
श्रीमद् भागवत कथा यज्ञ आयोजन में उपस्थित श्रोताओं का भाव विभोर कर रहे हैं युवा कथावाचक पंडित चंद्रेश पांडेय जी महाराज
श्रीमद् भागवत कथा यज्ञ आयोजन में उपस्थित श्रोताओं का भाव विभोर कर रहे हैं युवा कथावाचक पंडित चंद्रेश पांडेय जी महाराज
गोपाल सिंह विद्रोही//प्रदेश खबर प्रमुख छत्तीसगढ//बिश्रामपुर अमर स्तम्भ न्यूज – श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ संगीत में कथा मैं श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है ।ग्राम खरसुरा के प्राथमिक शाला मे संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है पिछले 28 मार्च से 5 अप्रैल तक चलने वाला कथा का रसपान कर भक्त गण आनंद लें कर जीवन को धन्य कर रहे है।
जानकारी के अनुसार पीछले 28 मार्च को कलश यात्रा शोभा यात्रा वेदी पूजन, 29 मार्च को श्रीमद् भागवत महात्म ,
30 मार्च को राजा परीक्षित जन्म श्री शूकदेव पूजन विदुर चरित्र ,
31 मार्च को ध्रुव चरित्र प्रहलाद चरित्र नरसिंह अवतार ,
1 अप्रैल को वामन अवतार राम अवतार एवं कृष्ण अवतार 2 अप्रैल को श्री कृष्ण जी की बाल लीलाएं गोवर्धन पूजन प्रसंग पर वाराणसी के कथावाचक पंडित चंद्रेश पांडे ने संगीतमय धुन पर कथा का रस्सा स्वादन कराया। कल
4 अप्रैल को श्री कृष्ण जी के अन्य विवाह सुदामा चरित्र परीक्षित मोक्ष अप्रैल को हवन पूर्णाहुति एवं भंडारा व्यास विदाई
कथावाचक श्री चंद्रेश पांडे जी महाराज जी द्वारा कराया जाएगा ।आज के प्रसंग पर भक्तो को गोवर्धन पूजा स्मरण कराते हुए कहा कि देवराज इंद्र और श्रीकृष्ण से जुड़ी कथा है। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया था। बाल गोपाल गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के यहां अपनी लीलाएं कर रहे थे। उन दिनों ब्रज के लोग अच्छी बारिश के लिए देवराज इंद्र की पूजा करते थे।
श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को ऐसा करने से मना किया और लोगों से कहा, ‘हम लोगों को इंद्र की नहीं, बल्कि गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। गोवर्धन पर्वत ही गांव के लोगों की जीविका का आधार है। इसी पर्वत की घास, वनस्पतियां खाकर हमारी गायें हमें दूध देती हैं। दूध से हमारा जीवन चलाता है। इस तरह हमारे लिए गोवर्धन पर्वत पूजनीय है।’
श्रीकृष्ण की बातें मानकर गांव के लोगों ने देवराज इंद्र की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात से इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज क्षेत्र में तेज बारिश शुरू कर दी। बारिश इतनी तेज हो रही थी कि गांव के लोगों के घर-खेत सब पानी में डूब गए थे। उस समय श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। गांव के लोग उस पर्वत के नीच आ गए।
लगातार सात दिनों तक देवराज इंद्र ने बारिश की और श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा और गांव के लोगों की रक्षा की।सात दिन के बाद जब देवराज इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। जब बारिश बंद हो गई तो गांव के लोगों ने श्रीकृष्ण को कुल 56 तरह के पकवान खिलाए थे। कथा वाचक पंडित ने आगे कहा एक दिन आठ पहर होते हैं और सात दिनों के कुल 56 पहर हो जाते हैं। इतने समय तक श्रीकृष्ण भूखे-प्यासे रहे और गांव के लोगों की रक्षा की थी। इस उपकार के बदले गांव के लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण को हर एक पहर के हिसाब से कुल 56 पकवान खिलाए। तभी से श्रीकृष्ण को 56 तरह के भोग लगाने की परंपरा प्रचलित है।
छप्पन भोग में 6 रसों का होता है खानाखाने में 6 तरह के रस होते हैं- कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा। इन छह रसों से 56 भोग बनाए जाते हैं। कथा श्रवण करने दूर दूर से भक्त गण पहुंच रहे है।