
दिल्ली में 2 साल की बच्ची से डिजिटल रेप—कोर्ट ने कहा: ‘दया के लायक नहीं’, 25 साल की सजा
दिल्ली के निहाल विहार में 2 साल की बच्ची से डिजिटल रेप के मामले में तीस हजारी कोर्ट ने आरोपी को POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत 25 साल की सजा सुनाई। कोर्ट ने पीड़िता को 13.5 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भी दिया। घटना दिवाली की पूर्व संध्या पर हुई थी।
Delhi Digital Rape Case: 2 साल की बच्ची से डिजिटल रेप, दोषी को 25 साल की सजा – कोर्ट ने कहा, ‘कानून डिजिटल और लिंग प्रवेश में कोई अंतर नहीं मानता’
नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दिवाली की पूर्व संध्या पर हुई 2 साल की मासूम के साथ डिजिटल रेप की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस मामले में तीस हजारी कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाते हुए आरोपी को POCSO एक्ट की धारा 6 के तहत 25 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही कोर्ट ने पीड़िता को 13.5 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश भी दिया है।
क्या है डिजिटल रेप?
“डिजिटल” का मतलब यहां टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि उंगली या किसी वस्तु से है।
कानून के अनुसार —
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किसी के प्राइवेट पार्ट में उंगली या कोई वस्तु ज़बरदस्ती डालना डिजिटल रेप है।
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पीड़िता को जबरन यौन गतिविधि में शामिल करना भी इसी श्रेणी में आता है।
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किसी की निजी तस्वीरें बिना अनुमति साझा करना डिजिटल यौन उत्पीड़न माना जाता है।
2012 के निर्भया कांड के बाद 2013 में IPC में संशोधन कर डिजिटल रेप को कानूनी परिभाषा दी गई। वहीं POCSO की धाराओं के लिए नाबालिग की उम्र 16 से घटाकर कम उम्र में अपराध के लिए कड़ी सजा तय की गई।
दिल्ली में क्या हुआ था? – पूरा मामला
घटना 19 अक्टूबर 2025 की है, जब दिवाली की पूर्व संध्या पर आरोपी—जो पीड़िता के पिता का परिचित था—घर पहुंचा।
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बच्ची घर में सुरक्षित थी, लेकिन आरोपी ने नशे की हालत में उसके साथ डिजिटल रेप किया।
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अगले दिन (20 अक्टूबर) पीड़िता के परिवार ने निहाल विहार थाने में FIR दर्ज कराई।
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पुलिस ने तुरंत आरोपी को गिरफ्तार किया और सिर्फ कुछ दिनों में चार्जशीट दाखिल कर दी।
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कोर्ट ने 9 दिनों में ट्रायल पूरा कर लिया।
कोर्ट ने क्यों सुनाई 25 साल की सजा?
एडिशनल सेशन जज बबीता पुनिया ने इसे जघन्य अपराध बताते हुए कहा:
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“कानून डिजिटल प्रवेश और लिंग प्रवेश में कोई अंतर नहीं मानता।”
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अपराध मासूम के घर जैसे सुरक्षित स्थान पर हुआ—इससे अपराध और गंभीर हो जाता है।
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दिवाली की रात मासूम की जिंदगी को अंधकार में धकेलने वाला व्यक्ति दया का पात्र नहीं हो सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता बेहोशी की स्थिति में थी, जिससे उसका शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक ट्रॉमा और भी गहरा होता है।
डिजिटल रेप क्यों सबसे खतरनाक?
जज ने कहा कि:
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यह हमला कहीं भी हो सकता है—अस्पताल, घर, सार्वजनिक स्थान, पुलिस हिरासत में भी
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पीड़िता अक्सर बेहोशी या ICU में होती है, जिससे वह खुद का बचाव नहीं कर पाती
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फिजिकल के साथ-साथ मानसिक और भावनात्मक चोट भी अत्यधिक गंभीर होती है











