
पाकिस्तान की नई चाल: अमेरिका को पसनी पोर्ट, तुर्की को कराची में जमीन – भारत के लिए बढ़ी रणनीतिक चुनौती
पाकिस्तान ने अमेरिका को पसनी पोर्ट और तुर्की को कराची में 1000 एकड़ जमीन देने की पेशकश की है। यह कदम चीन, अमेरिका और तुर्की के बीच रणनीतिक संतुलन बदल सकता है और भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौतियां खड़ी कर सकता है।
भारत को घेरने मुनीर की नई चाल: अमेरिका को पसनी पोर्ट, तुर्की को कराची में जमीन – दोनों देशों को एक साथ साध रहा पाकिस्तान
नई दिल्ली / इस्लामाबाद, 07 अक्टूबर 2025। दक्षिण एशिया की भू-राजनीति में एक नया मोड़ सामने आया है। पाकिस्तान, जो अब तक चीन की रणनीतिक छाया में रहा, अब अमेरिका और तुर्की दोनों के साथ गहरे सहयोग की दिशा में बढ़ रहा है। यह न केवल इस्लामाबाद की विदेश नीति में बड़ा परिवर्तन है, बल्कि भारत के सुरक्षा ढांचे और क्षेत्रीय प्रभाव के लिए नई चुनौती भी खड़ी कर रहा है।
पाकिस्तान-अमेरिका: पसनी पोर्ट का प्रस्ताव
पाकिस्तान ने अमेरिका को बलूचिस्तान के पसनी बंदरगाह के निर्माण और संचालन का प्रस्ताव दिया है।
यह बंदरगाह ग्वादर पोर्ट (चीन-पाकिस्तान) से महज 100 किलोमीटर दूर और भारत-ईरान के चाबहार पोर्ट के समीप स्थित है।
मुख्य बिंदु:
- परियोजना की अनुमानित लागत 1.2 अरब डॉलर बताई गई है।
- सितंबर 2025 में पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर, पीएम शहबाज शरीफ और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बैठक के बाद यह प्रस्ताव सामने आया।
- पाकिस्तान ने अमेरिका को ‘रेयर अर्थ मिनरल्स’ तक सीमित पहुंच देने की पेशकश भी की है।
विश्लेषकों के अनुसार, पसनी बंदरगाह अमेरिका को अरब सागर और हिंद महासागर में निगरानी एवं रणनीतिक पहुंच प्रदान कर सकता है। इससे चीन और भारत-ईरान की परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है।
ड्रोन सहयोग की वापसी की तैयारी
पाकिस्तान ने अमेरिका को सीमित ड्रोन ऑपरेशन की अनुमति देने का संकेत दिया है — यह 2000 के दशक के “शम्सी एयरबेस सहयोग” की याद दिलाता है।
2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी के बाद जो निगरानी क्षमताएं कमजोर हुईं, उन्हें अब पाकिस्तान फिर से स्थापित करना चाहता है।
तुर्की को कराची में 1000 एकड़ जमीन
अमेरिका के साथ समझौते के समानांतर पाकिस्तान ने तुर्की को कराची इंडस्ट्रियल पार्क में 1000 एकड़ जमीन भेंट करने की घोषणा की है।
यहां एक एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग जोन (EPZ) बनाया जाएगा, जहां कर छूट, आसान लॉजिस्टिक्स और खाड़ी देशों तक शिपिंग की सुविधा मिलेगी।
इस साल तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोआन की इस्लामाबाद यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच 24 समझौते हुए — जिनमें UAVs, रडार सिस्टम्स और रक्षा उत्पादन शामिल हैं।
नई त्रिकोणीय कूटनीति
पाकिस्तान की विदेश नीति अब तीन ध्रुवों पर संतुलन साधने की कोशिश कर रही है:
| साझेदार | प्रमुख क्षेत्र | उद्देश्य |
|---|---|---|
| अमेरिका | सुरक्षा, ड्रोन, बंदरगाह | अरब सागर में रणनीतिक साझेदारी |
| तुर्की | औद्योगिक, रक्षा सहयोग | निवेश और रक्षा उत्पादन |
| चीन | अवसंरचना, CPEC | आर्थिक स्थायित्व और व्यापार मार्ग |
चीन ग्वादर में भारी निवेश कर चुका है, ऐसे में पासनी में अमेरिकी उपस्थिति बीजिंग के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकती है। इससे अरब सागर में शक्ति संतुलन बदल सकता है।
🇮🇳भारत के लिए क्या मायने रखते हैं ये बदलाव?
- त्रिकोणीय समुद्री तनाव:
चाबहार (भारत-ईरान), ग्वादर (चीन-पाकिस्तान) और अब पसनी (अमेरिका-पाकिस्तान) — तीनों के बीच भारत की सामरिक स्थिति अधिक जटिल हो जाएगी। - खुफिया निगरानी की चुनौती:
पाकिस्तान-अमेरिका ड्रोन सहयोग भारत की पश्चिमी सीमा पर नई खुफिया क्षमताएं उत्पन्न कर सकता है। - तुर्की का उभरता प्रभाव:
कराची में तुर्की की औद्योगिक उपस्थिति और पाकिस्तान के साथ उसका गठबंधन, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत-विरोधी रुख को मजबूती दे सकता है।
भूगोल के बदले कैश
विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान की यह “मल्टी-वेक्टर” कूटनीति उसकी आर्थिक संकट से जूझती स्थिति को संभालने की कोशिश है।
IMF की सख्त शर्तों और बढ़ती बेरोजगारी के बीच पाकिस्तान भूगोल और सामरिक स्थिति को नकदी में बदलने की रणनीति अपना रहा है।
हालांकि, यह नीति अल्पकालिक राहत तो दे सकती है, पर दीर्घकालिक भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ा सकती है — विशेषकर तब, जब चीन, अमेरिका और तुर्की तीनों अपने-अपने हितों के लिए प्रतिस्पर्धा में हों।
भारत के लिए रणनीतिक सबक
- समुद्री निगरानी मजबूत करे: पश्चिमी तट और अरब सागर में निगरानी क्षमता बढ़ाई जाए।
- ईरान और खाड़ी देशों के साथ साझेदारी गहरी करे।
- रक्षा और खुफिया नेटवर्क का आधुनिकीकरण करे।
भविष्य में वही देश सफल होगा जिसके पास रणनीतिक दृष्टि, संतुलन और दीर्घकालिक सोच होगी — केवल भौगोलिक स्थिति नहीं।








