ताजा ख़बरेंधर्मब्रेकिंग न्यूज़

Chhath Puja 2021: सूर्य षष्ठी(छठ पूजा) शिशु पालिनी षष्ठी देवी की पूजा 7-10 नवम्बर , आज से नहाय खाय के साथ छठ व्रत आरंभ, जानें कौन हैं छठी मैया और कथा ?

ज्योतिषाचार्य विजेन्द्र कुमार तिवारी,भोपाल

Chhath Puja 2021:सूर्य षष्ठी(छठ पूजा) शिशु पालिनी षष्ठी देवी की पूजा 7-10 नवम्बर , आज से नहाय खाय के साथ छठ व्रत आरंभ, जानें कौन हैं छठी मैया और कथा ?

WhatsApp Image 2025-09-25 at 3.01.05 AM

हिंदू पंचाग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को महाछठ का पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्यदेव की बहन छट मैया और भगवान सूर्य की पूजा का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार छट का व्रत संतान की प्राप्ति, कुशलता और उसकी दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है। चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय से इस पर्व की शुरुआत हो जाती है और षष्ठी तिथि को छठ व्रत की पूजा, व्रत और डूबते हुए सूरज को अर्घ्य के बाद अगले दिन सप्तमी को उगते सूर्य को जल देकर प्रणाम  करने के बाद व्रत का समापन किया जाता है। इस बार 8 नवंबर को नहाय-खाय से छठ व्रत का आरंभ होगा। अगले दिन 9 नवंबर को खरना किया जाएगा और 10 नवंबर षष्ठी तिथि को मुख्य छठ पूजन किया जाएगा और अगले दिन 11 नवंबर सप्तमी तिथि को छठ पर्व के व्रत का पारणा किया जाएगा।

गंगा –यमुना के किनारे वाले क्षेत्र में मई बहु प्रचलित –छठ-पूजा सूर्यास्त कालीन विश्वदेवता के नामक सूर्य भगवान् का पूजन-अर्चन भारत के पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार एवं विदेश में मॉरीशस, फिजी, त्रिनीडाड आदि के स्त्री-पुरुष प्रतिवर्ष करते हैं। यह पर्व वर्ष में दो बार मानते हैं । पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। पारिवारिक सुख-समृद्घि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है।

– । ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के माध्यम से , राजऋषि विश्वामित्र के मुख से कार्तिक शुक्ल षष्ठी के अस्ताचल सूर्य एवं सप्तमी को सूर्योदय के मध्य गायत्री मंत्र नामक यजुष का प्रसव / विश्वामित्र के मुख से हुआ , वेदमाता गायत्री प्रकट हुई थी ।प्रत्यक्ष देव भुवन भास्कर के पूजन, अर्घ्य का अद्भुत परिणाम था। तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी की तिथि परम पूज्य हो गई।

चार दिनी छठ मैया पर्व-
किन राशी के लिए विशेष उपयोगी? -ज्योतिष के सिद्धांत से मेष,वृष,मिथुन,कर्क ,कन्या,तुला,वृश्चिक,मकर कुम्भ एवं मीन राशी वालो के लिए सूर्य की कृपा (दशा,अन्तर्दशा ,निर्बल सूर्य,)हेतु उत्तम उपयोगी पर्व है ।
जिनके नाम अ.च,ला,इ,उ,एo,ब,व,क,ह,द, ड,प,ठ,र,त,न,य,ज,ख,द,स,ग अक्षर से शुरू हो उनके लिए गृहसुख,शांति ,आरोग्य प्रद पर्व है ।
षष्ठी देवी शिशुओं की देवी – स्वरूप-बिल्ली पर बैठी,एक शिशु गोद में दूसरे शिशु की अंगुली पकड रखी है।
षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं। संतान प्रदायिका बच्चों की रक्षा,करती है। यह ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं और कार्तिकेय की प्राणप्रिया हैं, देवसेना , विष्णुमाया तथा बालदा (अर्थात पुत्र देने वाली भी कहा गया है।) शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रुप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं। जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं , षष्ठी देवी की पूजा की जाती है।
– संतान के इच्छुक दंपत्ति को शालिग्राम शिला, कलश, वटवृक्ष का मूल अथवा दीवार पर लाल चंदन से षष्ठी देवी की आकृति बनाकर उनका पूजन नित्य करना चाहिए।
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।सुपुत्रदां च शुभदां दया रूपां जगत्प्रसूम्।।
श्वेत चम्पक वर्णाभां रत्न भूषण भूषिताम्।पवित्र रुपां परमां देवसेनां परां भजे।।

mantr
96f7b88c-5c3d-4301-83e9-aa4e159339e2 (1)

ध्यान के बाद ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा इस अष्टाक्षर मंत्र से आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, तथा नैवेद्यादि उपचारों से देवी का पूजन करना चाहिए।
चार दिन सूर्य का मन्त्र प्राता:,मध्य एवं संध्या काल में जपना या बोलना चाहिए –
-ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य: श्रीं ह्रीं मह्यं लक्ष्मीं प्रयच्छ ।
-नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नम:। शुभायै देवसेनायै षष्ठी देव्यै नमो नम: ।। वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।
08नवम्बरचतुर्थी – “नहाय-खाय ”-इस दिन घर पवित्र कर,(साफ़-सफाई)स्नान करने के बाद ही सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है । चने की दाल,काशीफल(कद्दू),चावल भोजन में शामिल किया जाता है ।उड़द,मसूर,लहसुन,प्याज जिमीकंद,अरबी वर्जित । रात में खीर का व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं।
09 नवम्बर पंचमी -“लोहंडा-खरना”- “खरना “ नमक एवं शकर वर्जित । गन्ने के रस में बनी खीर ,उध,चावल,घी रोटी का , एक समय भोजन सं,ध्या उपरांत प्रसाद स्वरूप किया जाता है। व्रत दिन में होता है ।
10 नवम्बर षष्ठी -“अर्ध्य’- छठ मैया के लिए ,बांस की टोकनी में ,सूप में टिकरी या ठेकुआ ,चावल के लड्डू ,नारियल,केला आदि फल,दूध रख कर सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के घाट पर सूर्य भगवन को अर्ध्य दिया जाता है ।
11 नवम्बर सप्तमी – सूर्योदय समय पुन: विगत संध्या की तरह ही सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है । इसके पश्चात् कच्छा दूध मीठा पिया जाता है ।
अर्घ्य जल में रो कथा-
विन्दुसार तीर्थ में महिपाल नाम का व्यक्ति रहता था।महिपाल धर्म-कर्म पर परे नास्तिक था।महीपाल ने एक बार जानबूझकर भगवान सूर्य की प्रतिमा के सामने ही मल-मूत्र का त्याग किया , इससे वो अंधा हो गया।निराश एवं शर से हतभाग्य होकर गंगा जी में डूबने के लिए चल दिया।मार्ग में , नारद जी ने महिपाल को रोककर पूछा कि इतनी जल्दी में कहां जा रहे हैं? महीपाल साडी घटना बताते हुए कहा , इसलिए गंगा जी में प्राण त्याग करने जा रहा हूँ ।नारद बोले कि – ये दशा भगवान सूर्यदेव का अपमान करने हुई है।कार्तिक महीने की सूर्यषष्ठी का विधि-विधान से व्रत करो।तुम्हारे कष्ट दूर हो जाएगें।महिपाल ने नारद जी के बात मान कर व्रत रखादूत्य को षष्ठी एवं सप्तमी को अर्ध्य दिया ।इस व्रत के प्रभाव से वो नेत्र प्रकाश दर्शन सक्षम हुए .ली, शकर और अक्षत होने से सूर्य देव सौभाग्य, आयु, धन, यश-विद्या आदि देते हैं।

सूर्य की बहन है छठी मैया
शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी  की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए ये पर्व मनाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है।

ऐसे हुई छठ पूजन की शुरुआत
ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं हुई, इस कारण वे बहुत दुखी रहने लगे थे। महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती तो हुई लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया। पूरी प्रजा में मातम का माहौल छा गया। उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं।

जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा। माता षष्ठी ने कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूँ और मेरा नाम षष्ठी देवी है। मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं। इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया। देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की। मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा।

Haresh pradhan

e6e82d19-dc48-4c76-bed1-b869be56b2ea (2)

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!