
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मधुसूदन दास की प्रतिमा पर किया माल्यार्पण
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मधुसूदन दास की प्रतिमा पर किया माल्यार्पण
उत्कल दिवस पर ओडिशा राज्य स्थापना की ऐतिहासिक प्रेरणा को किया नमन
रायपुर, 01 अप्रैल 2025 – राजधानी रायपुर के महिला थाना चौक (मधुसूदन दास चौक) में उत्कल दिवस के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बैरिस्टर मधुसूदन दास की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उन्हें नमन किया। इस अवसर पर उत्कल समाज और ओडिशा वासियों को शुभकामनाएं दी गईं।
उत्कल दिवस के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न गणमान्य नागरिक, उत्कल समाज के सदस्य और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। इस दौरान ओडिशा राज्य की स्थापना की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उसमें बैरिस्टर मधुसूदन दास के योगदान को याद किया गया। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ और ओडिशा के गहरे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को रेखांकित किया गया।
ओडिशा की स्थापना 1 अप्रैल 1936 को हुई थी। यह भारत का पहला ऐसा राज्य था, जिसका निर्माण भाषा के आधार पर किया गया। इसके पीछे कई महान नेताओं और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान रहा, जिनमें बैरिस्टर मधुसूदन दास का नाम अग्रणी है। वे ओडिशा के पहले बैरिस्टर थे और उन्होंने राज्य की स्थापना के लिए अथक संघर्ष किया। वे न केवल एक कुशल वकील थे, बल्कि एक प्रखर राष्ट्रवादी, समाज सुधारक और ओडिशा की पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे।
मधुसूदन दास ने ओडिशा की स्वतंत्र पहचान और भाषा की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया। उन्होंने शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए। उनकी अगुवाई में ओडिशा को एक अलग राज्य का दर्जा मिला, जिससे यह राज्य अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को और अधिक मजबूती से सहेज सका।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध सदियों पुराने हैं। दोनों राज्यों की संस्कृतियों में गहरा सामंजस्य देखने को मिलता है। विशेष रूप से भगवान जगन्नाथ की परंपरा इन दोनों राज्यों को जोड़ती है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में बसे उत्कल समाज के लोग यहां की सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता को सशक्त बनाते हैं।
महाप्रभु जगन्नाथ से छत्तीसगढ़ का गहरा संबंध है। पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में चढ़ने वाला भोग का चावल आज भी छत्तीसगढ़ से भेजा जाता है। विशेष रूप से देवभोग क्षेत्र का चावल भगवान जगन्नाथ के प्रसाद के रूप में उपयोग होता है। यह परंपरा दोनों राज्यों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक एकता को दर्शाती है।
इसके अलावा, साहित्य, लोकनृत्य, संगीत और भाषा के स्तर पर भी ओडिशा और छत्तीसगढ़ में कई समानताएं देखने को मिलती हैं। ओडिशा की ओड़िया भाषा और छत्तीसगढ़ी भाषा में कई समान शब्द और अभिव्यक्तियां मिलती हैं। पारंपरिक नृत्य और संगीत भी दोनों राज्यों में समान रूप से लोकप्रिय हैं।
छत्तीसगढ़ में उत्कल समाज का महत्वपूर्ण योगदान है। यहां बड़ी संख्या में ओडिशा से आए लोग निवास करते हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और मेहनत से प्रदेश की उन्नति में योगदान दे रहे हैं। उद्योग, व्यापार, शिक्षा, प्रशासन और कला के क्षेत्र में उत्कल समाज के लोगों की भागीदारी उल्लेखनीय रही है।
विशेष रूप से दुर्ग, भिलाई, रायपुर और कोरबा जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में उत्कल समाज के लोगों की संख्या अधिक है। ये लोग छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनकी सांस्कृतिक गतिविधियां भी प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता को और समृद्ध बनाती हैं।
उत्कल दिवस का महत्व
उत्कल दिवस केवल ओडिशा के गठन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह आत्मगौरव, संघर्ष और सांस्कृतिक एकता की प्रेरणा का प्रतीक भी है। ओडिशा के लोगों ने अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को सहेजने के लिए लंबा संघर्ष किया और अंततः 1 अप्रैल 1936 को ओडिशा को एक अलग राज्य के रूप में स्थापित किया गया।
यह दिन न केवल ओडिशा वासियों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की दिशा में पहला कदम था। इस दिवस को पूरे ओडिशा में हर्षोल्लास से मनाया जाता है, वहीं देशभर में फैले ओडिशावासी भी इसे पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं।
समारोह में हुई विविध गतिविधियां
रायपुर में आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं। उत्कल समाज के कलाकारों ने ओडिशा की पारंपरिक नृत्य और संगीत की प्रस्तुति दी। ओडिशा के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को दर्शाने वाले विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों और गणमान्य नागरिकों ने उत्कल समाज के योगदान की सराहना की और दोनों राज्यों के बीच के ऐतिहासिक संबंधों को और प्रगाढ़ करने की बात कही।
इस अवसर पर विधायक किरण देव, विधायक पुरंदर मिश्रा, विधायक सुनील सोनी, महापौर मीनल चौबे, सभापति सूर्यकांत राठौर, संजय श्रीवास्तव, उत्कल समाज के सदस्य एवं बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
उत्कल दिवस पर रायपुर में आयोजित यह कार्यक्रम छत्तीसगढ़ और ओडिशा के गहरे संबंधों को फिर से मजबूत करने का अवसर बना। बैरिस्टर मधुसूदन दास जैसे महापुरुषों के योगदान को याद करते हुए यह संदेश दिया गया कि भारत की सांस्कृतिक विविधता ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। छत्तीसगढ़ में बसे उत्कल समाज के लोग प्रदेश की सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, और यह आयोजन दोनों राज्यों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को और प्रगाढ़ करने का प्रतीक बना।