
पॉक्सो में दोषसिद्धि केवल 22 फीसदी है:शेलार
पॉक्सो में दोषसिद्धि केवल 22 फीसदी है:शेलार
कानून को लेकर अधतन रहें समितियां:डॉ चौबे
सीसीएफ़ की 79 वी ई कार्यशाला संपन्न
बाल कल्याण समितियां पॉक्सो कानून का गंभीरतापूर्वक अध्ययन कर पीड़ित बालिकाओं के पुनर्वास एवं न्याय दिलाने में अपनी अग्रणी भूमिका का निर्वहन करें।देश में पॉक्सो से जुड़े प्रकरणों में दोषसिद्धी महज 22 प्रतिशत ही है जो एक गंभीर चुनौती है।यह चिंता आज ख्यातिप्राप्त कानूनविद नवीन कुमार शेलार ने व्यक्त की। शेलार चाइल्ड कंजर्वेशन फाउंडेशन की 79 वी ई कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।कार्यशाला में फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र शर्मा ने भी शिरकत की।देश भर के एक दर्जन राज्यों के बाल अधिकार कार्यकर्ता भी इस आभासी मंच पर आज जुड़े रहे।
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शेलार ने कहाकि पॉक्सो से जुड़े मामलों में पुलिस के साथ बाल कल्याण समितियों की भूमिका को भी बहुत संवेदनशील बनाया गया है लेकिन आम अनुभव यही है कि देश भर में समितियों के सदस्य इस महती भूमिका को सुनिश्चित नहीं कर पा रहे है उन्होंने कहा कि समितियों को चाहिये कि वे अपने कार्यक्षेत्र से संबद्ध सभी प्रकरणों की बारीकी से जानकारी लें और अगर पुलिस पॉक्सो के प्रावधानों के अनुरूप कारवाई नही कर रही है तो समितियां अपने विधिक अधिकार क्षेत्र का उपयोग करते हुए सबंधित न्यायालय को इस आशय का पत्र लिखकर कारवाई का अनुरोध करें।श्रीशेलार ने सँशोधित गर्भपात अधिनियम के नए प्रावधानों की जानकारी देते हुए बताया कि इस कानून के तहत भी पीड़िता के हक में समितियां बहुत प्रभावी भूमिका में काम कर सकती है।उन्होंने जोर देकर कहा कि बाल हित की बुनियादी अवधारणा इस तरह के मामलों में भी सर्वोपरि है इसलिए समितियों के सदस्यों को इस कानून की बारीकियों औऱ भावना को गंभीरतापूर्वक समझना चाहिये।
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शेलार ने आर्म्स एक्ट के प्रावधानों के साथ किशोर न्याय अधिनियम के गतिरोधों की चर्चा करते हुए कहा कि शस्त्र अधिनियम में यंग शब्द का उल्लेख है जो बालक की परिभाषा से सुमेलित नही है।
श्री शेलार ने इस बात पर अफसोस जताया कि बालिकाओं के यौन शोषण से जुड़े पॉक्सो के बीसियों मामले उचित पैरवी औऱ प्रामाणिक जानकारी की अभाव में दोषसिद्धी तक नही पहुँच पाते है ऐसे मामलों में उच्च न्यायालयों की भूमिका भी हाल के दिनों में समावेशी नजर नही आई है।मुंबई उच्च न्यायालय के त्वचा से त्वचा सम्पर्क मामले की नजीर देते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे मामलों की संख्या बहुत है जिनमें पॉक्सो के आरोपियों को आईपीसी के आरोपों में तब्दील कर मामलों का निपटारा किया गया है। शेलार ने कहा कि देश में ऐसे प्रकरणों पर विमर्श तभी हो पाता है जब मामले मीडिया में आते है।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए फाउंडेशन के सचिव डॉ कृपाशंकर चौबे ने कहाकि बाल कल्याण समिति को किशोर न्याय अधिनियम के साथ पॉक्सो,एमटीपी जैसे सहसबंधित कानूनों का विशद अध्ययन करना चाहिये क्योंकि बुनियादी रूप से पुनर्वास औऱ बाल कल्याण का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है।डॉ चौबे के अनुसार देश भर में घटित होने वाले घटनाक्रम,न्यायिक निर्णयों एवं संशोधनों से अधतन रहना बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की दिनचर्या का अविभाज्य हिस्सा होना चाहिये।
कार्यशाला के अंत में आभार प्रदर्शन फाउंडेशन कोर कमेटी सदस्य राकेश अग्रवाल ने व्यक्त किया। यह जानकारी छत्तीसगढ़ के प्रदेश सचिव सुरेन्द्र साहू ने दिया है।
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