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पलटू चाचा की राजनीति और बिहार के बेरोजगार युवा: क्या हम सिर्फ वोट देने के लिए पैदा हुए हैं?

पलटू चाचा की राजनीति और बिहार के बेरोजगार युवा: क्या हम सिर्फ वोट देने के लिए पैदा हुए हैं?

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बिहार के युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी और सरकारों की वादाखिलाफी को लेकर निराशा बढ़ती जा रही है। राजनीतिक दल चुनावों के दौरान युवाओं से रोजगार देने के वादे करते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद असल मुद्दों से ध्यान हटाकर धार्मिक और जातिगत राजनीति में उलझ जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है – क्या हम सिर्फ वोट देने के लिए पैदा हुए हैं? क्या हमें नौकरी करने का हक नहीं है?

बिहार में बेरोजगारी की भयावह स्थिति

बेरोजगारी दर: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी दर 15-17% के बीच बनी हुई है, जो राष्ट्रीय औसत 7-8% से कहीं अधिक है।

शिक्षित बेरोजगारी: लाखों युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद रोजगार के अभाव में संघर्ष कर रहे हैं।

सरकारी नौकरियों की स्थिति:

भर्ती परीक्षाओं में देरी और भ्रष्टाचार।

वैकेंसी निकलने के बावजूद नियुक्तियों में वर्षों की देरी।

परीक्षा रद्द होने और पेपर लीक की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

युवाओं की हताशा: ‘हमने पढ़ाई पर लाखों खर्च किए, लेकिन नौकरी नहीं मिली’

बिहार के कई युवा यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पर लाखों रुपये खर्च किए, लेकिन नौकरी के नाम पर सिर्फ इंतजार ही मिला। पटना, मुजफ्फरपुर, गया और भागलपुर जैसे शहरों में सैकड़ों छात्र वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन हर बार किसी न किसी वजह से परीक्षाएँ या तो रद्द हो जाती हैं या फिर भर्ती प्रक्रिया लंबी खिंच जाती है।

सरकारी योजनाएँ और उनकी हकीकत

बिहार स्टार्टअप पॉलिसी: स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई योजना, लेकिन इसका लाभ बहुत कम युवाओं को मिल पाया है।

मुख्यमंत्री निश्चय स्वयं सहायता भत्ता योजना: बेरोजगार युवाओं को ₹1000 महीना देने की योजना, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है।

कौशल विकास मिशन: युवाओं को ट्रेनिंग देने की योजना, लेकिन इंडस्ट्री से जुड़ाव कम होने से सफलता सीमित है।

रोजगार मेला और स्वरोजगार योजना: छोटे व्यापारियों और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई योजना, लेकिन इसमें पारदर्शिता की कमी है।

‘पलटू चाचा’ की राजनीति और युवाओं की अनदेखी

बिहार की राजनीति में ‘पलटू चाचा’ के नाम से मशहूर एक बड़े नेता समय-समय पर अपने रुख में बदलाव करते रहे हैं। गठबंधन बदलने और राजनीतिक समीकरणों को साधने में उनकी महारत है, लेकिन सवाल यह है कि क्या बिहार के बेरोजगार युवाओं को इससे कोई फायदा हुआ?

राजनीति में मुख्य मुद्दों से ध्यान हटाने का खेल

रोजगार पर सवाल पूछने के बजाय नेताओं का ध्यान हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद और जातिगत समीकरणों पर रहता है।

चुनाव आते ही बेरोजगारी और रोजगार देने के वादे किए जाते हैं, लेकिन चुनाव बीतते ही ये मुद्दे गायब हो जाते हैं।

बेरोजगारी को लेकर सरकार से सवाल करने वाले युवाओं को एंटी-नेशनल या विपक्षी दलों का समर्थक करार दे दिया जाता है।

युवाओं की आवाज़ और आंदोलन

बिहार के कई युवा संगठनों ने बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाई है, लेकिन उन्हें दबाने की कोशिशें की गई हैं।

रेलवे भर्ती परीक्षा घोटाला: जब छात्रों ने परीक्षा में गड़बड़ी के खिलाफ आवाज उठाई, तो उनके खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई की।

बेरोजगारी पर प्रदर्शन: पटना, दरभंगा और अन्य शहरों में हुए विरोध प्रदर्शनों को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया।

समाधान के संभावित रास्ते

उद्योगों और निजी निवेश को बढ़ावा:

बिहार में बड़े उद्योगों और फैक्ट्रियों की स्थापना की जाए ताकि स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ें।

IT और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) विकसित किए जाएँ।

स्टार्टअप्स और उद्यमिता को बढ़ावा:

युवाओं को स्वरोजगार के लिए सस्ते लोन और बिजनेस ट्रेनिंग दी जाए।

सरकारी योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू किया जाए।

शिक्षा प्रणाली में सुधार:

कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाए।

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इंडस्ट्री पार्टनरशिप के जरिए छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान किया जाए।

सरकारी भर्ती प्रक्रिया में सुधार:

भर्ती परीक्षाओं का समयबद्ध आयोजन और प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए।

सरकारी नौकरियों की संख्या बढ़ाने पर विचार किया जाए।

बिहार में बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सिर्फ राजनीतिक जोड़तोड़ और गठबंधन बदलने से युवाओं का भविष्य सुरक्षित नहीं होगा। अगर सरकारें ठोस नीति बनाकर इन्हें लागू करें, तो बिहार के युवा आत्मनिर्भर बन सकते हैं और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं।

युवाओं को अब खुद आगे आकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा, क्योंकि अगर वे चुप रहे तो राजनीति करने वालों को सिर्फ अपना फ्यूचर ब्राइट करने का मौका मिलता रहेगा!

Ashish Sinha

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