
दिल्ली पुलिस का दामन फिर दागदार: रिश्वतखोरी के आरोप में सीबीआई ने सब-इंस्पेक्टर को किया गिरफ्तार
दिल्ली पुलिस का दामन फिर दागदार: रिश्वतखोरी के आरोप में सीबीआई ने सब-इंस्पेक्टर को किया गिरफ्तार
नई दिल्ली, 21 मार्च: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने दिल्ली पुलिस के एक उपनिरीक्षक (सब-इंस्पेक्टर) को रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया है। आरोप है कि उन्होंने एक नवी मुंबई के टूर ऑपरेटर को एक मामले से निकालने के एवज में 14 लाख रुपये की मांग की थी, जिनमें से 2.5 लाख रुपये की पहली किस्त हवाला ऑपरेटरों के जरिए प्राप्त की गई। इस पूरे मामले ने पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली और भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
गिरफ्तार उपनिरीक्षक की पहचान राहुल मलिक के रूप में हुई है, जो दिल्ली के रोहिणी स्थित साइबर पुलिस थाने में तैनात थे। अधिकारियों के अनुसार, मलिक ने टूर ऑपरेटर से मामला रफा-दफा करने के बदले मोटी रकम की मांग की थी। इसके लिए उन्होंने हवाला के जरिए रकम हासिल की, जिसमें मुंबई, तमिलनाडु के ईरोड और दिल्ली के हवाला ऑपरेटरों की संलिप्तता सामने आई।
सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और पुलिस अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है। यह गिरफ्तारी सीबीआई की उस मुहिम का हिस्सा है, जिसमें भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है।
दिल्ली पुलिस में भ्रष्टाचार के आरोप पहले भी लगते रहे हैं, लेकिन इस बार यह मामला एक साइबर क्राइम थाने से जुड़ा है, जो डिजिटल अपराधों की जांच के लिए जाना जाता है। इससे यह सवाल उठता है कि जब साइबर अपराध से निपटने के लिए नियुक्त अधिकारी ही कानून तोड़ने लगें, तो आम नागरिक न्याय की उम्मीद कैसे कर सकता है?
अक्सर यह देखा गया है कि पुलिसकर्मी प्रभावशाली व्यक्तियों और व्यापारियों से अवैध वसूली करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। यह मामला भी उसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण है। सीबीआई की जांच से यह पता चलेगा कि क्या इसमें कोई अन्य पुलिसकर्मी भी शामिल था या यह पूरी तरह से अकेले किया गया अपराध था।
इस मामले में हवाला ऑपरेटरों की संलिप्तता सामने आना बेहद गंभीर मुद्दा है। हवाला एक अवैध वित्तीय लेन-देन प्रणाली है, जिसका उपयोग आमतौर पर काले धन को सफेद करने और गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए किया जाता है।
सीबीआई अब यह जांच कर रही है कि इन हवाला ऑपरेटरों का संबंध किसी बड़े आपराधिक गिरोह से तो नहीं है। साथ ही, यह भी पता लगाया जा रहा है कि क्या यह पहली बार हुआ है या इससे पहले भी इस तरह के लेन-देन किए गए हैं।
सीबीआई ने इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया है। आगे की जांच में इस बात का पता लगाया जाएगा कि उपनिरीक्षक मलिक को यह रिश्वत देने के लिए किस प्रकार दबाव बनाया गया था और किन-किन लोगों को इसमें लाभ मिला।
अधिकारियों का कहना है कि इस मामले में हवाला ऑपरेटरों को भी जांच के दायरे में लाया जाएगा और अन्य पुलिसकर्मियों की भूमिका की भी समीक्षा की जाएगी। यह संभव है कि इस पूरे मामले में और भी नाम सामने आएं।
दिल्ली पुलिस ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है कि यदि कोई पुलिसकर्मी दोषी पाया जाता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हमारी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि जनता का पुलिस पर विश्वास बना रहे। यदि कोई पुलिसकर्मी कानून तोड़ता है, तो उसे भी आम अपराधियों की तरह सजा दी जाएगी।”
हालांकि, पुलिस विभाग ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या आरोपी पुलिसकर्मी को तत्काल निलंबित किया जाएगा या उसके खिलाफ विभागीय जांच भी चलेगी।
हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून बनाए गए हैं, लेकिन पुलिस विभाग में अब भी ऐसे मामले सामने आते रहते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या केवल गिरफ्तारी से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा, या इसके लिए पुलिस विभाग को आंतरिक सुधारों की जरूरत है?
विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिस में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए व्यापक सुधारों की जरूरत है। इसमें टेक्नोलॉजी का उपयोग, स्वतंत्र निगरानी तंत्र और भ्रष्टाचार की शिकायतों के त्वरित निपटारे जैसी व्यवस्थाएं शामिल हो सकती हैं।
इस मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार अब भी हमारी पुलिस व्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा बना हुआ है। सीबीआई की इस कार्रवाई ने पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अब यह देखना होगा कि आगे की जांच में क्या नए खुलासे होते हैं और क्या यह मामला केवल एक गिरफ्तारी तक सीमित रहेगा या बड़े स्तर पर सफाई अभियान चलाया जाएगा।
यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो जनता का कानून व्यवस्था में विश्वास कमजोर हो सकता है। इस घटना ने यह भी उजागर किया है कि कानून लागू करने वाले अधिकारी भी यदि भ्रष्टाचार में लिप्त हों, तो न्याय की उम्मीद करना कितना मुश्किल हो जाता है।