
पंचायत चुनाव पर सियासत: क्या भाजपा कार्यालय से तय हो रही जनपद पंचायत चुनाव की तिथियां?
पंचायत चुनाव पर सियासत: क्या भाजपा कार्यालय से तय हो रही जनपद पंचायत चुनाव की तिथियां?
भाजपा के कार्यक्रम से उठा विवाद, कांग्रेस ने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर उठाए सवाल
अंबिकापुर। आशीष सिंहा । 27.02.2025 । छत्तीसगढ़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। सरगुजा जिले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा जनपद पंचायत चुनाव की तिथियां तय करने की खबरें सामने आने के बाद कांग्रेस ने राज्य निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। जिला कांग्रेस अध्यक्ष राकेश गुप्ता ने भाजपा पर चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने का आरोप लगाया है और इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि यदि राज्य निर्वाचन आयोग भाजपा द्वारा घोषित तिथियों के अनुरूप ही चुनाव करवाता है, तो यह साबित हो जाएगा कि चुनाव की तारीखें भाजपा कार्यालय से ही तय की गई हैं।
चुनाव की आधिकारिक घोषणा से पहले भाजपा ने तिथियां तय कर दी?
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के तहत जिला पंचायत, जनपद पंचायत और उप सरपंच चुनाव होने हैं। इन चुनावों की तारीखों की घोषणा राज्य निर्वाचन आयोग को करनी होती है, लेकिन अभी तक आयोग की ओर से कोई आधिकारिक सूचना जारी नहीं हुई है। इसी बीच सरगुजा जिले में भाजपा की ओर से चुनाव तिथियों की घोषणा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
स्थानीय अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा के जिला अध्यक्ष ने जनपद पंचायत चुनाव के लिए 4 मार्च, 6 मार्च और 10 मार्च को मतदान कराने की जानकारी दी है। इसके साथ ही पार्टी ने हर जनपद पंचायत में पर्यवेक्षकों की नियुक्ति भी कर दी है। भाजपा के मीडिया विभाग द्वारा जारी इस कार्यक्रम के अनुसार:
4 मार्च: अम्बिकापुर, लुंड्रा, बतौली और सीतापुर में जनपद पंचायत चुनाव
6 मार्च: लखनपुर में चुनाव
10 मार्च: उदयपुर और मैनपाट में चुनाव
कांग्रेस ने उठाए गंभीर सवाल, निष्पक्षता पर संदेह
कांग्रेस ने इस मामले को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस जिलाध्यक्ष राकेश गुप्ता ने कहा कि जब तक आयोग आधिकारिक रूप से चुनाव कार्यक्रम की घोषणा नहीं करता, तब तक किसी भी राजनीतिक दल को इस प्रकार की जानकारी सार्वजनिक करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि यदि भाजपा द्वारा जारी कार्यक्रम सही साबित होता है, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि राज्य निर्वाचन आयोग सत्ताधारी दल के दबाव में काम कर रहा है।
गुप्ता ने कहा,
“चुनाव आयोग की जिम्मेदारी निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव करवाने की होती है, लेकिन यदि भाजपा द्वारा घोषित कार्यक्रम ही आधिकारिक रूप से लागू होता है, तो यह आयोग की निष्पक्षता पर गहरे सवाल खड़े करेगा। इससे यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि पूरी चुनावी प्रक्रिया भाजपा के इशारों पर संचालित हो रही है।”
उन्होंने इस मामले को लेकर जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की जल्द से जल्द निष्पक्षता से कराने की मांग की है।
वहीं, इस विवाद पर भाजपा ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी अपने संगठनात्मक कार्यों के तहत पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करती है और यह चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं है। भाजपा ने कांग्रेस पर निराधार आरोप लगाने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस अपनी संभावित हार से पहले ही चुनाव आयोग पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है।
भाजपा जिला अध्यक्ष ने कहा,
“हमारा काम संगठनात्मक तैयारी करना है। चुनाव तिथियों का निर्धारण आयोग करता है, न कि भाजपा। कांग्रेस को अपने आधारहीन आरोपों से पहले तथ्य देखने चाहिए।”
यह विवाद सिर्फ सरगुजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे राज्य की राजनीति पर असर डाल सकता है। चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर उठे सवालों ने यह बहस छेड़ दी है कि क्या वास्तव में आयोग स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है या किसी दबाव में आकर निर्णय ले रहा है। यदि भाजपा द्वारा घोषित तिथियां ही आयोग द्वारा तय की जाती हैं, तो इससे चुनावी निष्पक्षता पर गहरा संदेह उत्पन्न होगा।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव आयोग की भूमिका किसी भी लोकतंत्र में सबसे महत्वपूर्ण होती है। यदि किसी भी राजनीतिक दल को यह महसूस होता है कि चुनावी प्रक्रिया में भेदभाव किया जा रहा है, तो यह पूरी लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए चिंता का विषय है।
अब राज्य निर्वाचन आयोग पर यह दबाव है कि वह अपनी निष्पक्षता साबित करे। यदि आयोग भाजपा द्वारा घोषित तिथियों के अनुरूप ही चुनाव करवाता है, तो इससे विपक्ष के आरोपों को बल मिलेगा और पूरे चुनावी तंत्र पर सवाल खड़े होंगे। दूसरी ओर, यदि आयोग अलग तिथियां घोषित करता है, तो यह साबित हो सकता है कि चुनाव प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से संचालित की जा रही है।
जनता की नजर अब आयोग के निर्णय पर टिकी है। क्या आयोग अपनी निष्पक्षता सिद्ध कर पाएगा, या फिर चुनावी प्रक्रिया को लेकर विपक्ष के आरोप सही साबित होंगे? यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।
छत्तीसगढ़ में पंचायत चुनाव को लेकर बढ़ती राजनीतिक तनातनी यह दर्शाती है कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक दल कितने सतर्क हैं। कांग्रेस जहां भाजपा पर चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने का आरोप लगा रही है, वहीं भाजपा इसे संगठनात्मक गतिविधि बता रही है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि राज्य निर्वाचन आयोग क्या कदम उठाता है। यदि आयोग निष्पक्षता बनाए रखने में सफल रहता है, तो इससे चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास बना रहेगा। लेकिन यदि विपक्ष के आरोप सही साबित होते हैं, तो इससे चुनावी प्रणाली की निष्पक्षता और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो सकते हैं।
आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि छत्तीसगढ़ में पंचायत चुनाव सही मायनों में निष्पक्ष होंगे या फिर राजनीति का शिकार बन जाएंगे।