वन्यजीव संरक्षण के कारण ऐसे रिकॉर्ड्स को मान्यता नहीं दी जाती)।
  • जिम कॉर्बेट के गुरु: प्रसिद्ध शिकारी और वन्यजीव संरक्षक जिम कॉर्बेट ने भी महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव के गुरुत्व में आदमखोर बाघों के शिकार के गुर सीखे थे। महाराजा के अनुभव और ज्ञान का लोहा जिम कॉर्बेट भी मानते थे।
  • शिकार के नियम: महाराजा शिकार में सख्त नियमों का पालन करते थे। वह कभी भी मादा, गर्भवती, बीमार, या सोए हुए बाघों को नहीं मारते थे। उनका मानना ​​था कि शिकार केवल तभी किया जाना चाहिए जब कोई बाघ आदमखोर हो गया हो और मानव जीवन को खतरा हो। यह उनके पर्यावरण के प्रति सम्मान को दर्शाता है।

सरगुजा रियासत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • त्रिपुरी अधिवेशन (1939): जब कांग्रेस का महत्वपूर्ण त्रिपुरी (जबलपुर) अधिवेशन हुआ, तो महाराजा रामानुज शरण सिंहदेव ने अंग्रेजों के भारी विरोध के बावजूद कांग्रेस को खुलकर समर्थन दिया।
  • 52 हाथियों का काफिला: उन्होंने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए रसद और सामग्री ले जाने हेतु 52 हाथियों का शानदार काफिला अधिवेशन स्थल पर भेजा था। यह कदम अंग्रेज शासकों को यह संदेश देने के लिए काफी था कि देशी रियासतें अब स्वतंत्रता संग्राम के साथ खड़ी हैं।

टीएस सिंह देव की व्यक्तिगत रुचि और उनके राजघराने की कहानियाँ मिलकर उनके बहुआयामी व्यक्तित्व को दर्शाती हैं। वह एक ओर साहस और आधुनिकता को अपनाते हैं (स्काईडाइविंग), तो दूसरी ओर गौरवशाली विरासत, जनसेवा और राजनीतिक निष्ठा (नेहरू परिवार और कांग्रेस के प्रति अटूट सम्मान) को पूरी जिम्मेदारी से निभाते हैं।

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि शाही पृष्ठभूमि से आने वाला कोई व्यक्ति भी लोकतंत्र में जनता के बीच अपनी सादगी, साहस और समर्पण से एक सच्चा जननायक बन सकता है।

 

Ashish Sinha

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